जालोर के वैभव का प्रतीक है ‘कान्हड़ दे प्रबंध’
जालोर जालोर के गौरवशाली इतिहास के महान ग्रंथ ‘कान्हड़ दे प्रबंध’ को 556 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर शहर के राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय में गुजरात विश्वविद्यालय एकेडमिक स्टाफ निदेशक प्रसाद ब्रह्मभट्ट के मुख्य आतिथ्य में शनिवार शाम चार बजे विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर बनासकांठा उपभोक्ता संरक्षण मंच अध्यक्ष एच.के. ठाकोर, एडवोकेट मधुसूदन व्यास व व्याख्याता अर्जुनसिंह उज्ज्वल मौजूद थे। गोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों ने मां शारदा की तस्वीर के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया। गोष्ठी को संबोधित करते हुए एडवोकेट व्यास ने जालोर से जुड़े ऐतिहासिक व प्राचीन ग्रंथ कान्हड़ दे प्रबंध के बारे में जानकारी दी। इसी तरह परिषद के निदेशक संदीप जोशी ने ग्रंथ के अनुसार जालोर को 8वीं मोक्ष पुरी बताते हुए सभी का आभार जताया। इस मौके सरदार सिंह चारण, हरिशंकर राजपुरोहित, दीपसिंह, रविंद्र सिंह बालावत, सुरेंद्र नाग, महेंद्र अग्रवाल, प्रवीण अग्रवाल, धनराज दवे, खीमसिंह व जयनारायण समेत काफी लोग मौजूद थे
राजस्थानी कविता ने भरा जोश : शहर के रचनाकार अचलेश्वर आनंद ने ‘सोने रे आखर लिखियोरी, आ स्वर्ण गिरी री शुभा गाथा...’ के माध्यम से जालोर की भौगोलिक स्थिति, यहां से जुड़े शूरवीर व जाबालि ऋषि जैसे तपस्वियों द्वारा किए गए तप के बारे में बताया। कविता के माध्यम से बताया गया कि भगवान राम के अग्नि बाण के कारण दक्षिण सागर सूख गया और उस तेज को रोकने के लिए जाबालि ऋषि द्वारा यहां घोर तप किया गया। जिसके बाद यहां जालोर यानी जाबालिपुर बसाया गया।
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