मरु संस्कृति का यशोगान करता है मरु महोत्सव
डॉ. दीपक आचार्य
दूरदूर तक पसरे रेतीले धोरों और रेगिस्तान की वजह से जितनी शुष्क है उससे कई गुना जीवन रस भरी सरस और समृद्ध है राजस्थान की मरु भूमि।
यहाँ के कणकण में कलासँस्कृति व सौंदर्य, शिल्प, स्थापत्य और प्राच्य परम्पराओं की सुगंध व्याप्त है। इस माटी में विलक्षण लोक परम्पराओं की धाराएँ सदियों से प्रवहमान रही हैं जिनका कोई मुकाबला नहीं। पश्चिमी राजस्थान का सीमांत जिला होने के बावजूद जैसलमेर का पुरा वैभव, पुरातन परम्पराएँ और बेजोड़ सुदर्शन शिल्प का आकर्षण ही हैं जिसकी वजह से यह पर्यटन के मामले में न सिर्फ राजस्थान बल्कि देश भर में हर मामले में इक्कीस ही ठहरता है।
सन 1979 में हुई थी शुरूआत
जैसलमेर की लोक संस्कृति के तमाम आयामों से रूबरू कराने के उद्देश्य से सन 1979 में मरु महोत्सव अर्थात ’डेजर्ट फेस्टिवल’ का सूत्रापात हुआ। इसके बाद मरु महोत्सव अपने बहुआयामी आकर्षण और रोचकरोमांचक कार्यक्रमों के समावेश से देशीविदेशी सैलानियों में इतना लोकप्रिय हो गया कि आज यह दुनिया के ख़ास महोत्सवों में गिना जाता है। माघ शुक्ल त्रायोदशी से पूर्णिमा तक के तीन दिन हर साल सरहद पर बहने वाले सुकून के दरिये में हजारों सैलानी गोते लगाकर नई ताजगी का अनुभव करते हैं व जैसाण की जयजयकार कर अपने वतन लौटते हैं।
मरु महोत्सव अब भारतीय पर्यटन का मुख्य आकर्षण हो चला है जहाँ तीन दिन के जैसलमेर प्रवास के दौरान मरु संस्कृति व इसकी मनोहारी परम्पराओं की झलक अच्छी तरह पायी जा सकती है।
इस बार आकर्षक कार्यक्रमों की भरमार
इस बार यह महोत्सव पाँच से सात फरवरी तक आयोजित हो रहा है। इस बार महोत्सव में जैसलमेरवासियों की अगाध श्रद्घा और आस्था के केन्द्र श्रीलक्ष्मीनाथजी मन्दिर में मंगला आरती, गड़सीसर से शोभायात्रा, शहीद पूनमसिंह स्टेडियम में मरुश्री, मिस मूमल, मूँछ, मूमल महेन्द्रा, देशीविदेशी सैलानियों के बीच साफा बांध आदि की प्रतियोगिताएं, रात्रिकालीन साँस्कृतिक कार्यक्रम, डेडानसर मैदान में कैमल श्रृंगार, शानए-मरुधरा, देशीविदेशी पुरुषमहिलाओं की रस्साकशी, पणिहारी मटका दौड़, कैमल पोलो मैच, कबड्डी प्रतियोगिताएं, पूनम स्टेडियम में सीमा सुरक्षा बल द्वारा कैमल टेटू शो, आतिशबाजी, प्राचीन कुलधरा गाँव में ग्रामीण संस्कृति प्रदर्शन, सम के धोरों पर कैमल रेस, पतंग उड़ान प्रदर्शन, साँस्कृतिक समारोह आदि कई आकर्षक कार्यक्रम समा बाँधेंगे।
विश्व क्षितिज पर पीत प्रस्तरों पर विलक्षण कला सौन्दर्य दर्शाने वाले, स्वर्णिम आभा से मण्डित जैसलमेर को ॔गोल्डन सिटी’ के नाम से ख्याति मिली हुई है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में होने वाले कार्निवलों में डेजर्ट फेस्टिवल का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। अब यह महोत्सव जैसलमेरवासियों के दिल की धड़कन बन चुका हैं।
मरु संस्कृति का महाकुंभ है यह
पर्यटकों, देशीविदेशी सैलानियों, छायाकारों, डॉक्यूमेन्टरी फिल्म निर्माताओं, मीडिया कर्मियों के लिए मरु महोत्सव मरु संस्कृति का महाकुंभ ही है जहाँ इसकी बहुरंगी छटा से साक्षात कर धन्य होते हैं। इनमें स्थानीयों के साथ ही सेना से जुड़ी कंपनियाँ/बटालियनें भी अहम भागीदारी अदा करती हैं।
कलाकारों के लिए मरु महोत्सव वह प्रतिष्ठित मंच है जहाँ से अपने फन का जादू बिखेरना इनके जीवन का बड़ा सुखद स्वप्न होता है।
हर बार होते हैं नएनए आकर्षण
