शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

बाड़मेर जन्हा बहूओ के सपने साकार कर रही हें सासू माए

बाड़मेर जन्हा बहूओ के सपने साकार कर रही हें सासू माए

बाड़मेर (राजस्थान)। भारतीय समाज में अक्सर सास की छवि बहुत नकारात्मक ढंग से पेश की जाती है। लेकिन राजस्थान के बाड़मेर जिले में बहुओं के सपने सास के कारण ही साकार हो रहे हैं। सामाजिक बदलाव के इस नए उदाहरण में गांवों में सरकारी नौकरियों के अवसरों ने योगदान दिया है।क्षेत्र की अनेक बहूओ ने ससुराल में रहते हुए सरकारी नौकरिया पाने में सफलता हासिल की हें ,

चैनी देवी (19) के माता-पिता ने कक्षा आठवीं के बाद उनका स्कूल छुड़ा दिया था और शादी कर दी थी। लेकिन आज वह अपनी सासू मां के प्रोत्साहन और गांव में सरकारी नौकरी की उम्मीद से स्नातक कक्षा की पढ़ाई कर रही हैं।

चैनी अकेली नहीं हैं। राजस्थान के बाड़मेर जिले में ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसरों के आकर्षण में कई शादीशुदा अनुसूचित जाती जनजातीय महिलाओं ने स्कूल जाना शुरू कर दिया है।

अधिकांश मामलों में रोचक बात यह है कि इन महिलाओं के समर्थन में सबसे पहले उनकी सासू मां आई हैं, जिनकी भारतीय समाज में अक्सर एक नकारात्मक छवि बनी हुई है।

शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी डॉ लक्ष्मी नारायण जोशी ने बताया, "2,000 से अधिक शादीशुदा महिलाएं ग्रामीण इलाकों में स्कूलों में आ रही हैं। इनमें से कुछ ऐसी हैं, जिनकी शादी बहुत ही कम उम्र में हो गई थी और वे किताब का मुह तक नहीं देख पाई थीं।

वे अपने पास-पड़ोस की उन महिलाओं का अनुसरण कर रही हैं, जिन्हें पढ़ाई करने के बाद सरकारी नौकरी मिल गई है।"

अधिकारी ने कहा, "ढेरों महिलाएं आंगनवाड़ी केंद्रों से जुड़ रही हैं। इन महिलाओं को ग्रामीण इलाकों के लिए शुरू की गई विभिन्न सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में सहायकों के रूप में नियुक्त किया जा रहा है।"कई बहूए ग्राम सेवक ,पटवारी ,अध्यापिका ,आंगनवाडी कार्यकर्ता ,रोजगार सहायिका,सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी सेवाए दे रही हें ,यह बाड़मेर वो जिला हें जन्हा किसी समय पढ़ी लिखी महिला तो दूर पुरुष भी गिने चुने मिलते थे ,मगर आज इस सरहदी क्षेत्र में शिक्षा के क्षेत्र में आई क्रांति ने कहानी बदल कर रख दी ,


इन नौकरियों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता आठवीं पास है। चैनी देवी बाड़मेर की महिला महाविद्यालय से बीए कक्षा की पढ़ाई कर रही हैं। चैनी देवी ने कहा, "मुझे लगा था कि मैं अब दोबारा कभी स्कूल नहीं जा पाऊंगी।

मैंने आंगनवाड़ी कर्मी की नौकरी के लिए आवेदन किया था और मेरी मामूली शैक्षिक योग्यता के कारण मुझे नौकरी मिल गई। इससे मेरी सासू मां का उत्साह बढ़ा और उन्होंने मुझे फिर से स्कूल जाने के लिए विवश कर दिया।"

चैनी कहती हैं कि जब गांव की अन्य महिलाओं ने उन्हें नौकरी करते देखा तो उनका भी उत्साह बढ़ा।

चैनी देवी ने कहा, "यहां की महिलाएं आमतौर पर घूंघट में रहती हैं, लेकिन कई महिलाओं ने घूंघट हटा दिया है और अब वे स्कूल जाने लगी हैं।"

चैनी देवी ने कहा कि उनके कॉलेज में पढ़ाई करने वाली कम से कम दो दर्जन महिलाओं की शादी बचपन में ही हो गई थी।

इस नई प्रक्रिया ने पाकिस्तान के साथ लगे इस पश्चिमी जिले में सामाजिक बदलाव का सूत्रपात कर दिया है। अधिकांश महिलाएं 15 से 16 वर्ष उम्र की हैं।


रुखमा नामक एक अन्य महिला ने कहा कि इस इलाके में बदलाव पिछले तीन-चार साल से शुरू हुआ है। पार्वती ने कहा, "पहले शादीशुदा महिलाएं अपने घर का चौखट लांघने की कल्पना नहीं कर पाती थीं। बहुओं की तो बात दूर, बेटियों को पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई की अनुमति नहीं होती थी।"
उसने उन दिनों को याद किया जब उसका शिक्षिका बनने का सपना चूर-चूर हो गया था और उसके माता-पिता ने बहुत कम उम्र में उसकी शादी कर दी थी।

रुखमा ने कहा, "मेरे ससुराल के लोगों ने मुझे स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित किया। मैं 22 की उम्र में कक्षा 12वीं में हूं, लेकिन मैं हतोत्साहित नहीं हूं। मैं अपने सपने को साकार करने के लिए कम से कम बीएड करना चाहती हूं।"रुखमा आज बी एड कर सरकारी स्कूल में अध्यापिका लगी हें

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