समाधियों को संरक्षण की दरकार
पोकरण सामाजिक उपेक्षा एवं उचित देखरेख के अभाव में क्षेत्र की प्रमुख ऐतिहासिक धरोहर बांदोलाई तालाब एवं यहां पर स्थित स्वामी डूंगरपुरी की जीवित समाधि स्थल नष्ट प्राय होने के कगार पर पहुंच गई है। एक तरफ जहां केन्द्र एवं राज्य सरकार ऐतिहासिक धरोहरों एवं पर्यटन स्थलों के विकास के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च कर रही है वहीं दूसरी ओर किसी जमाने में पूरे क्षेत्र में विख्यात रहे इस स्थान के विकास की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
कभी यहां आते थे दूर-दूर से लोग: प्रसिद्घ संत डूंगरपुरी महाराज ने इसी बंादोलाई तालाब पर जीवित समाधि ली थी। पोकरण उपखण्ड सहित निकटवर्ती बाड़मेर जिले एवं फलोदी तहसील के अनेक गांवों के लोग यहां पर आते थे। जानकारी के अनुसार संत डूंगरपुरी के चमत्कारों से प्रभावित होने से यह स्थान अनेक लोगों के लिए आस्था केन्द्र बन गया। कालांतर में इस स्थान की उचित देखभाल होने के यहां पर अन्नक्षेत्र एवं एक गौशाला का भी संचालन किया जाता था। मगर धीरे-धीरे यह स्थान उपेक्षा का शिकार होने लगा। आज हालत यह है कि बांदोलोई पर स्थित महंत डूंगरपुरी की समाधि सहित अन्य संतों की समाधियां भी नष्ट प्राय होने की स्थिति में पहुंच गई है।
सैकड़ों बीघा भूमि पर हुआ अतिक्रमण : महंत के अनुसार बांदोलाई तालाब पर संत डूंगरपुरी के चमत्कारों से प्रभावित होकर तत्कालीन ठाकुर ने इस स्थान के नाम लगभग 13 सौ बीघा भूमि आवंटित की थी। उस समय यह स्थान भी डूंगरपुरी के ठिकाणे के नाम से विख्यात था। बीते लगभग तीस वर्षों के दौरान बांदोलाई की देखरेख नहीं होने के कारण सैकड़ों बीघा भूमि पर अतिक्रमणकारियों ने अपने कब्जा जमा लिए।
बबूल की झाडिय़ों के चलते तालाब का अस्तित्व संकट में : एक जमाना था जब शहर के लोग बरसात के मौसम में बांदोलाई तालाब पर पिकनिक मनाने तथा गोठ घुघरी करने के लिए जाया करते थे। इस मौसम में यहां पर लोगों की हर समय चहल पहल रहती थी। धीरे धीरे यह स्थान सूना हो जाने के कारण लोगों का यहां पर आना जाना पूरी तरह बंद हो गया। उसके परिणाम स्वरूप तालाब सहित पूरे परिसर में बबूल की झाडिय़ां इस कदर फैल गई है कि वहां से अकेले व्यक्ति का निकलना भी दूभर हो गया है। लगभग बीस फुट ऊंचाई में लगी बबूल की झाडिय़ां एकदम घाट के किनारे तक फैल जाने के कारण तालाब का अस्तित्व भी खतरे में पड़ता नजर आ रहा है।
उपेक्षा से तालाब की हुई दुर्दशा : इस धरोहर के प्रति प्रशासन पूरी तरह उपेक्षित रवैया अपनाए हुए है। जिसके कारण आज यह स्थान बदतर हालत में पहुंच गया है। समय समय पर चलने वाले अकाल राहत कार्यों एवं अन्य विकास योजनाओं के तहत यदि इस स्थान के विकास की ओर थोड़ा बहुत भी ध्यान दिया जाता तो यह धरोहर आज नष्ट होने के कगार पर नहीं पहुंचती।
पोकरण सामाजिक उपेक्षा एवं उचित देखरेख के अभाव में क्षेत्र की प्रमुख ऐतिहासिक धरोहर बांदोलाई तालाब एवं यहां पर स्थित स्वामी डूंगरपुरी की जीवित समाधि स्थल नष्ट प्राय होने के कगार पर पहुंच गई है। एक तरफ जहां केन्द्र एवं राज्य सरकार ऐतिहासिक धरोहरों एवं पर्यटन स्थलों के विकास के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च कर रही है वहीं दूसरी ओर किसी जमाने में पूरे क्षेत्र में विख्यात रहे इस स्थान के विकास की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
