बुधवार, 24 अगस्त 2011

तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई...

तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई...

जैसलमेर । फ्रांस मे पढ़ने वाले स्कूली छात्र महीन, फनी, ऎथर, रिचल यूं तो ऎशो आराम मे पले हैं, लेकिन उनका मन लगता है केवल जैसलमेर मे कच्ची बस्तियो मे पढ़ने वाले बच्चो के बीच। दोनो देशो के इन विद्यार्थियो मे कोई समानता नहीं है, चाहे पढ़ने का तरीका हो या सोचने का तरीका या फिर परिवेश, किसी भी रूप से ये एक समान नहीं लगते, इसके बावजूद अलग-अलग देशो के इन बच्चों के बीच काफी लगाव हो गया है। गैरमुल्क व कोई रिश्ता नहीं होने के बावजूद उनके बीच मानवीय रिश्ता कायम हो गया है। भावनाओ व जज्बातो के बीच बने इन रिश्ते ने सरहदो की दूरियां मिटा दी है, वहीं दिलो की गहराइयो मे रिश्तो की मिठास को और गहरा कर दिया है।

यूं जगा अपनापन



फ्रांस की 45 वष्ाीüया महिला लीला सिड व ब्राजील की 31 वर्षीया सामाजिक कार्यकर्ता फ्लाविया जैसलमेर के माहौल का अध्ययन करने और यहां की कला व संस्कृति को जानने यहां सैलानी के तौर पर पहुंची थीं, लेकिन यहां गफूर भट्टा क्षेत्र मे गरीब व पिछड़े वर्ग के बच्चो की स्थिति देख उनका ह्वदय द्रवित हो गया। फ्रांस के कुछ विद्यार्थियो को उनसे इस बात की जानकारी मिली तो वे भी यहां पहंुचे। उनके प्रयास से फ्रांस मे पढ़ने वाले विद्यार्थियो की यहां आवक शुरू हो गई और फिर लगातार मेलजोल के कारण यह रिश्ता आज अटूट हो चुका है। हैरत की बात तो यह है कि दोनो ही देशो के विद्यार्थियो मे भाष्ाा की असमानता भी उनके मानवीय रिश्ते मे बाधक नहीं बन पाई।

अंतरात्मा की आवाज


इन फ्र्रांसिसी विद्यार्थियो की संवदेनशीलता का अनुमान केवल इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे हाथो के इशारो व चेहरे के भावो से वे कच्ची बस्ती मे रहने वाले इन बच्चो के माता-पिता को सफाई के महत्व से भी अवगत करवाते हंै। अलग-अलग देश व उम्र होने के बावजूद कच्ची ब्ास्ती के विद्यार्थियो के साथ ये फ्रांसिसी विद्यार्थी इतना घुलमिल गए हैं कि एकबारगी उन्हे अपने व पराए का अंतर ही ध्यान नहीं रहता।

इन फ्रांसिसी विद्यार्थियो का कहना है कि अंतरात्मा की आवाज सुनकर ही वे हजारो किमी दूर पराए देश की कच्ची बस्ती मे गरीब तबके के विद्यार्थियो के पास आते हंै, खेलते-कूदते हैं और उनके लिए कुछ करना चाहते हैं। इससे उन्हे आत्मिक सुख की अनुभूति होती है।

स्वावलंबन की झलक

यही नहीं करीब 40 डिग्री तापमान पर तपती मरूभूमि मे झुलसाने वाली उमस के बीच जहां स्थानीय लोगों के भी पसीने छूटते हैं, वहां ये फ्रांसिसी विद्यार्थी यहां मजदूरी करने वाले श्रमिको को देख उनका सहयोग करने मे भी जुट जाते हैं। फ्रांस के इन विद्यार्थियो की उम्र तो करीब 14 से 20 साल है, लेकिन प्रचार-प्रसार से दूर इन विद्यार्थियों का मकसद भीषण गर्मी मे मेहनत कर परिश्रम का अनुभव लेना भी है।


गौरतलब है कि करीब साल भर पहले विनसेंट व उसके साथी पश्चिम की चमक-दमक से दूर जैसलमेर की एक छितराई हुई बस्ती मे "मजदूरी" करने यहां पहुंचे थे, अब फावड़े, गेती व तगारी को अपना साथी बनाने वाले इन विद्यार्थियो ने अपना मकसद आम आदमी मे स्वावलंबन व मेहनत की आदत विकसित करना ही बनाया है। इसी तरह ये फ्रांसिसी विद्यार्थी भी जहां परिश्रम की जरूरत होती है, वहां पहुंच जाते हंै "मजदूरी" करने।

नए साथियों से ज्यादा खुशी


बच्चों को कॉपी-किताब बांट कर कुछ देर के लिए खुश किया जा सकता है, लेकिन गरीब व पिछड़े वर्ग के बच्चों को जितनी खुशी नए साथियों को पाकर मिल रही है, वह अनूठी है। फ्रांसिसी विद्यार्थी भी अपने नए साथी पाकर खुश हैं।

-लीला, सामाजिक कार्यकर्ता
सपना जैसा

अपने देश से इतनी दूर आने के बाद नए दोस्त पाकर हम काफी उत्साहित हैं। सचमुच यह सपने जैसा लग रहा है। अगर हमारी भाषा और परिवेश को छोड़ दिया जाए, तो यहां के बच्चों और हममें कोई अंतर नहीं है।
-फनी, फ्रांसिसी विद्यार्थी
आत्मीय जुड़ाव

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