सुरों की मल्लिका ने वो किया जिसे सुनकर आप भी कहेंगे अरे बाप रे...
जम्मू-कश्मीर मलिका पुखराज ने अपनी ऑटोबॉयोग्राफी में लिखा है कि धुएं से भरी एक कोठरी में मेरी मां बेचारी तड़प रही थी तब मेरे नाना वहां के एक फ़क़ीर बाबा रोटी राम के पास दुआ मंगवाने ले गए। उन्होंने एक पकोड़ी मेरी मां को खाने को दी और कहा कि जो बच्ची पैदा होगी वो मलिका मुअज़मा की तरह होगी। सो यह भविष्यवाणी पूरी हुई। उनका आधा नाम बाबा का दिया हुआ है और उनकी बुआ ने उन्हें पुखराज नाम दिया। इस तरह वोमलिका पुखराज कहलाईं।
मलिका पुखराज बहुत ज़हीन बच्ची थीं, इसलिए चार बरस की उम्र से मास्टर गुलज़ार हसमेन से उर्दू की तालीम लेने लगीं। मास्टर अलीब़ श जो उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ां के वालिद थे, उन्हें संगीत सिखाने लगे। यही वजह है कि मलिका की तमाम तालीम की बुनियाद शास्त्रीय संगीत पर है। कुछ अरसे बाद उनका ख़ानदान दिल्ली आ गया और दिल्ली में उस्ताद आशिक अली और मौलाब़ख्श तलवंडी ने उन्हें संगीत की तालीम दी। उनकी ज़िंदगी का अहम मोड़ वह था जब वो नौ बरस की उम्र में अपने ख़ानदान के साथ जम्मू आईं। महाराजा कश्मीर हरि सिंह की ताजपोशी के मौक़े पर मलिका को उनके दरबार में गाना सुनाने का मौक़ा मिला और फिर नौ बरस की उम्र में यह बच्ची महाराजा के दरबार में जैसे एक गजेटेड ऑफीसर नियुक्त हो गईं। पांच सौ रुपए माहवार वज़ीफ़ा तय हुआ।
वहीं उन्हें ठुमरी, दादरा और ग़ज़ल गाने में महारात हासिल होने लगी। उन्हें महाराजा पटियाला जैसे मौसिक़ी के शैदाई को भी अपना गाना सुनाने का मौक़ा मिला। तक़रीबन 18 बरस की उम्र में उन्होंने दरबार से विदा ली। इसका कारण यही समझ में आता है कि वहां उनका फ़न सीमित होकर रह गया था और यह कोयल महज एक पिंजरे में नहीं बल्कि पूरे चमन में नग़मे गाने की ख्वाहिशमंद थी। दरबार छोड़ने के बाद वो रेडियो पर गाने लगीं। पाकिस्तान बनने से पहले ही उनके गाए गीत हिंदुस्तान में बहुत मशहूर हो गए। हफ़ीज़ जालंधरी का लिखा गीत ‘अभी तो मैं जवान हूं’ को पूरा हिंदुस्तान गुनगुनाने लगा। याद रहे कि बेगम अख्तर और सोलन बाई जैसी अज़ीम गाने वालियां इनकी समकालीन थीं। मलिका कहती हैं कि उनकी वालिदा ने उन्हें हर व़क्त मसरूफ़ रहने का हुनर सिखाया था।
वो पांच बरस की उम्र से इंतहाई मसरूफ़ बच्ची थीं। उन्होंने बाबा गुरुनानक का पोर्ट्रेट भी नीडिल वर्क से बनाया था। 1990 में कनाडा से आए कुछ सिख यात्रियों ने मलिका से दऱख्वास्त की कि वो पोट्र्रेट उन्हें अता कर दें। सो अब यह टोरंटो के गुरुद्वारे में लगा हुआ है। यह बात नाक़ाबिले-यक़ीन लगती है कि मां-बाप अपनी औलाद से जान छुड़ाने के बारे में भी सोचें। औलाद तो वह चीज़ है जिसके लिए मां-बाप अपनी जान देने के लिए भी तैयार रहते हैं। लेकिन बड़े-बूढ़ों के कहने के मुताबिक़ यह शायद वाक़ई कलियुग का दौर है। तभी तो हमें ऐसे वाक़यात मालूम होते हैं कि मां-बाप अपनी नन्ही-सी बच्ची को बाहर में छोड़ आए। इस पर यक़ीन नहीं आता, लेकिन ऐसा होता है। बेटे की ख़्वाहिश में पैदा होने वाली लड़की से निजात हासिल कर लेना अब कोई नई बात नहीं। क्योंकि साइंस ने यह आसान कर दिया है। हमारे यहां के मशहूर समाज सेवी अब्दुल स ार ईधी और उनकी बेगम बिल्क़ीस ईधी ने बहुत दिनों पहले ‘झूला स्कीम’ शुरू की थी।
