तेजाजी राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्तों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है। तेजाजी के वंशज मध्यभारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ मे बसे थे। नागवंश के धवलराव अर्थात धौलाराव के नाम पर धौल्या गौत्र शुरू हुआ। तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में 24 गांव थे।तेजाजी का जन्म धौलिया या धौल्या गौत्र के जाट परिवार में हुआ। धौल्या शासकों की वंशावली इस प्रकार है:- 1.महारावल 2.भौमसेन 3.पीलपंजर 4.सारंगदेव 5.शक्तिपाल 6.रायपाल 7.धवलपाल 8.नयनपाल 9.घर्षणपाल 10.तक्कपाल 11.मूलसेन 12.रतनसेन 13.शुण्डल 14.कुण्डल 15.पिप्पल 16.उदयराज 17.नरपाल 18.कामराज 19.बोहितराव 20.ताहड़देव 21.तेजाजी
तेजाजी ने ग्यारवीं शदी में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे। वे खड़नाल गाँव के निवासी थे। भादो शुक्ला दशमी को तेजाजी का पूजन होता है। तेजाजी का भारत के जाटों में महत्वपूर्ण स्थान है। तेजाजी सत्यवादी और दिये हुये वचन पर अटल थे। उन्होंने अपने आत्म - बलिदान तथा सदाचारी जीवन से अमरत्व प्राप्त किया था। उन्होंने अपने धार्मिक विचारों से जनसाधारण को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और जनसेवा के कारण निष्ठा अर्जित की। जात - पांत की बुराइयों पर रोक लगाई। शुद्रों को मंदिरों में प्रवेश दिलाया। पुरोहितों के आडंबरों का विरोध किया। तेजाजी के मंदिरों में निम्न वर्गों के लोग पुजारी का काम करते हैं। समाज सुधार का इतना पुराना कोई और उदाहरण नहीं है। उन्होंने जनसाधारण के हृदय में हिन्दू धर्म के प्रति लुप्त विश्वास को पुन: जागृत किया। इस प्रकार तेजाजी ने अपने सद्कार्यों एवं प्रवचनों से जन - साधारण में नवचेतना जागृत की, लोगों की जात - पांत में आस्था कम हो गई।
तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में 24 गांव थे। तेजाजी का जन्म खड़नाल के धौल्या गौत्र के जाट कुलपति ताहड़देव के घर में चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ सत्रह सौ तीस को हुआ। तेजाजी के जन्म के बारे में मत है-जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
तेजाजी का हळसौतिया
जेठ के महिने के अंत में तेज बारिश होगई। तेजाजी की माँ कहती है जा बेटा हळसौतिया तुम्हारे हाथ से कर-गाज्यौ-गाज्यौ जेठ'र आषाढ़ कँवर तेजा रॅलगतो ही गाज्यौ रॅ सावण-भादवोसूतो-सूतो सुख भर नींद कँवर तेजा रॅथारोड़ा साथिड़ा बीजॅं बाजरो।
सूर्योदय से पहले ही तेजाजी बैल, हल, बीजणा, पिराणी लेकर खेत जाते हैं और स्यावड़ माता का नाम लेकर बाजरा बीजना शुरू किया -उठ्यो-उठ्यो पौर के तड़कॅ कुँवर तेजा रॅमाथॅ तो बांध्यो हो धौळो पोतियोहाथ लियो हळियो पिराणी कँवर तेजा रॅबॅल्यां तो समदायर घर सूं नीसर्योकाँकड़ धरती जाय निवारी कुँवर तेजा रॅस्यावड़ नॅ मनावॅ बेटो जाटको।भरी-भरी बीस हळायां कुँवर तेजा रॅधोळी रॅ दुपहरी हळियो ढाबियोधोरां-धोरां जाय निवार्यो कुँवर तेजा रॅबारह रॅ कोसां री बा'ई आवड़ी।।
तेजाजी का भाभी से संवाद
नियत समय के उपरांत तेजाजी की भाभी छाक (रोटियां) लेकरआई। तेजाजी बोले-बैल्या भूखा रात का बिना कलेवे तेज।भावज थासूं विनती कठै लगाई जेज।।
देवर तेजाजी के गुस्से को भावज झेल नहीं पाई और काम से भी पीड़ित थी, उसने चिढने के लहजे में कहा-मण पिस्यो मण पोयो कँवर तेजा रॅमण को रान्यो खाटो खीचड़ो।लीलण खातर दल्यो दाणों कँवर तेजा रॅसाथै तो ल्याई भातो निरणी।दौड़ी लारॅ की लारॅ आई कँवर तेजा रॅम्हारा गीगा न छोड़ आई झूलै रोवतो।ऐहड़ा कांई भूख भूखा कँवर तेजा रॅथारी तो परण्योड़ी बैठी बाप कॅ
