19 बरस पहले भी एक भंवरी के साथ हुआ था गैंग रेप,
आज भी लड़ रही है न्याय के लिए
जयपुर. भंवरी देवी के कारण आज पूरी राजस्थान सरकार मुसीबत में है तो बरसों पहले एक और भंवरी देवी के कारण राजस्थान सरकार की पूरी दुनिया में बदनामी हो चुकी है। यह भंवरी देवी आज भी न्याय के लिए लड़ रही हैं।
19 साल पहले खुद पर हुए जुल्म के लिए भले ही भंवरी देवी को न्याय नहीं मिला हो, लेकिन वह लोगों को न्याय दिलाने के लिए लगातार लड़ रही हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर से 52 किलोमीटर दूर भटेरी गांव की भंवरी देवी के साथ 22 सितंबर 1992 को गांव के ही गुर्जरों ने सामूहिक बलात्कार किया। लेकिन आज तक उसे अंतिम इंसाफ नहीं मिल पाया। जबकि पांच आरोपियों में से तीन की मौत हो चुकी है।
भंवरी कहती हैं, ‘भले ही कितने साल बीत गए हों, लेकिन मैं अंतिम सांस तक लड़ती रहूंगी। मैं नहीं चाहती हूं कि अब और कोई महिला मेरी तरह न्याय के इंतजार में भटके। मैं तो बस इतना चाहती हूं इस तरह की दुर्घटना से आहत स्त्री को तुरंत न्याय मिले। सरकार कानून तो बहुत बनाती हे लेकिन उसका पालन भी करे। यदि पालन नहीं कर सकती, तो उसे कानून बनाना बंद कर देना चाहिए।’
भंवरी का बड़ा बेटा कई साल पहले अपनी पत्नी के साथ गांव छोड़कर चला गया, क्योंकि उसे लगता था कि उसकी मां की वजह से उसकी बदनामी हो रही है। बचे हुए परिवार की चिंता करते हुए वह कहती हैं, ‘मुझे और मेरे परिवार को हमेशा खतरा बना रहता है।’ दरअसल गांव के लोग कभी उसे, तो कभी उसके बेटे बहू को तंग करते रहते हैं। ऐसे में उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वह जाए तो जाए कहां?
बॉलीवुड में भले ही उसे लेकर बवंडर जैसी फिल्म बन गई हो, लेकिन उसकी जिंदगी का बवंडर आज भी नहीं थमा है। फिल्म बनाने के दौरान नंदिता दास और फिल्म के निर्देशक जगमोहन मूंदड़ा उसके गांव भी गए थे। दोनों ने उसे अपनी बहन मानकर हमेशा मदद का वादा किया था, लेकिन फिल्म बनने के बाद कभी किसी ने उसकी जिंदगी में पलटकर नहीं देखा। भंवरी कहती हैं कि नंदिता ने मुझे बहन माना था। कहा था कि आगे हमेशा मिलती रहूंगी लेकिन आज तक दर्शन नहीं दिए और ना ही कभी कोई मदद ही की।
खुद पर बनी फिल्म को भी भंवरी नहीं देख पाईं। वह कहती हैं कि थोड़ी देर की फिल्म देखी फिर दिमाग खराब हो गया। फिल्म तो बन गई लेकिन कोई बदलाव नहीं आया।
विदेश से आई मदद
भंवरी की जिंदगी पर बनी फिल्म देखने के बाद दुनियाभर की महिलाओं ने उसकी मदद की थी। लंदन की औरतों ने दो लाख रुपए भेजे थे, तो चीन में यूनाईटेड नेशन की फोर्थ वर्ल्ड कांफ्रेस ऑन वुमेन में उसे बुलाया गया था। इसी प्रकार १९९४ में नीरजा भनोट मेमोरियल अवार्ड से भी उसे सम्मानित किया गया।
मिसाल बन चुकी हैं
भंवरी आज न सिर्फ अपने गांव की बल्कि पूरी दुनिया की औरतों के लिए एक मिसाल हैं। अपने गांव में उन्होंने न सिर्फ बाल विवाह जैसी कुरीतियों को बंद करवाया बल्कि लगातार कई मोर्चो पर आज भी लड़ रही हैं। भंवरी का कहना है कि अब उनके गांव में बाल विवाह नहीं होता है। गांव में कोई भ्रूण हत्या करवाने की कोशिश करता है तो भंवरी उसे समझाती हैं। यदि कोई सफाई करवाने की कोशिश करता है तो वह उसे जेल भेजने की धमकी देती हैं।
दूसरे के लिए लड़ने वाली भंवरी आज खुद न्याय की मोहताज हैं। अपने दर्द को बयां करती हुई वह कहती हैं कि मैं अब किससे कहूं। न तो सरकार सुनती है और न गांव के लोग। आए दिन गांववाले उन्हें व उनके परिवार को पीटने के लिए आते हैं। पुलिस के पास शिकायत ले जाने पर भी कोई कार्यवाही नहीं होती। कानून को गवाह चाहिए। लेकिन जिस समाज से वह ताल्लुक रखती हैं वह, जब साथ खड़े होने को तैयार नहीं तो भला गवाही कौन देगा?
