रविवार, 4 दिसंबर 2011

चिदार्पिता की दिल झकझोर देने वाली कहानी, उन्हीं की जुबानी!



लखनऊ।पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ शाहजहांपुर में दुष्कर्म एवं हत्या के प्रयास के आरोप की प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद साध्वी चिदार्पिता ने न्याय के लिए शंखनाद कर दिया है।

उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर लिखा है कि, ''मैंने अपने अधिकार की लड़ाई छेड़ दी है। ईश्वर पर पूरा भरोसा है। अगर उनकी इच्छा मुझे न्याय दिलवाने की और एक अन्यायी को सज़ा दिलावने की नहीं होती तो यह घटनाएं इस क्रम में न घटतीं जिस क्रम में घटीं। आज मेरे चारों ओर केवल स्तब्ध चेहरे और सवालों के झुण्ड हैं। सवालों की जड़ में आश्चर्य है कि आखिर एक लड़की इतनी हिम्मती कैसे हो गयी? मैं केवल एक लड़की नहीं बल्कि वह निमित्त हूँ जिससे पापी के पाप का अंत होगा।



जो मेरे चरित्र पर ऊँगली उठा रहे हैं वे केवल एक बात पर ध्यान दें कि इससे किसी का सबसे अधिक नुक्सान हुआ है तो वह मैं हूँ। एक तरह से मैं अपनी बलि देकर ही यह युद्ध लड़ रही हूं। इस लड़ाई के बाद मेरे पास क्या बचेगा क्या नहीं मुझे नहीं पता पर स्वाभिमान अवश्य बचेगा यह विश्वास है। वही मेरी पूंजी होगी।'' साध्वी चिदार्पिता ने आगे लिखा है कि, ''बचपन से ही ईश्वर में अटूट आस्था थी। मां के साथ लगभग हर शाम मंदिर जाती थी। इसी बीच मां की सहेली ने हरिद्वार में भागवत कथा का आयोजन किया और मुझे वहां मां के साथ जाने का अवसर मिला।



उसी समय स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती से परिचय हुआ। वे उस समय जौनपुर से सांसद थे। मेरी उम्र लगभग बीस वर्ष थी। वे मुझे सन्यास के लिए मानसिक रूप से तैयार करने लगे। एक समय आया, जब लगा कि अब मैं सन्यास के लिए मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार हूं। तब मैंने स्वामी जी से सन्यास के लिए कहा। उन्होंने कहा, पहले दीक्षा होगी, उसके कुछ समय बाद सन्यास। 2002 में मेरी दीक्षा हुई और मुझे नाम दिया गया- साध्वी चिदर्पिता। स्वामी जी ने आदेश दिया कि तुम शाहजहांपुर स्थित मुमुक्ष आश्रम में रहो।



इस बीच कई बार मैंने स्वामी जी से सन्यास की चर्चा की। उन्होंने हर बार उसे अगले साल पर टाल दिया। इसी दौरान मैं गौतम के संपर्क में आई। उस समय उन्होंने प्रकट नहीं किया पर उनके हृदय में मेरे प्रति प्रेम था। उन्होंने बिना किसी संकोच के कहा, आप चुनाव लडि़ए। मैंने जब यह बात स्वामीजी से कही तो वह मेरा उत्साह बढ़ाने के बजाए मुझ पर बरस पड़े। उनके उस रूप को देखकर मैं स्तब्ध थी।



उस समय हमारी जो बात हुई, उसका निचोड़ यह निकला कि उन्होंने कभी मेरे लिए कुछ सोचा ही नहीं। उनकी यही अपेक्षा थी कि मैं गृहिणी न होकर भी गृहिणी की तरह आश्रम की देखभाल करूं। फिर मैं आश्रम छोड़कर आ गई। शून्य से जीवन शुरू करना था पर कोई चिंता नहीं थी। एक मजबूत कंधा मेरे साथ था। श्राद्ध पक्ष खत्म होने तक मैं गौतम जी के परिवार के साथ रही। वहां मुझे भरपूर स्नेह मिला। नवरात्र शुरू होते ही हमने विवाह कर लिया। मैने इस विवाह को ईश्वरीय आदेश माना है।''



वहीं, स्वामी चिन्मयानंद ने आरोपों को निराधार बेबुनियाद और राजनीति से प्रेरित बताया है। चिदार्पिता ने पिछले दिनों आश्रम छोड़कर एक पत्रकार से विवाह कर लिया। यह आरोप उसके बाद लगाए गए हैं। विवाह करने के पहले वह स्वामी के मुमुक्षक आश्रम से जुड़े स्कूल की प्रिंसिपल थीं।

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