थार के रेगिस्तान की भाषा
राजस्थान के मारवा क्षेत्र में बोली जाने वाली मारवाङ्ी का एक भाग ही है। परन्तु जैसलमेर क्षेत्र में बोली जानेवाली भाषा थली या थार के रेगिस्तान की भाषा है। इसका स्वरुप राज्य के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न है। उदाहरण स्वरुप लखा, महाजलार के इलाके में मालानी घाट व मा भाषाओं का मिश्रण बोला जाता है। परगना सम, सहागढ़ व घोटाडू की भाषा में थाट, मा व सिंधी भाषा का मिश्रण बोल-चाल की भाषा है। विसनगढ़, खूङ्ी, नाचणा आदि परगनों में जो बहावलपुर, सिंध से संलग्न है, माङ्, बीकानेरी व सिंधी भाषा का मिश्रण है। इसी प्रकार लाठी, पोकरण, फलौदी के क्षेत्र में घाट व मा भाषा का मिश्रण है। राजस्थान राजधानी में बोली जोन वाली इन सभी बोलियों का मिश्रण है, जो घाट, माङ्, सिंधी, मालाणी, पंजाबी, गुजराती भाषा का सुंदर मिश्रण है।
वस्तुतः यहाँ प्रयुक्त की जाने वाली बोली को तीन प्रमुख भाषाओं में विभक्त कर सकते हैं -
१. जन-साधारण की भाषा।
२. साहित्यिक भाषा।
३, राजकार्य की भाषा।
जन-साधारण की भाषा का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है, जबकि यहाँ रचे गए साहित्य में प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत तथा ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है।
राजकार्य में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा में अपभ्रंश खङ्ी बोली का प्रयोग किया गया है, जो ताम्र पत्रों, शिलालेखों, आदेशों पट्टे परवाने, पत्रों में प्रयुक्त की जाती रही है। १८८० ई. के उपरांत यहाँ पर भारतीय दंड संहिता, दीवानी, फौजदारी आदि इंगलिश अधिनियम लागू होने पर उनके उर्दू में किए गए भाषातरों का प्रयोग किए जाने से राजकीय कार्यों में उर्दु भाषा के शब्दों का प्रयोग अधिक होने लगा था, जो न्याय की भाषा के रुप में भारत में राज्य के विलीनीकरण तक होता रहा।
यहाँ बोली जाने वाली भाषा की अन्य दो विशेषताएँ हैं। प्रथम यहाँ के लोग बहुत जोर (ऊँची ध्वनी) से बात करते हैं, जो सिंधी भाषा का स्पष्ट प्रभाव है। द्वितीय भाषा को बोलने में लय का प्रयोग करते हैं तथा हाथ तथा चेहरे से भी भाव व्यक्त करते हुए वार्तालाप करते हैं, जो घाट एवं मा भाषा का प्रभाव है।
राजस्थान के मारवा क्षेत्र में बोली जाने वाली मारवाङ्ी का एक भाग ही है। परन्तु जैसलमेर क्षेत्र में बोली जानेवाली भाषा थली या थार के रेगिस्तान की भाषा है। इसका स्वरुप राज्य के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न है। उदाहरण स्वरुप लखा, महाजलार के इलाके में मालानी घाट व मा भाषाओं का मिश्रण बोला जाता है। परगना सम, सहागढ़ व घोटाडू की भाषा में थाट, मा व सिंधी भाषा का मिश्रण बोल-चाल की भाषा है। विसनगढ़, खूङ्ी, नाचणा आदि परगनों में जो बहावलपुर, सिंध से संलग्न है, माङ्, बीकानेरी व सिंधी भाषा का मिश्रण है। इसी प्रकार लाठी, पोकरण, फलौदी के क्षेत्र में घाट व मा भाषा का मिश्रण है। राजस्थान राजधानी में बोली जोन वाली इन सभी बोलियों का मिश्रण है, जो घाट, माङ्, सिंधी, मालाणी, पंजाबी, गुजराती भाषा का सुंदर मिश्रण है।
वस्तुतः यहाँ प्रयुक्त की जाने वाली बोली को तीन प्रमुख भाषाओं में विभक्त कर सकते हैं -
१. जन-साधारण की भाषा।
२. साहित्यिक भाषा।
३, राजकार्य की भाषा।
जन-साधारण की भाषा का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है, जबकि यहाँ रचे गए साहित्य में प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत तथा ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है।
राजकार्य में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा में अपभ्रंश खङ्ी बोली का प्रयोग किया गया है, जो ताम्र पत्रों, शिलालेखों, आदेशों पट्टे परवाने, पत्रों में प्रयुक्त की जाती रही है। १८८० ई. के उपरांत यहाँ पर भारतीय दंड संहिता, दीवानी, फौजदारी आदि इंगलिश अधिनियम लागू होने पर उनके उर्दू में किए गए भाषातरों का प्रयोग किए जाने से राजकीय कार्यों में उर्दु भाषा के शब्दों का प्रयोग अधिक होने लगा था, जो न्याय की भाषा के रुप में भारत में राज्य के विलीनीकरण तक होता रहा।
यहाँ बोली जाने वाली भाषा की अन्य दो विशेषताएँ हैं। प्रथम यहाँ के लोग बहुत जोर (ऊँची ध्वनी) से बात करते हैं, जो सिंधी भाषा का स्पष्ट प्रभाव है। द्वितीय भाषा को बोलने में लय का प्रयोग करते हैं तथा हाथ तथा चेहरे से भी भाव व्यक्त करते हुए वार्तालाप करते हैं, जो घाट एवं मा भाषा का प्रभाव है।
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