उम्मीद की कोई किरण नजर ना आने के बावजूद, उनके अंदर कुछ ऐसा जज्बा है जो उन्हें निरंतर लड़ने की क्षमता और प्रेरणा देता है। उनका प्रण है कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता, वे इस लड़ाई को जारी रखेंगी।
जयपुर. भंवरी देवी के कारण आज पूरी राजस्थान सरकार मुसीबत में है तो बरसों पहले एक और भंवरी देवी के कारण राजस्थान सरकार की पूरी दुनिया में बदनामी हो चुकी है। यह भंवरी देवी आज भी न्याय के लिए लड़ रही हैं।
19 साल पहले खुद पर हुए जुल्म के लिए भले ही भंवरी देवी को न्याय नहीं मिला हो, लेकिन वह लोगों को न्याय दिलाने के लिए लगातार लड़ रही हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर से 52 किलोमीटर दूर भटेरी गांव की भंवरी देवी के साथ 22 सितंबर 1992 को गांव के ही गुर्जरों ने सामूहिक बलात्कार किया। लेकिन आज तक उसे अंतिम इंसाफ नहीं मिल पाया। जबकि पांच आरोपियों में से तीन की मौत हो चुकी है।
भंवरी कहती हैं, ‘भले ही कितने साल बीत गए हों, लेकिन मैं अंतिम सांस तक लड़ती रहूंगी। मैं नहीं चाहती हूं कि अब और कोई महिला मेरी तरह न्याय के इंतजार में भटके। मैं तो बस इतना चाहती हूं इस तरह की दुर्घटना से आहत स्त्री को तुरंत न्याय मिले। सरकार कानून तो बहुत बनाती हे लेकिन उसका पालन भी करे। यदि पालन नहीं कर सकती, तो उसे कानून बनाना बंद कर देना चाहिए।’
भंवरी का बड़ा बेटा कई साल पहले अपनी पत्नी के साथ गांव छोड़कर चला गया, क्योंकि उसे लगता था कि उसकी मां की वजह से उसकी बदनामी हो रही है। बचे हुए परिवार की चिंता करते हुए वह कहती हैं, ‘मुझे और मेरे परिवार को हमेशा खतरा बना रहता है।’ दरअसल गांव के लोग कभी उसे, तो कभी उसके बेटे बहू को तंग करते रहते हैं। ऐसे में उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वह जाए तो जाए कहां?
बॉलीवुड में भले ही उसे लेकर बवंडर जैसी फिल्म बन गई हो, लेकिन उसकी जिंदगी का बवंडर आज भी नहीं थमा है। फिल्म बनाने के दौरान नंदिता दास और फिल्म के निर्देशक जगमोहन मूंदड़ा उसके गांव भी गए थे। दोनों ने उसे अपनी बहन मानकर हमेशा मदद का वादा किया था, लेकिन फिल्म बनने के बाद कभी किसी ने उसकी जिंदगी में पलटकर नहीं देखा। भंवरी कहती हैं कि नंदिता ने मुझे बहन माना था। कहा था कि आगे हमेशा मिलती रहूंगी लेकिन आज तक दर्शन नहीं दिए और ना ही कभी कोई मदद ही की।
खुद पर बनी फिल्म को भी भंवरी नहीं देख पाईं। वह कहती हैं कि थोड़ी देर की फिल्म देखी फिर दिमाग खराब हो गया। फिल्म तो बन गई लेकिन कोई बदलाव नहीं आया।
विदेश से आई मदद
भंवरी की जिंदगी पर बनी फिल्म देखने के बाद दुनियाभर की महिलाओं ने उसकी मदद की थी। लंदन की औरतों ने दो लाख रुपए भेजे थे, तो चीन में यूनाईटेड नेशन की फोर्थ वर्ल्ड कांफ्रेस ऑन वुमेन में उसे बुलाया गया था। इसी प्रकार १९९४ में नीरजा भनोट मेमोरियल अवार्ड से भी उसे सम्मानित किया गया।
मिसाल बन चुकी हैं
भंवरी आज न सिर्फ अपने गांव की बल्कि पूरी दुनिया की औरतों के लिए एक मिसाल हैं। अपने गांव में उन्होंने न सिर्फ बाल विवाह जैसी कुरीतियों को बंद करवाया बल्कि लगातार कई मोर्चो पर आज भी लड़ रही हैं। भंवरी का कहना है कि अब उनके गांव में बाल विवाह नहीं होता है। गांव में कोई भ्रूण हत्या करवाने की कोशिश करता है तो भंवरी उसे समझाती हैं। यदि कोई सफाई करवाने की कोशिश करता है तो वह उसे जेल भेजने की धमकी देती हैं।
दूसरे के लिए लड़ने वाली भंवरी आज खुद न्याय की मोहताज हैं। अपने दर्द को बयां करती हुई वह कहती हैं कि मैं अब किससे कहूं। न तो सरकार सुनती है और न गांव के लोग। आए दिन गांववाले उन्हें व उनके परिवार को पीटने के लिए आते हैं। पुलिस के पास शिकायत ले जाने पर भी कोई कार्यवाही नहीं होती। कानून को गवाह चाहिए। लेकिन जिस समाज से वह ताल्लुक रखती हैं वह, जब साथ खड़े होने को तैयार नहीं तो भला गवाही कौन देगा?
उम्मीद की कोई किरण नजर ना आने के बावजूद, उनके अंदर कुछ ऐसा जज्बा है जो उन्हें निरंतर लड़ने की क्षमता और प्रेरणा देता है। उनका प्रण है कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता, वे इस लड़ाई को जारी रखेंगी।
इंसाफ कानून से भले ही न मिला हो लेकिन भगवान से जरूर मिला होगा
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