भाभी का जवाब तेजाजी के कले जे में चुभ गया। तेजाजी नें रास और पुराणी फैंकदी और ससुराल जाने की कसम खा बैठे-ऐ सम्हाळो थारी रास पुराणी भाभी म्हारा ओअब म्हे तो प्रभात जास्यां सासरॅहरिया-हरिया थे घास चरल्यो बैलां म्हारा ओपाणिड़ो पीवो नॅ थे गैण तळाव रो।
तेजाजी का माँ से संवाद
खेत से तेजाजी सीधे घर आये। तेजाजी नें कहा-माँ मेरी शादी कहाँ और किसके साथ हुई। तेजाजी की माँ को खरनाल और पनेर की दुश्मनी याद आ गई पर अब बताने को मजबूर होकर माँ बोली-ब्याव होतां ही खाण्डा खड़कग्या बेटा बैर बढ़गो।थारां बाप कै हाथा सूं छोरी को मामों मरगो।थारो मामोसा परणाया पीळा-पोतड़ा।गढ़ पनेर पड़ॅ ससुराल कँवर तेजा रॅरायमल जी री पेमल थारी गौरजां।
उस समय के रिवाज के अनुसार तेजाजी का विवाह उनके ताऊ बक्सारामजी ने तय किया। मामा ने शादी की मुहर लगाई। तेजाजी का विवाह रायमल की बेटी के साथ पीले पोतड़ों में होना बताया।बहिन राजल को ससुराल से लाना
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तेजाजी की भाभी ने कहा कि ससुराल जाने से पहले बहिन राजल को लाओ-पहली थारी बैनड़ नॅ ल्यावो थे कंवर तेजा रॅ।पाछै तो सिधारो थारॅ सासरॅ।।
उधर तेजा की बहिन राजल को भाई के आने के सगुन होने लगे वह अपनी ननद से बोली-डांई-डांई आँख फरुखे नणदल बाई येडांवों तो बोल्यो है कंवलो कागलोकॅ तो जामण जायो बीरो आसी बाई वोकॅ तो बाबो सा आणॅ आवसी
बहिन के ससुराल में तेजाजी की खूब मनुहार हुई। रात्रि विश्राम के पश्चात सुबह तेजाजी बहिन के सास से बोले-बाईसा नॅ पिहरिये भेजो नी सास बाईरामायड़ तो म्हानॅ लेबानॅ भेज्योचार दिना की मिजमानी घणा दिनासूं आयाराखी री पूनम नॅ पाछा भेजस्यांसीख जल्दी घणी देवो सगी म्हारा वोम्हानॅ तो तीज्यां पर जाणों सासरॅ
भाई-बहिन रवाना होकर अपने गांव खरनाल पहुंचते हैं। सभी को चूरमा व पतासे बांटे जाते हैं।तेजल आयो गांव में ले बैनड नॅ साथहरक बधायं बँट रही बड़े प्रेम के साथतेजाजी का पनेर जाना
तेजाजी अपनी मां से पनेर जाने की अनुमती मांगते हैं। वह मना करती है। तेजाजी के दृढ़ निश्चय के आगे मां की एक न चली। भाभी कहती है कि पंडित से शुभ मूहूर्त निकलवा कर ससुराल रवाना होना। पंडित शुभ मूहूर्त के लिये पतड़ा देख कर बताता है कि श्रावण व भादवा के महिने अशुभ हैं-मूहूर्त पतड़ां मैं कोनी कुंवर तेजा रॅधोळी तो दिखॅ तेजा देवलीसावण भादवा थारॅ भार कंवर तेजा रॅपाछॅ तो जाज्यो सासरॅ
पंडित की बात तेजाजी ने नहीं मानी। तेजाजी बोले मुझे तीज से पहले पनेर जाना है। शेर को कहीं जाने के लिए मूहूर्त की जरुरत नहीं पड़ती-गाड़ा भरद्यूं धान सूं रोकड़ रूपया भेंटतीजां पहल्यां पूगणों नगर पनेरा ठेठसिंह नहीं मोहरत समझॅ जब चाहे जठै जायतेजल नॅ बठै रुकणुं जद शहर पनेर आय
लीलण पर पलाण मांड सूरज उगने से पहले तेजाजी रवाना हुये। मां ने कलेजे पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया-माता बोली हिवड़ॅ पर हाथ रखआशीष देवूं कुलदीपक म्हारारैबेगा तो ल्याज्यो पेमल गोरड़ी
बरसात का मौसम था। रास्ते में कई नाले और बनास नदी पार की। रास्ते में बालू नाग मिला जिसे तेजाजी ने आग से बचाया। तेजाजी को नाग ने कहा-"शूरा तूने मेरी जिन्दगी बेकार कर दी। मुझे आग में जलने से रोककर तुमने अनर्थ किया है। मैं तुझे डसूंगा तभी मुझे मोक्ष मिलेगा।"
कुंवर तेजाजी ने नाग से कहा-"नागराज! मैं मेरे ससुराल जा रहा हूँ। मेरी पेमल लम्बे समय से मेरा इन्तजार कर रही है। मैं उसे लेकर आऊंगा और शीघ्र ही बाम्बी पर आऊंगा, मुझे डस लेना।"
कुंवर तेजाजी पत्नी को लेकर मरणासन्न अवस्था में भी वचन पूरा करने के लिये नागराज के पास आये। नागराज ने तेजाजी से पूछा कि ऐसी जगह बताओ जो घायल न हुई हो। तेजाजी की केवल जीभ ही बिना घायल के बची थी। नागराज ने तेजाजी को जीभ पर डस लिया।
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