मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

जन्हा मुस्लिम महिलाये सुहाग का प्रतिक चूडा पहनती हें

सांप्रदायिक सद्भावना की मिसाल 



जन्हा मुस्लिम महिलाये सुहाग का प्रतिक चूडा पहनती हें


बाड़मेर भारत पकिस्तान की अन्तराष्ट्रीय सरहद पर बसा बाड़मेर जिला सांप्रदायिक सद्भावना की मिशाल कायम कर रहा हें ,पश्चिमी राजस्थान और पकिस्तान के सिंध प्रान्त के बीच रोटी ,बेटी का रिश्ता हें .बाड़मेर में सरहदी गाँवो में रह रहे सिन्धी मुस्लमान परिवारों में आज भी हिन्दू संस्कृति और परम्पराव का निर्वहन किया जा रहा हें ,विभाजन से पहले जन्हा हिन्दू मुस्लिम एक साथ रह हहे थे वही दोनों समुदायों की परम्पराव तथा संस्कृति में ज्यादा फर्क नहीं था ,विभाजन के बाद भारतीय सरहद में रह गए सिन्धी मुस्लिम परिवारों में कई रीती रिवाज हिन्दुओ की भांति हें तो कई परम्पराए भी ,मुस्लिम परिवारों का पहनावा भी हिन्दू महिलाओ की तरह ही हें सबसे बड़ी बात की जन्हा पुरे विश्व में मुस्लिम महोलाओ को श्रृंगार की वस्तुए पहनने की आज़ादी नहीं हें वंही बाड़मेर जिले में आज भी मुस्लिम महिलाये हिन्दू परिवारों की महिलाओ की भांति सुहाग का प्रतिक चूडा पहनती हें ,बाड़मेर ज्जिले के पाकिस्तानी सरहद के समीप बसे सेकड़ो मुस्लिम बाहुल्य परिवारों में आज भी महिलाये सुहाग का प्रतिक चूडा पहन के इठलाती हें .मुस्लिम परिवारों में शादी शुदा महिलाओ को सुहाग का प्रतिक चूडा पहना अनिवार्य हें शादी विवाह सगाई तीज त्योहारों पर मुस्लिम महिलाए हाथी दांत का बना चूडा पहनती हें ,सामान्यतः मुस्लिम परिवार की महिलाये प्लास्टिक का चूडा ही पहनती हें इन मुस्लिम परिवारों में चूड़े को लाल रंग से पहने से पहले रंगा जाता हें ,कई महिलाये बिना रंगे सफ़ेद चूडा भी पहनती हें ,विश्व भर में कंही भी मुस्लिम महिलाये चूडा नहीं पहनती मगर पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर ,जैसलमेर जिलो में बसे लाखो मुस्लिम परिवारों में महिलाये चूडा पहनती हें ,बांदासर गाँव निवासी श्रीमती इतिया ने संवाददाता को बताया की उनके परिवार में कई पीढियों से महिलाए चूडा पहनती आ रही हें चूड़े को सुहाग का प्रतिक मना जाता हें अपने पतियों को अजर अमर रखने के लिए तथा उन पर को जीवन संकट नहीं आ जाए इसीलिए चूडा पहनती हें .एक अन्य मुस्लिम महिला श्रीमती सक्खी ने बताया की शुरू से हम लोग हिन्दू परिवारों के बीच रहे हें सिंध में साउ {राजपूत }तथा मेघवाल परिवारों के बीच रहे आपस में भाई चारा था तीज त्योहारों पर या शादी विवाह जैसे समारोह में भी आना जाना था उस वक़्त हिन्दू मुस्लिम वाली कोई बात नहीं थी हां सभी अपनी मर्यादा में रहते थे ,हिन्दू मुस्लिम में कोई फर्क नहीं लगता आज भी हमने उसी परंपरा को अपना रखा हें खली चूडा ही क्यों हम लोगो का पहनावा भी हिन्दू परिवारों की तरह हें खान पान रीती रिवाज़ सब कुछ एक जैसा ,,बहरहाल पुरे दाश में जन्हा कट्टरपंथी सांप्रदायिक भावनाए भड़का कर हिन्दू मुस्लिमो के बीच खाई पैदा कर रहे हें वही सरहद पर अमन का इतना असर हें ,थार की थाली आज भी सद्भावना की अनूठी मिशाल कायम कर रही हें

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