रविवार, 4 सितंबर 2011

डेढ़ दशक में घट गए ३५ फीसदी ऊंट


डेढ़ दशक में घट गए ३५ फीसदी ऊंट

बाड़मेर बढ़ती महंगाई व घटते चरागाहों के कारण ऊंट पालन महंगा साबित होने लगा है। पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में पिछले डेढ़ दशक में ऊंटों की संख्या में 30 से 35 प्रतिशत की गिरावट आई है। करीब दो दशक पहले पश्चिमी राजस्थान क्षेत्र में ऊंट पालन को काफी तवज्जो दी जाती थी। उस समय खेती के साथ-साथ कहीं आने जाने के साधन के रूप में भी ऊंटों का उपयोग किया जाता था। लेकिन पिछले डेढ़ दशक में तेजी से ट्रैक्टर्स का उपयोग बढऩे व सड़कों के विकास के साथ ही आवागमन के विकल्प बढ़ जाने से ऊंट पालन में लोगों का तेजी से रुझान घटा है।

बढ़ती महंगाई बनी चुनौती: दिनोंदिन बढ़ती महंगाई का असर ऊंट पालन पर पड़ा है। ऊंटों की उपयोगिता के अन्य विकल्प नहीं खोजे जाने से परंपरागत कार्य व आवागमन इनसे महंगा पडऩे लगा। चारागाहों में कमी ने ऊंट पालन को और भी महंगा बना दिया।

बनाया जा सकता है उपयोगी : राजस्थान में घटती संख्या के बावजूद मरू प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण ऊंट आज भी यहां बेहद उपयोगी है। ऊंट की भार ढोने की क्षमता के अलावा इनसे मिलने वाला दूध, बाल, हड्डी रक्त तथा मिगनी तक व्यावसायिक रूप से उपयोगी है। ऊंट के बालों से छागा रस्सी, चमड़ी से बर्तन व सजावटी सामान, हड्डी से आभूषण, खून से स्वास्थ्यवर्धक दवा तथा मिगनी खाद बनाने व ईंधन के रूप में काम आती है। लेकिन इस सबका लाभ ऊंट पालकों को मिले इसके लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई। पशुपालक वर्ग में खास तौर से रबारी समाज के लोगों की अन्य व्यवसाय में रुचि बढ़ जाने के कारण ऊंटों की संख्या में कमी आई है। ऊंट पालन को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन की दरकार है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें