बुधवार, 3 अगस्त 2011

रेगिस्तान में बिना गुठली की खजूर

रेगिस्तान में बिना गुठली की खजूर 
 

बाड़मेर। खेती-किसानी के शौकीन एक बुजुर्ग काश्तकार ने अपनी मेहनत से रेगिस्तान में बिना गुठली की खजूर पनपाने में कामयाबी हासिल की है। सात वर्ष की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद उसे यह सफलता मिली है। जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर मारूड़ी गांव की सरहद में छोगालाल सोनी का फार्म हाऊस है। करीब पचपन बीघा भूमि पर फैले इस फार्म हाऊस में बादाम, आम, नारियल, मौसमी, अनार, गूंदा, शहतूत, बेर, नारंगी सहित कई प्रकार फलों से युक्त करीब ढाई हजार पौधे हैं।

इन सबके बीच बिना गूठली वाला खजूर का पौधा, जो अब पेड़ बन चुका है। करीब सात वर्ष की सेवा के बाद फलदायी बन गया है। इस पेड़ पर लटालूम खजूर चकित करती है। सत्तर वर्षीय काश्तकार छोगालाल सोनी बताते हैं कि सात वर्ष पहले खजूर के पेड़ की कल्पना ही थी, जो अब साकार हो गई है। खजूर के गुच्छ देखकर वे बताते हैं कि अब इनके पकने का इंतजार है। वे इतने उत्साहित है कि अब और पौधे पनपाने की तैयारी में जुट गए हैं। उन्हें अच्छी बारिश का इंतजार है। उनका कहना है कि अच्छी बरसात से खजूर के पौधे जरूर पनपेंगे।

रेगिस्तान में नखलिस्तान
एक बुजुर्ग काश्तकार की मेहनत का जीता जागता उदाहरण पचपन बीघा में फैला यह फार्म हाऊस है। चारों तरफ पहाडियों से घिरे इस फार्म हाऊस को पनपाने के लए सोनी बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का सहारा लिया है और रेगिस्तान में नखलिस्तान के स्वप्न को साकार कर दिखाया है।

बादाम के तीस-तीस फीट ऊंचे लच्छेदार पेड़ पूरे फार्म की शोभा कई गुणा बढ़ा देते हैं। सोनी बताते हैं कि इस फार्म में लहलहा रहे विभिन्न किस्म के पेड़-पौधों को उन्होंने अपने बच्चों से भी अधिक पोषण व संरक्षण दिया है। धुन का पक्का यह बुजुर्ग काश्तकार किसी मिसाल से कम नहीं है।
 

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