शनिवार, 3 दिसंबर 2011

विश्व विकलांग दिवस पर...... स्वरोजगार और स्वाभिमान की जिंदगी जी रहे विकलांग

स्वरोजगार और स्वाभिमान की जिंदगी जी रहे विकलांग

बाड़मेर। लोग भले इन्हें विकलांग समझ कर उनके प्रति सहानुभूति रखते हो, लेकिन ये लोग विकलांग के अभिशाप को पीछे छोड़ आमजन को जीने की राह दिखा रहे है। जिले के कई विकलांग ऎसे है जो स्वरोजगार के साथ स्वाभिमान की जिंदगी जी रहे है तो कोई खुद विकलांग होकर दूसरों की सेवा कर समाज को नई दिशा दे रहा है।

जिला मुख्यालय के जूना केराडू मार्ग पर अपनी पुश्तैनी हस्त उद्योग की दुकान चलाने वाले मांगीलाल सिंघवी दोनों पैरों से विकलांग है। ऎसे में उन्होंने अपने हाथों का पैर बना दिया है। उस पर वे इधर-उधर चलते है तथा अपना पुश्तैनी धंधा अपने भाईयों के साथ संभालते है। उनके अनुसार स्वाभिमान की जिंदगी जीना सुखद होता है और आत्म सम्मान बढ़ाता है। इतना ही नहीं वे चार पहिया वाहन भी चला लेते है।

इसके लिए उन्होंने गाड़ी में कुछ परिवर्तन करवाया लिया जिससे वे बे्रक और गियर हाथों से लगा सके। इसी तरह जिला मुख्यालय पर ऑटो रिक्शा चला रहे नरपतगिरी भी जन्म से पैरों से विकलांग है। उन्होंने पर अपने पैरों पर खड़े होने का निर्णय किया और पिछले नौ साल से ऑटोरिक्शा चला गुजर बसर कर रहे है। बतौर नरपतगिरी बेचारगी की जिंदगी से स्वाभिमान की जिंदगी लाख गुना बेहतर होती है।

वे इससे भी दो कदम आगे निकल कर बहादूरी का कारनामा भी करते हैं। वर्ष 2008 में जोधपुर में हुए राज्य स्तरीय नि:शक्तजन खेलकूद प्रतियोगिता में छाती से पत्थर तोड़ने व टयूबलाईन तोड़ने जैसे कारनामे कर पुरस्कार प्राप्त किया। डिस्कॉम के कार्मिक जगदीश छाजेड़ रेगिस्तान विकलांग विकास संगठन के जिलाध्यक्ष है और समाज सेवा को कृत संकल्पित। लॉयन क्लब सहित कई संगठनों से जुड़े जगदीश छाजेड़ विकलांगों की समस्याओं को लेकर तत्पर रहते है और उनका मार्गदर्शन करते हैं। साथ ही वे प्रतिदिन राजकीय अस्पताल पहुंच वहां समाज सेवा करते है। उन्होंने अपना जीवन विकलांग और समाज की सेवा का समर्पित कर दिया है।

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