जहाज रेगिस्तान के या पानी के!
भुज। रण (रेगिस्तान) के वाहन माने जाने वाले ऊंट को समुद्र में तैरते देखा है? जी हां, ये ऊंट गहरे पानी में तैर कर समुद्र भी पार करते हैं। कच्छ में खाराई (खाराश) किस्म के ऊंट मैंग्रूव वनस्पति चरने के लिए हर रोज मुंद्रा तट पर समुद्र की खाक छानते हैं। वनस्पति के लिए ये ऊंट रोज सात किलोमीटर तक का सफर पानी में तय करते हैं। समुद्र पार करने वाले ये ऊंट केवल कच्छ में ही पाए जाते हैं। कच्छ में इनकी संख्या करीब 2200 है, जबकि दस साल पहले इनकी संख्या 5 हजार थी।
कच्छ की सहजीवन नामक स्वैच्छिक संस्था के कार्यक्रम संयोजक रमेश भट्टी कहते हैं कि समुद्र में तैरने की क्षमता रखने वाले खाराई ऊंट अन्य कच्छी ऊंटों के मुकाबले अलग होते हैं। खाराई ऊंट वजन में हल्के होते हैं। उनके कान छोटे होते हैं और उनकी खूंध भी छोटी होती है। कच्छ में मुंद्रा के टुंडावांढ, अबसाड़ा के मोहाडी, लैयारी और भचाऊ के जंगी गांव में देखे जाते हैं।
भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार ऊंटों की आबादी चिंताजनक ढंग से कम हो रही है। कच्छ में चर भूमि कम हो रही है। कच्छ में रबारी, मुस्लिम जाति और समा जाति के लोग ऊंट पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।
स्थानीय स्तर पर नर ऊंट का माल परिवहन में उपयोग होता है। हालांकि, अब मादा ऊंट के दूध को बेचकर आय प्राप्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
सरकार उदासीन
इतना महत्व होते हुए भी गुजरात सरकार इन्हें लेकर उदासीन है, क्योंकि इन ऊंटों में फिटडो और खाजी नामक बीमारी फैलती है, जो इनके लिए जानलेवा होती है। राज्य सरकार ने इस बीमारी के लिए महज 20 लाख रूपए ही आवंटित किए हैं।
07 किमी तक तैर जाते हैं समुद्र में
2200 ही बचे हैं
05 हजार थे 10 साल पहले तक
भुज। रण (रेगिस्तान) के वाहन माने जाने वाले ऊंट को समुद्र में तैरते देखा है? जी हां, ये ऊंट गहरे पानी में तैर कर समुद्र भी पार करते हैं। कच्छ में खाराई (खाराश) किस्म के ऊंट मैंग्रूव वनस्पति चरने के लिए हर रोज मुंद्रा तट पर समुद्र की खाक छानते हैं। वनस्पति के लिए ये ऊंट रोज सात किलोमीटर तक का सफर पानी में तय करते हैं। समुद्र पार करने वाले ये ऊंट केवल कच्छ में ही पाए जाते हैं। कच्छ में इनकी संख्या करीब 2200 है, जबकि दस साल पहले इनकी संख्या 5 हजार थी।
कच्छ की सहजीवन नामक स्वैच्छिक संस्था के कार्यक्रम संयोजक रमेश भट्टी कहते हैं कि समुद्र में तैरने की क्षमता रखने वाले खाराई ऊंट अन्य कच्छी ऊंटों के मुकाबले अलग होते हैं। खाराई ऊंट वजन में हल्के होते हैं। उनके कान छोटे होते हैं और उनकी खूंध भी छोटी होती है। कच्छ में मुंद्रा के टुंडावांढ, अबसाड़ा के मोहाडी, लैयारी और भचाऊ के जंगी गांव में देखे जाते हैं।
भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार ऊंटों की आबादी चिंताजनक ढंग से कम हो रही है। कच्छ में चर भूमि कम हो रही है। कच्छ में रबारी, मुस्लिम जाति और समा जाति के लोग ऊंट पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।
स्थानीय स्तर पर नर ऊंट का माल परिवहन में उपयोग होता है। हालांकि, अब मादा ऊंट के दूध को बेचकर आय प्राप्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
सरकार उदासीन
इतना महत्व होते हुए भी गुजरात सरकार इन्हें लेकर उदासीन है, क्योंकि इन ऊंटों में फिटडो और खाजी नामक बीमारी फैलती है, जो इनके लिए जानलेवा होती है। राज्य सरकार ने इस बीमारी के लिए महज 20 लाख रूपए ही आवंटित किए हैं।
07 किमी तक तैर जाते हैं समुद्र में
2200 ही बचे हैं
05 हजार थे 10 साल पहले तक
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