द्वारका(गुजरात). अपने ठाकुरजी (द्वारकाधीश श्रीकृष्ण) का जन्मोत्सव मनाने पहुंचे हजारों भक्तों ने द्वारका को झांझ, मजीरों और भजनों से आबाद कर दिया है। दो दिन पहले तक माहौल कुछ सूना सा लग रहा था।
घाट खाली थे और मंदिर की घंटियां भी स्थानीय भक्तों के जरिए उपस्थिति दर्ज करा रहीं थीं। लेकिन रविवार सुबह से भक्तों की जो आवाजाही शुरू हुई तो शाम होते-होते द्वारका की गलियों में भक्त ही भक्त नजर आने लगे। हालांकि संकरी गलियों से बुने गए 50 हजार की आबादी वाले द्वारका में कितने भक्त पहुंचे हैं यह सीधे-सीधे कहना मुश्किल है।
द्वारकाधीश मंदिर के बाहर भक्तों की कतारें लगी रहीं। लोग लंबे इंतजार के बाद ठाकुरजी के दर्शन कर पाए। मंदिर में मूर्ति से करीब 15 फीट दूर से दर्शन हो पा रहे हैं। यह जरूर है कि जहां तक भक्तों की पहुंच है, वहां दो चरण पादुकाएं रखी हैं। इन्हें छूकर ही लोग धन्य हो रहे हैं। झांझ-मजीरों की धुन पर रंग-बिरंगे लिबास में नाचते-गाते भक्तों की टोलियों का लगातार पहुंचना जारी है।
द्वारकाधीश के दरबार में पहुंचने का जुनून ऐसा है कि न भूख की चिंता न प्यास की। आसपास के गांवों से तो लोग पैदल ही यहां पहुंच गए। दुकानों के ओटलों से लेकर बड़ी होटलों तक में भक्तों का बसेरा। सोमवार शाम तक भक्तों की तादाद और बढ़ने की संभावना है। जन्माष्टमी समारोह के दौरान ठाकुरजी नए श्रंगार में लोगों को दर्शन देंगे। भक्त रंग-गुलाल उड़ाकर और नाच गाकर जन्मोत्सव मनाएंगे। यह रौनक नवमी (मंगलवार) तक बनी रहेगी।
समुद्र किनारे सहमी वर्षा,खूब बिक रहा पानी: द्वारकाधीश तीर्थ यूं तो समुद्र किनारे बसा है। समुद्र की लहरें दिनभर में कई बार ठाकुरजी की देहरी छूकर चरण वंदन कर जाती है। लेकिन बारिश इस बार सहमी-सहमी है। पूरा सीजन गुजरने को है और द्वारका के हिस्से आया है, महज 4-5 इंच पानी। समुद्र का पानी खारा है।
जमीन से खींचो तो उसके स्वाद में भी नमक होता है। लिहाजा यहां पीने का पानी खूब बिक रहा है। दुकान भले ही फोटो कॉपी की हो या टेलर की, लेकिन उस पर पानी की बोतल जरूर मिल जाएगी। कई जगहों पर तो पानी का स्टॉक तक किया गया है।
द्वारका में पानी की दिक्कत हमेशा ही रहती है। बारिश ठीक हो जाए तो उसका पानी तलघर में सहेजकर रखते हैं और चूना आदि मिलाकर साल भर निकालते हैं। नगरपालिका सप्ताह में दो बार पानी देती है, वह भी 50 मील दूर बने डेम से। बाकी पानी का इंतजाम रहवासी खरीदकर ही करते हैं।
घाट खाली थे और मंदिर की घंटियां भी स्थानीय भक्तों के जरिए उपस्थिति दर्ज करा रहीं थीं। लेकिन रविवार सुबह से भक्तों की जो आवाजाही शुरू हुई तो शाम होते-होते द्वारका की गलियों में भक्त ही भक्त नजर आने लगे। हालांकि संकरी गलियों से बुने गए 50 हजार की आबादी वाले द्वारका में कितने भक्त पहुंचे हैं यह सीधे-सीधे कहना मुश्किल है।
द्वारकाधीश मंदिर के बाहर भक्तों की कतारें लगी रहीं। लोग लंबे इंतजार के बाद ठाकुरजी के दर्शन कर पाए। मंदिर में मूर्ति से करीब 15 फीट दूर से दर्शन हो पा रहे हैं। यह जरूर है कि जहां तक भक्तों की पहुंच है, वहां दो चरण पादुकाएं रखी हैं। इन्हें छूकर ही लोग धन्य हो रहे हैं। झांझ-मजीरों की धुन पर रंग-बिरंगे लिबास में नाचते-गाते भक्तों की टोलियों का लगातार पहुंचना जारी है।
द्वारकाधीश के दरबार में पहुंचने का जुनून ऐसा है कि न भूख की चिंता न प्यास की। आसपास के गांवों से तो लोग पैदल ही यहां पहुंच गए। दुकानों के ओटलों से लेकर बड़ी होटलों तक में भक्तों का बसेरा। सोमवार शाम तक भक्तों की तादाद और बढ़ने की संभावना है। जन्माष्टमी समारोह के दौरान ठाकुरजी नए श्रंगार में लोगों को दर्शन देंगे। भक्त रंग-गुलाल उड़ाकर और नाच गाकर जन्मोत्सव मनाएंगे। यह रौनक नवमी (मंगलवार) तक बनी रहेगी।
समुद्र किनारे सहमी वर्षा,खूब बिक रहा पानी: द्वारकाधीश तीर्थ यूं तो समुद्र किनारे बसा है। समुद्र की लहरें दिनभर में कई बार ठाकुरजी की देहरी छूकर चरण वंदन कर जाती है। लेकिन बारिश इस बार सहमी-सहमी है। पूरा सीजन गुजरने को है और द्वारका के हिस्से आया है, महज 4-5 इंच पानी। समुद्र का पानी खारा है।
जमीन से खींचो तो उसके स्वाद में भी नमक होता है। लिहाजा यहां पीने का पानी खूब बिक रहा है। दुकान भले ही फोटो कॉपी की हो या टेलर की, लेकिन उस पर पानी की बोतल जरूर मिल जाएगी। कई जगहों पर तो पानी का स्टॉक तक किया गया है।
द्वारका में पानी की दिक्कत हमेशा ही रहती है। बारिश ठीक हो जाए तो उसका पानी तलघर में सहेजकर रखते हैं और चूना आदि मिलाकर साल भर निकालते हैं। नगरपालिका सप्ताह में दो बार पानी देती है, वह भी 50 मील दूर बने डेम से। बाकी पानी का इंतजाम रहवासी खरीदकर ही करते हैं।
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