कभी यहां आते थे दूर-दूर से लोग: प्रसिद्घ संत डूंगरपुरी महाराज ने इसी बंादोलाई तालाब पर जीवित समाधि ली थी। पोकरण उपखण्ड सहित निकटवर्ती बाड़मेर जिले एवं फलोदी तहसील के अनेक गांवों के लोग यहां पर आते थे। जानकारी के अनुसार संत डूंगरपुरी के चमत्कारों से प्रभावित होने से यह स्थान अनेक लोगों के लिए आस्था केन्द्र बन गया। कालांतर में इस स्थान की उचित देखभाल होने के यहां पर अन्नक्षेत्र एवं एक गौशाला का भी संचालन किया जाता था। मगर धीरे-धीरे यह स्थान उपेक्षा का शिकार होने लगा। आज हालत यह है कि बांदोलोई पर स्थित महंत डूंगरपुरी की समाधि सहित अन्य संतों की समाधियां भी नष्ट प्राय होने की स्थिति में पहुंच गई है।
सैकड़ों बीघा भूमि पर हुआ अतिक्रमण : महंत के अनुसार बांदोलाई तालाब पर संत डूंगरपुरी के चमत्कारों से प्रभावित होकर तत्कालीन ठाकुर ने इस स्थान के नाम लगभग 13 सौ बीघा भूमि आवंटित की थी। उस समय यह स्थान भी डूंगरपुरी के ठिकाणे के नाम से विख्यात था। बीते लगभग तीस वर्षों के दौरान बांदोलाई की देखरेख नहीं होने के कारण सैकड़ों बीघा भूमि पर अतिक्रमणकारियों ने अपने कब्जा जमा लिए।
बबूल की झाडिय़ों के चलते तालाब का अस्तित्व संकट में : एक जमाना था जब शहर के लोग बरसात के मौसम में बांदोलाई तालाब पर पिकनिक मनाने तथा गोठ घुघरी करने के लिए जाया करते थे। इस मौसम में यहां पर लोगों की हर समय चहल पहल रहती थी। धीरे धीरे यह स्थान सूना हो जाने के कारण लोगों का यहां पर आना जाना पूरी तरह बंद हो गया। उसके परिणाम स्वरूप तालाब सहित पूरे परिसर में बबूल की झाडिय़ां इस कदर फैल गई है कि वहां से अकेले व्यक्ति का निकलना भी दूभर हो गया है। लगभग बीस फुट ऊंचाई में लगी बबूल की झाडिय़ां एकदम घाट के किनारे तक फैल जाने के कारण तालाब का अस्तित्व भी खतरे में पड़ता नजर आ रहा है।
उपेक्षा से तालाब की हुई दुर्दशा : इस धरोहर के प्रति प्रशासन पूरी तरह उपेक्षित रवैया अपनाए हुए है। जिसके कारण आज यह स्थान बदतर हालत में पहुंच गया है। समय समय पर चलने वाले अकाल राहत कार्यों एवं अन्य विकास योजनाओं के तहत यदि इस स्थान के विकास की ओर थोड़ा बहुत भी ध्यान दिया जाता तो यह धरोहर आज नष्ट होने के कगार पर नहीं पहुंचती।
इन संतों ने ली जीवित समाधि महंत शंभूपुरी के अनुसार यहां पर 52 संतो ने जीवित समाधियां ली हैं। इनमें से विक्रम संवत 1756 में संत भावपुरी, विक्रम संवत 1880 में जुगतपुरी, विक्रम संवत 1899 में गुरु जोगपुरी उसके शिष्य जगतपुरी ने जीवित समाधि ली। इसी प्रकार विक्रम संवत 1914 में संत मोतीपुरी, विक्रम संवत 1942 में दरियारपुरी, विक्रम संवत 1965 में हरदतपुरी तथा विक्रम संवत 2008 में अंतिम जीवित समाधि के रूप में चिमनपुरी ने समाधि ली। वह बताते हैं कि आज भी इन समाधियों के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। |
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