सोमवार, 16 जनवरी 2012

वरिष्ठ कवि श्रीपत नहीं रहे साहित्य जगत में शोक की लहर


वरिष्ठ कवि श्रीपत नहीं रहे

साहित्य जगत में शोक की लहर


जैसलमेर रजपूती अजौं मिटी कौनी! अवसर पर रंग दिखावै है। घट में व्यापै, पल हेक मौंय, जद सत नै कूड़ सतावै है।। राजपूती कविता के माध्यम से राजपूतों की वीरता और क्षत्राणियों द्वारा अपने पति को मानवता की दुहाई देकर जगाने को राजस्थानी काव्य में पिरोने वाले वरिष्ठ कवि श्यामसुंदर श्रीपत का शनिवार रात्रि में निधन हो गया। उनके निधन पर साहित्य व कवि जगत में शोक की लहर दौड़ गई।

मायड़ भाषा की रचनाएं हुर्इं चर्चित: अपना संपूर्ण जीवन साहित्य साधना में बिताने वाले स्व. श्रीपत की काव्य कृति पूनम का चांद, मरू महक और मरू गंगा साहित्य जगत में काफी चर्चित रही। उन्होंने मायड़ भाषा में मरूप्रदेश के लोकजीवन, परम्पराओं, संस्कारों, स्थापत्य एवं प्राकृतिक सौंदर्य का जीवंत चित्रण किया। उनकी रचना मरू गंगा, राजपूती, म्हारी धोराळी धरती, अपणायत, सुंदरता का बोध करवाती मैडम, मूमल, काळजियौ, काळी लिछमी, लॉटरी, जैसलमेर दुर्ग, टेलीफोन आदि लोकप्रिय हुई।

विदेशी मैडम पर लिखी कविता
पग ऊंची ऐडी रा चप्पल, कंचन बरणी कामणगारी। पग पींडलियां पळके बीजळ, हद गोळ बणी, संचै ढाळी।। छोकरड़ां सूं हंस करै बात, इक दिन बजार रौनक छाई। कर सात समंदर पार मडम, मरूधरती नै निरखण आई। स्व. श्रीपत ने यूरोप से आई एक विदेशी मेडम पर कविता लिखी थी जिसे खूब सराहा गया। कविता में फैशनेबल मेडम के मन में कुर्ती कांचली बनवाने का आने पर दर्जी के साथ उसके संवाद को राजस्थानी भाषा में स्व. श्रीपत ने बेहतर ढंग से पिरोया।

जीवन परिचय

वरिष्ठ कवि श्रीपत का जन्म 31 अक्टूबर 1932 को हुआ था। बीस वर्ष की अवस्था में ही शिक्षक बन गए। वर्ष 1991 में वे जिला शिक्षा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए। वहीं वर्ष 1976 में उन्हें राज्य स्तरीय शिक्षक का पुरस्कार मिला वहीं 2005 में राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर से विशिष्ट साहित्य पुरस्कार से सम्मानित हुए।

अपूरणीय क्षति

वरिष्ठ कवि श्यामसुंदर श्रीपत का रविवार को अंतिम संस्कार किया गया। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। इतिहासकार नंदकिशोर शर्मा ने कहा कि स्व. श्रीपत मायड़ भाषा के विख्यात कवि थे, उनके निधन से साहित्य जगत को क्षति पहुंची है। वरिष्ठ साहित्यकार दीनदयाल ओझा ने बताया कि स्व. श्रीपत राजस्थानी साहित्य के स्तंभ थे, उनके निधन से अपूरणीय क्षति हुई है। अंतरप्रांतीय कुमार साहित्य परिषद के सचिव लक्ष्मीनारायण खत्री ने कहा कि स्व. श्रीपत ने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य साधना में बिताया है।






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