आज भी रोज़ाना उनकी तरफ़ से ये इश्तिहार छपते हैं कि आप नई पैदा होने वाली लड़की या लड़के का गला घोंटकर न मारें, हमारे झूले में डाल जाएं, कोई आपसे कुछ नहीं बोलेगा। बिल्क़ीस कहती हैं कि गैरशादीशुदाओं के बच्चों की बात तो अलग है, लेकिन बहुत-से ऐसे ख़ानदान भी हैं जो ये नहीं जानते कि उनके घर पैदा होने वाली बेटियां उन पर बोझ नहीं। हाल ही में अख़बारों में यूनाइटेड नेशंस (यूएन) की एक रिपोर्ट छपी है कि अल्ट्रासाउंड टेक्नोलॉजी के इस ज़ालिमाना इस्तेमाल का सबसे बुरा असर एशिया पर पड़ा है और यहां लड़कों की तुलना में लड़कियों की तादाद कम हो गई है। यूएन का कहना है कि इस वक्त एशिया को 11.7 करोड़ लड़कियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
वियतनाम के शहर हनोई में हुई कांफ्रेंस से यह बात सामने आई कि लड़कियों की सबसे ज्यादा कमी चीन और हिंदुस्तान में है, जिसका असर इन मुल्कों में आने वाले 50 सालों तक रहेगा।हमारे यहां बेटों की चाह इतनी बढ़ चुकी है कि कराची में बाक़ायदा एक या दो दिन पहले पैदा होने वाले लड़कों को ख़रीदने और बेचने का शर्मनाक धंधा शुरू हो गया है। कुछ अरसा पहले कराची के सरकारी अस्पतालों में पैदा होने वाले छह बच्चों को अग़वा किया गया, जो सभी लड़के थे। दूसरों के बच्चे बेचने वाले इस गिरोह में औरतें और मर्द सब शामिल हैं। यह किस क़दर फ़ायदे का धंधा है, कुछ दिन पहले कराची की एक बस्ती लांढी के एक अस्पताल की लेडी डॉक्टर कुछ दिनों के एक बच्चे को बेचती हुई पकड़ी गई। आप ही सोचिए कि अगर ऐसे कामों में डॉ टर भी शरीक हो जाए और लेबर रूप में ही बच्चा बदल दिया जाए तो मां-बाप कहां जाएं और किससे फ़रियाद करें। बेटियों को बोझ समझकर मार डालने वाले मां-बाप ये क्यों नहीं समझते कि बेटी बड़ी होकर दुख-सुख बांट सकती है और हो सकता है कि बहुत दौलत और शोहरत कमाए। यह बात मुझे हमारे उपमहाद्वीप की प्रसिद्ध गायिका मलिका पुखराज की जिंदगी के हवाले से याद आई।
जम्मू-कश्मीर मलिका पुखराज ने अपनी ऑटोबॉयोग्राफी में लिखा है कि धुएं से भरी एक कोठरी में मेरी मां बेचारी तड़प रही थी तब मेरे नाना वहां के एक फ़क़ीर बाबा रोटी राम के पास दुआ मंगवाने ले गए। उन्होंने एक पकोड़ी मेरी मां को खाने को दी और कहा कि जो बच्ची पैदा होगी वो मलिका मुअज़मा की तरह होगी। सो यह भविष्यवाणी पूरी हुई। उनका आधा नाम बाबा का दिया हुआ है और उनकी बुआ ने उन्हें पुखराज नाम दिया। इस तरह वोमलिका पुखराज कहलाईं।
मलिका पुखराज बहुत ज़हीन बच्ची थीं, इसलिए चार बरस की उम्र से मास्टर गुलज़ार हसमेन से उर्दू की तालीम लेने लगीं। मास्टर अलीब़ श जो उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ां के वालिद थे, उन्हें संगीत सिखाने लगे। यही वजह है कि मलिका की तमाम तालीम की बुनियाद शास्त्रीय संगीत पर है। कुछ अरसे बाद उनका ख़ानदान दिल्ली आ गया और दिल्ली में उस्ताद आशिक अली और मौलाब़ख्श तलवंडी ने उन्हें संगीत की तालीम दी। उनकी ज़िंदगी का अहम मोड़ वह था जब वो नौ बरस की उम्र में अपने ख़ानदान के साथ जम्मू आईं। महाराजा कश्मीर हरि सिंह की ताजपोशी के मौक़े पर मलिका को उनके दरबार में गाना सुनाने का मौक़ा मिला और फिर नौ बरस की उम्र में यह बच्ची महाराजा के दरबार में जैसे एक गजेटेड ऑफीसर नियुक्त हो गईं। पांच सौ रुपए माहवार वज़ीफ़ा तय हुआ।
