मुहर्रम मुस्लिम कैलेण्डर का पहला महीना है। यह पर्व मूलत: इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है। सऊदी अरब में मक्का में कर्बला की घटना की याद में यह पर्व मनाया जाता है जिसमें अल्लाह के देवदूत मोहम्मद साहब की पुत्री फातिमा के दूसरे बेटे इमाम हुसैन का निर्दयतापूर्वक कत्ल कर दिया गया था।
यजीद की सेना के विरुद्ध जंग लड़ते हुए इमाम हुसैन के पिता हजरत अली का संपूर्ण परिवार मौत के घाट उतार दिया गया था और मुहर्रम के दसवे दिन इमाम हुसैन भी इस युद्ध में शहीद हो गए थे। मुहर्रम के दसवें दिन ही मुस्लिम संप्रदाय द्वारा ताजिए निकाले जाते हैं। लकड़ी, बांस व रंग-बिरंगे कागज से सुसज्जित ये ताजिए हजरत इमाम हुसैन के मकबरे के प्रतीक के रूप में माने जाते हैं।
इसी जुलूस में इमाम हुसैन के सैन्य बल के प्रतीकस्वरूप अनेक शस्त्रों के साथ युद्ध की कलाबाजियां दिखाते हुए चलते हैं। मुहर्रम के जुलूस में लोग इमाम हुसैन के प्रति अपनी संवेदना दर्शाने के लिए बाजों पर शोक-धुन बजाते हैं और शोक गीत(मर्शिया) गाते हैं। मुस्लिम संप्रदाय के लोग शोकाकुल होकर विलाप करते हैं और अपनी छाती पीटते हैं। इस प्रकार इमाम हुसैन की शहादत की याद में यह पर्व मनाया जाता है।
यजीद की सेना के विरुद्ध जंग लड़ते हुए इमाम हुसैन के पिता हजरत अली का संपूर्ण परिवार मौत के घाट उतार दिया गया था और मुहर्रम के दसवे दिन इमाम हुसैन भी इस युद्ध में शहीद हो गए थे। मुहर्रम के दसवें दिन ही मुस्लिम संप्रदाय द्वारा ताजिए निकाले जाते हैं। लकड़ी, बांस व रंग-बिरंगे कागज से सुसज्जित ये ताजिए हजरत इमाम हुसैन के मकबरे के प्रतीक के रूप में माने जाते हैं।
इसी जुलूस में इमाम हुसैन के सैन्य बल के प्रतीकस्वरूप अनेक शस्त्रों के साथ युद्ध की कलाबाजियां दिखाते हुए चलते हैं। मुहर्रम के जुलूस में लोग इमाम हुसैन के प्रति अपनी संवेदना दर्शाने के लिए बाजों पर शोक-धुन बजाते हैं और शोक गीत(मर्शिया) गाते हैं। मुस्लिम संप्रदाय के लोग शोकाकुल होकर विलाप करते हैं और अपनी छाती पीटते हैं। इस प्रकार इमाम हुसैन की शहादत की याद में यह पर्व मनाया जाता है।
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