सोमवार, 16 जनवरी 2012


नर्मदा नहर पर बने घाट पर पहलीबार हुआ मकर संक्रांति पर महास्नान


प्रमुख संतों समेत हजारों लोगों ने लगाई डुबकी, नर्मदा घाट पर हुई महाआरती

जालोर देश की प्रमुख और पवित्र नदियों में शामिल नर्मदा में पहली बार राजस्थान की धरती पर भी महास्नान का आयोजन हुआ। मकर संक्रांति के दिन रविवार को क्षेत्र के प्रमुख संतों की मौजूदगी में हजारों श्रद्धालुओं ने इसमें डुबकी लगाई और नर्मदा की महाआरती की।

दरअसल, नर्मदा नदी मध्यप्रदेश से निकलती है और गुजरात में बहती हुई अरब सागर में गिरती है, लेकिन वर्ष 2008 में इसका पानी नहर के जरिए राजस्थान में भी पहुंचा। जिस स्थान पर नर्मदा राज्य में प्रवेश करती है वहीं पर नर्मदेश्वर महादेव मंदिर और घाट की स्थापना की गई। नहर के आने के बाद यह पहला मौका था जब एक बड़े आयोजन के साथ हजारों की संख्या में लोगों ने इसमें स्नान किया और नदी की महाआरती की। महास्नान का आयोजन सनातन सेवा समिति की ओर से किया गया था। सवेरे से ही श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। लोगों ने सूर्यदेव की पहली किरण के साथ ही इसमें डुबकी लगाई। इसके बाद एक एक कर प्रमुख संत यहां पहुंचे और नर्मदा के पानी में स्नान किया।

इस बीच नर्मदेश्वर घाट नर्मदा नदी और महादेव के जयकारों से गूंजता रहा। इस अवसर पर आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए तारातरा मठ प्रतापपुरी ने कहा कि मकर मकर संक्रांति पर्व पर नर्मदा घाट पर स्नान करने पुण्य प्राप्त होता है। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी, जिससे उसका नाम सोमोद्धवा भी पड़ गया था। रामस्नेही संप्रदाय पुष्कर के जगदीश महाराज ने कहा कि नदी के किनारे बने घाटों में स्नान करने से पापों का नाश होता है। मुकाम पीठाधीश्वर आचार्य रामानंद महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति में हिन्दुओं के तीर्थ की पवित्रता पर महत्व डालते हुए कहा कि नर्मदा नहर पर बना नर्मदेश्वर घाट देश का अनूठा घाट है। लहर गिरी महाराज ने कहा कि नर्मदा दर्शन मात्र से पापों को दूर कर देती है। रणछोड़ भारती ने नर्मदा का महत्व बताते हुए कहा कि नदियों में श्रेष्ठ पुनीत नर्मदा पितरों की पुत्री है और इस पर किया गया श्राद्ध अक्षय होता है। इस अवसर पर हंसराज महाराज भीलवाड़ा और ज्ञानानंद महाराज ने भी प्रवचन दिया।







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