रविवार, 22 जनवरी 2012

तीन मर्डर के बाद बेनकाब हुआ खूनी, बेटी के प्रेम ने फंसा दिया शिकंजे में

रायपुर। सीरियल किलर अरुण उर्फ तोरण चंद्राकर कुकुरबेड़ा में एक के बाद एक तीन मर्डर करने के बाद शक के घेरे में आया। खुद के फंसने का अंदेशा होते ही वह भाग निकला। उसके बाद पुलिस और मोहल्लेवासियों का शक यकीन में बदल गया। पुलिस को हालांकि अरुण की तलाश थी, लेकिन केस को ठंडे बस्ते में डाल दिया। डेढ़ माह पहले डीजीपी अनिल नवानी की चिट्ठी आई और पुलिस दोबारा केस की जांच में जुटी। पुलिस ने ताकत लगाई और राज खुल गया।
 

सरस्वतीनगर पुलिस ने डेढ़ साल पहले अरूण की पत्नी लिली, लिली के भाई अखिल और उसकी पत्नी पुष्पा की गुमशुदगी का मामला दर्ज किया लेकिन पूरे केस को ठंडे बस्ते में डाल दिया। हाईप्रोफाइल केस नहीं होने के कारण किसी का ध्यान भी इस ओर नहीं गया। तकरीबन डेढ़ माह पहले पुलिस मुख्यालय से डीजीपी अनिल एम नवानी के माध्यम से सरस्वतीनगर थाने को केस ओपन करने की चिट्ठी मिली। टीआई कुमारी चंद्राकर के हाथ पत्र आने के बाद उन्होंने तुरंत फाइल खुलवायी ओर जांच में जुट गई। तकरीबन डेढ़ महीने तक गहन छानबीन के बाद अरुण का सुराग मिला।



छानबीन के बाद पता चला कि वह चोरी छिपे कुकुरबेड़ा आता है। कुकुरबेड़ा में उसके मकान से चंद कदम दूर उसका ससुराल है। अरुण के साले अखिल व साली का मकान भी वहीं है। पुलिस के लिए इतना क्लू काफी था। टीआई चंद्राकर के नेतृत्व में टीम बनाकर जांच शुरू की गई। आरक्षक शत्रुहन वाजपेयी ने 24 घंटे केस में लगा दिए।



फंसने के डर से भागा था अरुण



एक के बाद एक तीन हत्याएं करने के बाद अरुण को लगा कि वह फंस सकता है। इसी डर की वजह से वह घर छोड़कर भाग गया और दुर्ग में रहने लगा।



डीजीपी की चिट्ठी से खुला केस



तीन के गायब होने, लाशें नहीं मिलने की पड़ताल के बाद पुलिस ने केस बंद कर दिया। डीजीपी की चिट्ठी के बाद संदिग्ध मर्डर की फाइल खुली।



बेटी के प्रेम में फंसा



अपनी नानी के पास रहने वाली डेढ़ साल की बेटी रितु का प्यार सीरियल किलर को खींच लाया। पुलिस ने घेराबंदी की और उसे दबोच लिया।



सिपाही ने सरोना स्टेशन पर दबोचा आरोपी को



खूनी दरिंदे को आरक्षक शत्रुहन वाजपेयी ने अकेले दबोचा। उसने भागने के लिए काफी देर तक संघर्ष किया पर कामयाब नहीं हो पाया। पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए बिलकुल फिल्मी स्टाइल में घेरेबंदी की। टीआई चंद्राकर ने आरक्षक वाजपेयी के जरिये जासूसों का जाल बिछाया। शुक्रवार को सुबह 11.30 बजे अरुण ने आखिर वही गलती कर दी। उसने कुकुरबेड़ा के एक युवक को फोन किया कि वह आधा घंटे में पहुंच रहा है। यह फोन उसने दुर्ग के एसटीडी से किया था।



आरोपी ने कुकुरबेड़ा के जिस युवक को फोन किया वह पुलिस जासूस था। उसके जरिये पुलिस को सूचना मिल गई। पुलिस ने अरुण की सास और साली को सावधान कर दिया। अरुण ने राजधानी आने के बाद हमेशा की तरह घर से दूर रहकर एक रिक्शे वाले के हाथों पत्र भेजा। इस बीच पुलिस की एक टीम उसे खोजने दुर्ग चली गई थी। रिक्शे वाले को मोहल्ले वालों ने पकड़ लिया। इसकी सूचना पुलिस को दी गई।



टीआई चंद्राकर और उनकी टीम उस समय चरोदा में थी। चंद मिनटों में गाड़ी फर्राटे से दौड़ाकर पुलिस कुकुरबेड़ा पहुंची, लेकिन रिक्शे वाला हाथ आया। टीम निराश हो गई। इसी बीच आरक्षक वाजपेयी का माथा ठनका। दरअसल अरुण ने चिट्ठी में अपनी सास और पत्नी की बहन को रविवि परिसर में बुलाया था। चिट्ठी में उसने रात 12 बजे का जिक्र किया था। इस बात का ध्यान आने पर आरक्षक सरोना स्टेशन पहुंचा। शाम 6 से रात 8 बजे तक वह स्टेशन में खोजबीन करता रहा। आखिरकार आरोपी एक बेंच पर मुंह छिपाए बैठा मिल गया।



बेटी को देखने आया था



सीरियल किलर होने के साथ अरुण एक पिता भी है। उसकी डेढ़ साल की बेटी रितु है। वह अक्सर अपनी बेटी से मिलने ही आता था। वह घर से दूर रहकर चिट्ठी भेजने के अलावा बिस्कुट, चाकलेट, लड्डू अपनी बेटी के लिए भेजता था। इस बार भी बेटी से मिलने की इच्छा लिए आया था। हालांकि पिछले कुछ अर्से से वह बनारस में रहने लगा था। हफ्ताभर पहले ही वह बनारस से आया था।



अरुण जैसे लोग समाज के लिए खतरा



साधारण बात पर किसी की हत्या करने वाला सामान्य प्रवृत्ति का नहीं हो सकता। बिना सोचे-समझे चार लोगों को बेहोश कर जिंदा दफनाने वाला अपनी करतूत की गंभीरता को नहीं समझ रहा। उसे हत्या की गंभीरता का अहसास नहीं। अगर वह सामान्य ढंग से पुलिस को यह बता रहा है कि उसने बस छोटी-मोटी बात पर पत्नी, साले जैसे करीबी रिश्तेदारों को दफना डाला, तो यह बेहद ही खतरनाक स्थिति है। वह बीमारी का शिकार हो सकता है। उसे सामजिक व्यवस्था समझ नहीं आती। ऐसा व्यक्ति समाज के लिए खतरा बन सकता है।
डॉ. नितिन मलिक, साइकैट्रिस्ट

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