वहीं उन्हें ठुमरी, दादरा और ग़ज़ल गाने में महारात हासिल होने लगी। उन्हें महाराजा पटियाला जैसे मौसिक़ी के शैदाई को भी अपना गाना सुनाने का मौक़ा मिला। तक़रीबन 18 बरस की उम्र में उन्होंने दरबार से विदा ली। इसका कारण यही समझ में आता है कि वहां उनका फ़न सीमित होकर रह गया था और यह कोयल महज एक पिंजरे में नहीं बल्कि पूरे चमन में नग़मे गाने की ख्वाहिशमंद थी। दरबार छोड़ने के बाद वो रेडियो पर गाने लगीं। पाकिस्तान बनने से पहले ही उनके गाए गीत हिंदुस्तान में बहुत मशहूर हो गए। हफ़ीज़ जालंधरी का लिखा गीत ‘अभी तो मैं जवान हूं’ को पूरा हिंदुस्तान गुनगुनाने लगा। याद रहे कि बेगम अख्तर और सोलन बाई जैसी अज़ीम गाने वालियां इनकी समकालीन थीं। मलिका कहती हैं कि उनकी वालिदा ने उन्हें हर व़क्त मसरूफ़ रहने का हुनर सिखाया था।
वो पांच बरस की उम्र से इंतहाई मसरूफ़ बच्ची थीं। उन्होंने बाबा गुरुनानक का पोर्ट्रेट भी नीडिल वर्क से बनाया था। 1990 में कनाडा से आए कुछ सिख यात्रियों ने मलिका से दऱख्वास्त की कि वो पोट्र्रेट उन्हें अता कर दें। सो अब यह टोरंटो के गुरुद्वारे में लगा हुआ है। यह बात नाक़ाबिले-यक़ीन लगती है कि मां-बाप अपनी औलाद से जान छुड़ाने के बारे में भी सोचें। औलाद तो वह चीज़ है जिसके लिए मां-बाप अपनी जान देने के लिए भी तैयार रहते हैं। लेकिन बड़े-बूढ़ों के कहने के मुताबिक़ यह शायद वाक़ई कलियुग का दौर है। तभी तो हमें ऐसे वाक़यात मालूम होते हैं कि मां-बाप अपनी नन्ही-सी बच्ची को बाहर में छोड़ आए। इस पर यक़ीन नहीं आता, लेकिन ऐसा होता है। बेटे की ख़्वाहिश में पैदा होने वाली लड़की से निजात हासिल कर लेना अब कोई नई बात नहीं। क्योंकि साइंस ने यह आसान कर दिया है। हमारे यहां के मशहूर समाज सेवी अब्दुल स ार ईधी और उनकी बेगम बिल्क़ीस ईधी ने बहुत दिनों पहले ‘झूला स्कीम’ शुरू की थी।
आज भी रोज़ाना उनकी तरफ़ से ये इश्तिहार छपते हैं कि आप नई पैदा होने वाली लड़की या लड़के का गला घोंटकर न मारें, हमारे झूले में डाल जाएं, कोई आपसे कुछ नहीं बोलेगा। बिल्क़ीस कहती हैं कि गैरशादीशुदाओं के बच्चों की बात तो अलग है, लेकिन बहुत-से ऐसे ख़ानदान भी हैं जो ये नहीं जानते कि उनके घर पैदा होने वाली बेटियां उन पर बोझ नहीं। हाल ही में अख़बारों में यूनाइटेड नेशंस (यूएन) की एक रिपोर्ट छपी है कि अल्ट्रासाउंड टेक्नोलॉजी के इस ज़ालिमाना इस्तेमाल का सबसे बुरा असर एशिया पर पड़ा है और यहां लड़कों की तुलना में लड़कियों की तादाद कम हो गई है। यूएन का कहना है कि इस वक्त एशिया को 11.7 करोड़ लड़कियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
वियतनाम के शहर हनोई में हुई कांफ्रेंस से यह बात सामने आई कि लड़कियों की सबसे ज्यादा कमी चीन और हिंदुस्तान में है, जिसका असर इन मुल्कों में आने वाले 50 सालों तक रहेगा।हमारे यहां बेटों की चाह इतनी बढ़ चुकी है कि कराची में बाक़ायदा एक या दो दिन पहले पैदा होने वाले लड़कों को ख़रीदने और बेचने का शर्मनाक धंधा शुरू हो गया है। कुछ अरसा पहले कराची के सरकारी अस्पतालों में पैदा होने वाले छह बच्चों को अग़वा किया गया, जो सभी लड़के थे। दूसरों के बच्चे बेचने वाले इस गिरोह में औरतें और मर्द सब शामिल हैं। यह किस क़दर फ़ायदे का धंधा है, कुछ दिन पहले कराची की एक बस्ती लांढी के एक अस्पताल की लेडी डॉक्टर कुछ दिनों के एक बच्चे को बेचती हुई पकड़ी गई। आप ही सोचिए कि अगर ऐसे कामों में डॉ टर भी शरीक हो जाए और लेबर रूप में ही बच्चा बदल दिया जाए तो मां-बाप कहां जाएं और किससे फ़रियाद करें। बेटियों को बोझ समझकर मार डालने वाले मां-बाप ये क्यों नहीं समझते कि बेटी बड़ी होकर दुख-सुख बांट सकती है और हो सकता है कि बहुत दौलत और शोहरत कमाए। यह बात मुझे हमारे उपमहाद्वीप की प्रसिद्ध गायिका मलिका पुखराज की जिंदगी के हवाले से याद आई।
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