मां को बांटा महीनों में
श्रीगंगानगर । जिन बेटों को उसने पाल-पोस कर बड़ा किया। खुद लाख तकलीफें झेल कर सुख-सुविधाओं और पढ़ाई का ख्याल रखा, आज जब उसी मां की देखभाल का वक्त आया तो चारों बेटों ने उसे महीनों में बांट दिया। चारों के घर साल में तीन-तीन महीने ठिकाना और वह भी एक साथ नहीं। यह व्यथा है असहाय वृद्धों के लिए बने तपोवन आवेदना संस्थान में गुरूवार को बदहाल अवस्था में लाई गई अस्सी वर्षीय विद्यादेवी की।
लक्ष्मीनगर कॉलोनी निवासी इस वृद्धा के चारों बेटे संपन्न हैं। इस साल 4 जनवरी को विद्यादेवी बीमार पड़ी तो एकाएक बेटों ने नजरें फेरना शुरू कर दिया। जिस बेटे के पास वह रहती थी, उसने मां के बंटवारे का प्रस्ताव रखा। आखिरकार तय हुआ कि विद्यादेवी बारी-बारी से एक-एक महीने चारों बेटों के पास रहेंगी। इसकी शुरूआत अप्रेल से हुई। आस-पड़ोस के लोगों ने बताया कि नवम्बर में जिस बेटे की बारी थी, वह मां को घर में रखने की बजाय पास ही दूसरे घर के बाहर चबूतरे पर छोड़ आया। यह घर विद्यादेवी के नाम ही है। बेटे-बहू का नाता सुबह और शाम को रोटी-पानी तक सीमित था। इतना सब होने के बावजूद वह अपने बहू-बेटों की करनी को "समय का फेर" बता रही है।
हमारे दिन बुरे हैं: मां का बंटवारा करने के बारे में एक बेटे लीलाधर सिंघल का कहना है कि जो कुछ हुआ है, उसके बारे में अब क्या कहें। हमारी बहुत बेइज्जती हो गई। उधर, दूसरे बेटों ने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने मां को वापस लाने की बात जरूर कही।
कराह से पसीजे पड़ोसी
पिछले कुछ दिनों से बीमार रहने के कारण विद्यादेवी खाना ढंग से खा नहीं पा रही थीं। उसकी कराह सुन गुरूवार को विमला वर्मा नामक महिला ने वृद्धा की सुध ली और उसकी हालत देख सन्न रह गई। उसके शोर मचाने पर मोहल्ले के लोग एकत्र हो गए। सूचना पर तपोवन आवेदना संस्थान के लोग एम्बुलेंस लेकर पहुंचे और विद्यादेवी को संस्थान में लाकर उपचार शुरू करवाया।
विद्यादेवी को अब तभी उसके बेटों को सौंपा जाएगा, जब शहर के दो प्रमुख व्यक्तियों के सामने वे भविष्य में ऎसा नहीं करने का विश्वास दिलाएंगे।
महेश , अध्यक्ष, तपोवन आवेदना संस्थान
श्रीगंगानगर । जिन बेटों को उसने पाल-पोस कर बड़ा किया। खुद लाख तकलीफें झेल कर सुख-सुविधाओं और पढ़ाई का ख्याल रखा, आज जब उसी मां की देखभाल का वक्त आया तो चारों बेटों ने उसे महीनों में बांट दिया। चारों के घर साल में तीन-तीन महीने ठिकाना और वह भी एक साथ नहीं। यह व्यथा है असहाय वृद्धों के लिए बने तपोवन आवेदना संस्थान में गुरूवार को बदहाल अवस्था में लाई गई अस्सी वर्षीय विद्यादेवी की।
लक्ष्मीनगर कॉलोनी निवासी इस वृद्धा के चारों बेटे संपन्न हैं। इस साल 4 जनवरी को विद्यादेवी बीमार पड़ी तो एकाएक बेटों ने नजरें फेरना शुरू कर दिया। जिस बेटे के पास वह रहती थी, उसने मां के बंटवारे का प्रस्ताव रखा। आखिरकार तय हुआ कि विद्यादेवी बारी-बारी से एक-एक महीने चारों बेटों के पास रहेंगी। इसकी शुरूआत अप्रेल से हुई। आस-पड़ोस के लोगों ने बताया कि नवम्बर में जिस बेटे की बारी थी, वह मां को घर में रखने की बजाय पास ही दूसरे घर के बाहर चबूतरे पर छोड़ आया। यह घर विद्यादेवी के नाम ही है। बेटे-बहू का नाता सुबह और शाम को रोटी-पानी तक सीमित था। इतना सब होने के बावजूद वह अपने बहू-बेटों की करनी को "समय का फेर" बता रही है।
हमारे दिन बुरे हैं: मां का बंटवारा करने के बारे में एक बेटे लीलाधर सिंघल का कहना है कि जो कुछ हुआ है, उसके बारे में अब क्या कहें। हमारी बहुत बेइज्जती हो गई। उधर, दूसरे बेटों ने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने मां को वापस लाने की बात जरूर कही।
कराह से पसीजे पड़ोसी
पिछले कुछ दिनों से बीमार रहने के कारण विद्यादेवी खाना ढंग से खा नहीं पा रही थीं। उसकी कराह सुन गुरूवार को विमला वर्मा नामक महिला ने वृद्धा की सुध ली और उसकी हालत देख सन्न रह गई। उसके शोर मचाने पर मोहल्ले के लोग एकत्र हो गए। सूचना पर तपोवन आवेदना संस्थान के लोग एम्बुलेंस लेकर पहुंचे और विद्यादेवी को संस्थान में लाकर उपचार शुरू करवाया।
विद्यादेवी को अब तभी उसके बेटों को सौंपा जाएगा, जब शहर के दो प्रमुख व्यक्तियों के सामने वे भविष्य में ऎसा नहीं करने का विश्वास दिलाएंगे।
महेश , अध्यक्ष, तपोवन आवेदना संस्थान
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