नई दिल्ली.अन्ना की तीन मांगों पर बीजेपी,कांग्रेस जेडी (यू)और बसपा सहमत हैं। हालांकि कांग्रेस और बसपा ने इन मांगों पर ज्यादा शर्तें लगाई हैं वहीँ भाजपा और जेडी (यू) कम शर्तों के साथ अन्ना के मांगों पर राजी है।
लोकसभा में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज ने प्रभावी लोकपाल की मांग को लेकर अनशन पर बैठे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के जन लोकपाल विधेयक के तीनों प्रमुख बिंदुओं पर सहमति जताई है।
अन्ना की पहली मांग एक ही कानून के मुताबित केंद्र में लोकपाल की तरह राज्यों में लोकायुक्तों को नियुक्त करना है। सुषमा ने कहा कि यह कहना कि लोकपाल एवं लोकायुक्त का एक ही कानून के अंतर्गत निर्माण असम्भव है, गलत है।
सुषमा ने कहा, "जब 1968 में पहला लोकपाल विधेयक बना था तब उसका नाम लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक था।"
नेता विपक्ष ने कहा, "संविधान की धारा 252 के अंतर्गत यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार चाहे तो दो या अधिक राज्यों की सहमति से ऐसा कानून बना सकती है, जो सहमति जताने वाले राज्यों पर भी लागू हो।"
अन्ना की दूसरी मांग शिकायत निवारण प्रकोष्ठ के निर्माण से सहमति जताते हुए सुषमा ने कहा, "यह कानून नागरिक अधिकार के आधार पर निर्मित लोकसेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम मध्य प्रदेश में पहले से लागू हैं। इसके अलावा इस तरह के कानून हिमाचल प्रदेश, बिहार एवं पंजाब में पहले से लागू हैं।"
सुषमा ने कहा कि इस तरह का कानून अवश्य बनना चाहिए और समय पर काम न होने पर सम्बंधित कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर पीड़ित को भुगतान करना चाहिए।
अन्ना की तीसरी मांग कि सभी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाना चाहिए पर सुषमा ने कहा, "आम जनता के मन बड़े भ्रष्टाचार से क्रोध उत्पन्न अवश्य होता है लेकिन उनका रोज सामना तंत्र के निचले स्तर में व्याप्त भ्रष्टाचार से होता है।"
अन्ना की इस मांग पर सहमति जताते हुए सुषमा ने कहा, "अन्ना के आंदोलन में दिनचर्या में भ्रष्टाचार का सामना करने वाले आम लोगों ने शिरकत की है। उन्हें लगा है कि जन लोकपाल विधेयक उन्हें छोटे स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाएगा। अगर लोकपाल के दायरे में निचले स्तर के कर्मचारियों को नहीं लाया जाएगा, तो आम नागरिक अपने को ठगा महसूस करेगा।"
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नेता सुषमा ने लोकपाल विधेयक पर लोकसभा में जारी चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने लोकपाल के दायरे में आने की इच्छा जाहिर की थी। मौजूदा प्रधानमंत्री ने भी यह इच्छा जाहिर की है। लिहाजा प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सीबीआई के उपयोग और दुरुपयोग को लेकर तमाम विवाद सामने आए हैं। लिहाजा सीबीआई को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए। सुषमा ने संसद में सांसदों के आचरणों को भी लोकपाल के दायरे में लाए जाने का समर्थन किया।
राष्ट्र चौराहे पर खड़ा है,लोकपाल पर निष्पक्ष चर्चा हो
इससे पहले लोकसभा में सदन के नेता और केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को लोकपाल के मुद्दे पर चर्चा की शुरुआत करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे से अनशन तोड़ने की अपील की।
अन्ना प्रभावी लोकपाल के मुद्दे पर दिल्ली के रामलीला मैदान में पिछले 12 दिनों से अनशन पर बैठे हैं।
मुखर्जी ने अन्ना के अनशन से देश में पैदा हुई स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि 25 राज्यों के मुख्यमंत्रियों और छह राजनीतिक पार्टियों की ओर से लोकपाल के मुद्दे राय प्राप्त हुई थी। सरकार ने इस मुद्दे को गम्भीरता से लेते हुए इस पर संसद में चर्चा कराने का फैसला लिया है।
