शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

प्रतिबंधित क्षेत्र में ....सरकार को नहीं मिली विशेष अपील की अनुमति

बाड़मेर में पाकिस्तान के सीमावर्ती प्रतिबंधित क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जमीन की खरीद-फरोख्त व नामांतरण के मामले में राज्य सरकार की अर्जियां राजस्व मंडल की एकलपीठ ने खारिज कर दी है। राज्य सरकार की ओर से इन अर्जियों के जरिए एकलपीठ से खंडपीठ में विशेष अपीलों पर सुनवाई के लिए अनुमति मांगी गई थी।

एकलपीठ के सदस्य बीएल नवल ने राज्य सरकार की विशेष अपीलों को देरी से पेश हुआ मानते हुए सुनवाई योग्य नहीं माना व अनुमति देने से इंकार कर दिया है।

एकलपीठ ने राज्य सरकार के 331 प्रकरण में विशेष अपील की सुनवाई के लिए भू राजस्व अधिनियम के तहत अनुमति की अर्जियों को खारिज कर दिया।

भू राजस्व अधिनियम की धारा 10 के तहत खंडपीठ के समक्ष विशेष अपील के लिए उसी एकलपीठ से अनुमति लिया जाना जरूरी है, जिसके फैसले को चुनौती दी जा रही है। एकलपीठ ने इस मामले में सरकार की ओर से प्रस्तुत इस तर्क को नामंजूर कर दिया कि सीमावर्ती प्रतिबंधित क्षेत्र में पीएसीएल कंपनी ने अपने एजेंटों के जरिए जमीन खरीदी थी।
 
एकलपीठ ने कहा कि इस स्तर पर सरकार को यह नया आधार प्रस्तुत करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। एकलपीठ ने कहा कि 14 अक्टूबर को हुए फैसले के खिलाफ अपील 30 दिवस में पेश होनी चाहिए थी, लेकिन सरकार ने देरी से 30 नवंबर को अपील पेश की है।

एकलपीठ के इस फैसले से सरकार का राजस्व मंडल में प्रकरण को चुनौती देने का रास्ता बंद हो गया है। खंडपीठ में अब सरकार की विशेष अपील पर सुनवाई नहीं हो पाएगी।

अब हाईकोर्ट का सहारा :

एकलपीठ के इस फैसले से सरकार का राजस्व मंडल में प्रकरण को विशेष अपील के जरिए चुनौती देने का रास्ता बंद हो गया है। अब राज्य सरकार को इस मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय में रिट दायर करने का विकल्प बाकी है। राजकीय अभिभाषक रविकांत गुप्ता ने बताया कि एकलपीठ के आदेश की प्रति मिलने के बाद उस पर विचार विमर्श कर आगामी निर्णय किया जाएगा।


यह थी दोनों पक्षों की दलील :

इससे पहले सरकार की ओर से एकलपीठ के समक्ष पेश अर्जी में पीएसीएल कंपनी द्वारा जमीन खरीद का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया था।

सरकार की ओर से पीएसीएल कंपनी द्वारा जमीन खरीद को लेकर पुलिस की जांच रिपोर्ट भी एकलपीठ के समक्ष पेश की गई। इन रिपोर्ट में जिला पुलिस अधीक्षक बाड़मेर की सीआईडी को सौंपी गई 14 नवंबर 2007 और जिला कलेक्टर बाड़मेर को दी गई 17 फरवरी 2010 की रिपोर्ट शामिल है।

राज्य सरकार की दलील है कि पीएसीएल कंपनी ने एजेंटों के जरिए बड़े पैमाने पर सीमावर्ती प्रतिबंधित क्षेत्र में जमीन खरीद की है। ऐसे में ना तो खरीदारों को जमीन का कब्जा मिला ना ही उनका जमीन में सीधा हित है। इसलिए सेल डीड के आधार पर जो नामांतरण खोले गए वे निरस्त होने लायक हैं।

वहीं दूसरी ओर खरीदारों ने नामांतरण को वैध ठहराने संबंधी एकलपीठ के फैसले को सही बताते हुए कहा था कि सेल डीड में जमीन पर कब्जा सौंपने का साफ उल्लेख है इसलिए और किसी जांच की जरूरत नहीं है।


सरकार के पक्ष पर हुई देरी ! :

14 अक्टूबर को एकलपीठ के सदस्य बीएल नवल ने कुछ प्रकरणों में सरकार के खिलाफ निर्णय पारित करते हुए नामांतरण को वैध ठहराया था। इन निर्णयों की नकल के लिए सरकार की ओर से कार्रवाई कर विशेष अपील व उसके साथ अनुमति प्रदान करने की अर्जी प्रस्तुत कर दी गई।

सरकारी पक्ष की माने तो एकलपीठ के निर्णय की नकल लेने में जो समय लगा उसे छोड़ दिया जाए तो निर्धारित तीस दिवस के भीतर अपील प्रस्तुत कर दी गई थी। लेकिन एकलपीठ ने बुधवार को सरकार की अर्जी को खारिज करने का महत्वपूर्ण आधार अपीलों को पेश करने में हुई देरी को माना है।

कानूनविदों के अनुसार देरी हुई तो यह अत्यंत गंभीर है, क्योंकि सरकार के पास पर्याप्त समय था। देरी के तकनीकी बिंदु पर सरकार की अर्जी नामंजूर होना भी गंभीर मुद्दा है।


फ्लैश बैक.. :

राज्य के सीमावर्ती जिले बाड़मेर में वर्ष 2005-06 में प्रतिबंधित क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जमीनों की खरीद फरोख्त हुई थी। इसमें वास्तविक खरीदारों के बजाय एक कंपनी द्वारा भुगतान के तथ्य उजागर हुए थे। प्रतिबंधित क्षेत्र में हुई खरीद-फरोख्त को तब विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने बड़ा मुद्दा बनाकर देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ बताते हुए कार्रवाई की मांग की थी।

इसके बाद तत्कालीन कई उप पंजीयकों को चार्जशीट भी दी गई थी। कई फौजदारी मुकदमे भी दर्ज हुए थे। सरकार की ओर से विवादित बेचाननामों को निरस्त कराने के लिए सिविल कोर्ट में दायर किए गए वाद अब भी लंबित हैं।

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