मरु महोत्सव या मरु मेले को आकर्षण का केन्द्र बनाने हर बार नवाचारों का प्रयोग होता रहा है। इस महोत्सव में ’मरुश्री’ ( मिस्टर डेजर्ट ), मूमल महेन्द्रा, मिस मूमल, भारतीय व विदेशी सैलानियों के लिए पगड़ी बाँधो प्रतियोगिता, कैमल रेस, ऊँट श्रृंगार, रस्साकशी, मटका दौड़, ऊँट के करतब, गड़सीसर सरोवर से निकलकर शहीद पूनमसिंह स्टेडियम तक पहुँचने वाली मनोहारी शोभायात्रा, सरोवर पर संध्याकालीन दीपदान, मूँछ प्रतियोगिता, विदेशी महिलाओं के लिए ’ब्राइड़शो ( राजस्थानी परिधान पहनने ), दशहरा चौक, अखेप्रोल, गांधी दर्शन, मरु शिल्पग्राम, देदानसर मैदान आदि में तीन दिन तक लोक कलाकारों की सुमधुर प्रस्तुतियाँ, विदेशी महिलाओं के लिए साड़ी बाँध प्रतियोगिता, देदानसर मैदान व सम के धोरों पर एयरफोर्स के जांबाजों द्वारा हजारों फीट ऊपर उड़ान भरते हवाई जहाज से पैरा ट्रूपिंग के रोमांच और देदानसर मैदान में पेराड्रिलिंग, होट एयर बैलून, पैरासेलिंग, कैमल पोलो व अन्य खेल कबड्डी, पतंगोत्सव, आदिवासी गैर नृत्य, टेटू शो, सम के धोरों पर रंगीन आतिशबाजी व डेजर्ट सिम्फनी जैसे अनूठे कार्यक्रमों का आकर्षण ही मरु महोत्सव की लोकप्रियता में अब तक चार चाँद लगाता रहा है।
मनोहारी शोभायात्रा
मरु महोत्सव की पारंपरिक शोभायात्रा में बी.एस.एफ. के सजेधजे ऊँट व इन पर सवार फौजी, बांकिया वादक, पणिहारिने, नृत्यांगनाएँ, कालबेलिया, कामड़, मांगणियार, लंगा,भाट, भोपाभोपी एवं कच्छी घोड़ी कलाकार, जैसलमेरी वेशभूषा में सुसज्जित बच्चे व शहरवासी, नरनारी, मिस्टर डेजर्ट, मिस मूमल, मूमलमहेन्द्रा की मनोहारी झांकियाँ जनाकर्षण का केन्द्र होती हैं।
जैसलमेर दर्शन है सोने में सुहागा
मरु महोत्सव के दौरान तीन दिन तक होने वाले ऐसे ही मंत्रा मुग्ध कर देने वाले आकर्षक व रोचक कार्यक्रमों के साथ ही देशीविदेशी सैलानियों के लिए सोनार दुर्ग, गड़सीसर, लौद्रवा, बड़ा बाग, पटवा हवेली, नथमल हवेली, सालमसिंह की हवेली, सोनार दुर्ग के विभिन्न देवालय, कुलधरा एवं खाभा, विभिन्न संग्रहालय, सम व खुहड़ी के धोरे, आकल वुड फोसिल्स पार्क, राष्ट्रीय मरु उद्यान, मूलसागर, अमरसागर भी ख़ासे आकर्षण का केन्द्र होते हैं। गड़सीसर तालाब पर सूर्योदय तथा व्यास छतरी पर सूर्यास्त बिन्दु का अपना अलग ही आकर्षण है। देशी सैलानी घंटियाली माता व तनोट माता के दर्शनों के साथ ही भारतपाक सीमा को अपनी आँखों से देखने का लोभ भी संवरण नहीं कर पाते हैं।
मरु महोत्सव की सतरंगी छटा ही ऐसी है कि देश के विभिन्न राज्यों के सैलानियों के साथ ही संसार के विभिन्न देशों से आने वाले विदेशी मेहमानों का कुम्भ यहाँ तीन दिन तक मरु संस्कृति के लोकरंगों और रसों का ज्वार उमड़ाता है। जैसाण के वाशिन्दे भी ’अतिथि देवो भव’ को साकार करते हुए इनकी आवभगत में रमे रहते हैं।
कलाकारों का जमघट
मरु महोत्सव कलाकारों के लिए अपना उत्सव है, जहाँ वे उन्मुक्त होकर अपना हुनर दर्शाते हैं। इनमें स्थानीय लोक कलाकारों के साथ ही देश के नामी कलाकारों की भागीदारी इस महोत्सव को ऊँचाइयाँ देती रही हैं। मांगणियार कलाकारों के समूह खड़ताल, कमायचा, सारंगी, अलगोजा आदि वाद्यों की संगत पर मरु संगीत की ऐसी वृष्टि करते हैं कि हर कोई आनंद के महासागर में गोते लगाने को विवश हो जाता है। मरु महोत्सव के सांस्कृतिक मंचों पर भावपूर्ण अदाकारी का ही कमाल है कि जैसलमेर के कई लोक कलाकार आज भारतवर्ष व अंतर्राष्ट्रीय मंचों की शोभा बने हुए हैं।
औद्योगिक व व्यवसायिक घरानों, कंपनियों एवं बैंकों आदि के विज्ञापन की दृष्टि से भी यह महोत्सव लाभकारी रहा है। इस वजह से ये प्रतिष्ठान मरु महोत्सव की गतिविधियों में प्रायोजक के रूप में भी अपनी भागीदारी निभाने लगे हैं।
मरु महोत्सव में सालदर साल नवीन आकर्षण जोड़ने के लिए जिला प्रशासन तथा पर्यटन विभाग निरंतर प्रयासरत रहे हैं व इस वजह से देशीविदेशी सैलानी व स्थानीय लोग हर साल कुछ नया देखने बहुत बड़ी संख्या में आकर लुत्फ उठाने लगे हैं। मरु महोत्सव व जैसलमेर अब एक दूसरे के पर्याय हो चले हैं।
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