लोकसभा में सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को लोकपाल के मसले पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आज चौराहे पर खड़ा है।
उन्होंने सदन से भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रभावी लोकपाल के मुद्दे पर संवैधानिक दायरे में रहते हुए व्यावहारिक और निष्पक्ष चर्चा करने की अपील की।
शनिवार को ऐतिहासिक विशेष सत्र में चर्चा की शुरुआत करते हुए मुखर्जी ने कहा कि अनशन पर बैठे अन्ना हजारे द्वारा उठाए गए मुद्दे काफी महत्वपूर्ण हैं और संसद का ध्यान चाहते हैं।
उन्होंने आशा जताई कि अन्ना हजारे द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल विधेयक के मुद्दों पर सदन में एक राय बन सकेगी ताकि सरकारी लोकपाल विधेयक पर विचार कर रही स्थाई को सदन की भावना से अवगत कराया जा सके।
मुखर्जी ने कहा, "स्थाई समिति इन सुझावों की संवैधानिकता, व्यावहारिकता और क्रियान्वित किए जा सकने की सम्भावना पर विचार कर सकती है।"
उन्होंने कहा, "हम चौराहे पर खड़े हैं। ऐसे कम मौके आते हैं जब सदन की कार्यवाही पर न केवल देश बल्कि सम्भवत: विदेशों में भी नजर रखी जा रही होती है।"
उन्होंने कहा कि वह संसद की सर्वोच्चता से समझौता किए बिना और संविधान के दायरे में एक तथ्यपरक चर्चा की आशा करते हैं ताकि वर्तमान गतिरोध को खत्म किया जा सके।
लोकसभा में 7 घंटे तक होगी लोकपाल पर चर्चा
लोकसभा में अन्ना हजारे के जन लोकपाल विधेयक सहित अन्य विधेयकों पर चर्चा शुरू होने के बाद सदन की अध्यक्ष मीरा कुमार ने कहा कि इस मसले पर सात घंटे तक चर्चा की जाएगी और जरूरत पड़ने पर इस अवधि को बढ़ाया जा सकता है।
कुमार से सदस्यों से कहा, "यह बहुत की गम्भीर विषय है। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए शुरुआत में सात घंटे का समय तय किया जा रहा है। अगर जरूरत पड़ी तो इसे बढ़ाया जा सकता है। क्योंकि कई सदस्य चर्चा में भाग लेना चाहते हैं।"
इससे पहले कुमार ने चर्चा के लिए समय निर्धारित करने के बारे में सदस्यों की राय जानना चाहीं।
42 वर्षो से लटका है लोकपाल विधेयक : स्वराज
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने शनिवार को कहा कि लोकपाल विधेयक पिछले 42 वर्षो से लटका हुआ है। स्वराज ने कहा कि अब समय आ गया है, जब सदन को प्रभावी लोकपाल विधेयक पारित कर इतिहास रचना चाहिए।
स्वराज ने सदन में लोकपाल विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा, "पहली बार लोकपाल विधेयक संसद में नहीं पेश हुआ है। इसके पहले आठ बार लोकपाल विधेयक सदन में पेश हो चुका है। लेकिन किसी न किसी कारण से अब तक लटकता रहा है। अब 9वीं बार लोकपाल विधेयक सदन में पेश किया गया है।"
स्वराज ने कहा, "इसके पहले जब भी विधेयक पेश किया गया, किसी बुद्धिजीवी की ओर से आया। लेकिन आज यह विधेयक आंदोलन बन गया है।
अन्ना हजारे ने देश की जनता तक इस विधेयक को पहुंचा दिया है। लोग इसके पक्ष में सड़कों पर उतर रहे हैं। स्थिति जटिल है। जनता संसद की ओर देख रही है। आज संसद की जिम्मेदारी है कि वह भ्रष्टाचार से निपटने के लिए जनता को एक प्रभावी लोकपाल दे।"
स्वराज ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के अनशन का जिक्र करते हुए कहा कि सामाजिक कार्यकर्ता के अनशन के कारण उपजी समस्या से निपटने के लिए सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई। लेकिन बैठक में जो प्रस्ताव पारित हुआ, सरकार उस दिशा में आगे नहीं बढ़ी।
उल्लेखनीय है कि मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकसभा में नियम 184 और राज्यसभा में नियम 167 के तहत बहस कराने के लिए नोटिस दिया है। इन नियमों के तहत बहस के बाद मतविभाजन का प्रावधान है।
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