गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

जब एक वेश्या टीलों ने बनवाया ऐतिहासिक तालाब गढ़ीसर का प्रवेश द्वार










जब एक वेश्या टीलों ने बनवाया ऐतिहासिक तालाब का प्रवेश द्वार

जैसलमेर’देश के सबसे अंतिम छोर पर बसी ऐतिहासिक स्वर्ण नगरी ‘जैसलमेर’ सारे विश्व में अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। रेत के समंदर में बसे जैसल में तब दूर-दूर तक पानी का नामोनिशान तक न था। राजा और प्रजा बेसब्री से वर्षाकाल का इंतज़ार करते थे। वर्षा के पानी को एकत्र करने के लिए वि. सं. 1391 में जैसलमेर के महारावल राजा जैसल ने किले के निर्माण के दौरान एक विशाल झील का निर्माण करवाया, जिसे बाद में महारावल गढ़सी ने अपने शासनकाल में पूरा करवाकर इसमें पानी की व्यवस्था की। जिस समय महारावल गढ़सी ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था उन्हीं दिनों एक दिन धोखे से कुछ राजपूतों ने ही उनकी हत्या झील के किनारे ही कर दी थी। तब तक यह विशाल तालाब ‘गढ़सीर’ के नाम से विख्यात था जो बाद में ‘गढ़ीसर’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
जैसलमेर शहर के दक्षिण पूर्व में स्थित यह विशाल तालाब अत्यंत ही कलात्मक व पीले पत्थरों से निर्मित है। लबालब भरे तालाब के मध्य पीले पत्थरों से बनी राव जैसल की छतरी पानी में तैरती-सी प्रतीत होती है। गढ़ीसर तालाब 120 वर्ग मील क्षेत्रफल की परिधि में बना हुआ है जिसमें वर्षा के दिनों में चारों तरफ से पानी की आवक होती है। रजवाड़ों के शासनकाल में इसके मीठे पानी का उपयोग आम प्रजा व राजपरिवार किया करते थे। यहां के जल को स्त्रियां बड़े सवेरे सज-धज कर समूहों में लोकगीत गाती हुई अपने सिरों पर देगड़े व चरियां भर कर दुर्ग व तलहटी तक लाती थीं।
एक बार वर्षाकाल में मूसलाधार बारिश होने से गढ़सी तालाब लबालब भर गया और चारों तरफ रेगिस्तान में हरियाली छा गई। इससे राजा व प्रजा इतने रोमांचित हो उठे कि कई दिन तक जैसलमेर में उत्सव-सा माहौल रहा, लेकिन इसी बीच एक दु:खद घटना यह घटी कि अचानक तालाब के एक ओर की पाल ढह गई व पूरे शहर में पानी भर जाने के खतरे से राजा व प्रजा में भय व्याप्त हो गया। सारी उमंग खुशियां काफूर हो गयीं। उन दिनों जैसलमेर के शासक केसरी सिंह थे।
महारावल केसरी सिंह ने यह दु:खद घटना सुनते ही पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवाकर पूरी प्रजा को गढ़सी तालाब पर पहुंचने का हुक्म दिया व स्वयं भी हाथी पर सवार हो तालाब पर पहुंच गए। लेकिन इस बीच उन्होंने अपने नगर के समस्त व्यापारियों से अपने-अपने गोदामों से रूई के भरे बोरों को लेकर आने को कहा। रूई से भरी अनेक गाडिय़ां जब वहां पहुंचीं तो राव केसरी ने अपनी सूझ-बूझ से सबसे पहले बढ़ते पानी को रोकने के लिए हाथियों को कतारबद्ध खड़ा कर दिया और प्रजा से धड़ाधड़ रूई से भरी बोरियां डलवाकर उसके ऊपर रेत की तंगारियां डलवाते गए। देखते ही देखते कुछ ही घंटों में तालाब की पाल को फिर से बांध दिया गया तथा नगर को एक बड़े हादसे से बचा लिया गया।
ऐतिहासिक गढ़ीसर तालाब को बड़े हादसे से भले ही बचा लिया गया लेकिन इसे एक बदनामी के सबब से कोई नहीं बचा सका, क्योंकि यह आज भी एक ‘बदनाम झील’ के नाम से जानी जाती है। गढ़ीसर तालाब दिखने में अत्यंत ही कलात्मक है क्योंकि इस तालाब पर स्थापत्य कला के दर्शन होते हैं। तालाब के पत्थरों पर की गई नक्काशी, बेल-बूटों के अलावा उन्नत कारीगरी, बारीक जालीदार झरोखे व तक्षण कला के नमूने हैं।
गढ़ीसर तालाब को और भी भव्यता प्रदान करने के लिए इसके ‘प्रवेश द्वार’ को यहीं की एक रूपगर्विता टीलों नामक वेश्या ने बनवाया था जिससे यह ‘वेश्या का द्वार’ के नाम से पुकारा जाता है। यह द्वार टीलों ने संवत 1909 में निर्मित करवाया था। लावण्य व सौंदर्य की मलिका टीलों वेश्या के पास बेशुमार दौलत थी जिसका उपयोग उसने अपने जीवनकाल में सामाजिक व धार्मिक कार्यों में किया। टीलों की सामाजिक व धार्मिक सहिष्णुता से बड़े-बड़े व्यापारी, सोनार व धनाढ्य वर्ग के लोग भी प्रभावित थे।
वेश्या टीलों द्वारा बनाये जा रहे द्वार को देखकर जब स्थानीय लोगों में यह कानाफूसी होने लगी कि महारावल के होते हुए भला एक वेश्या तालाब का मुख्य द्वार क्यों बनवाये। बड़ी संख्या में नगर के बाशिंदे अपनी फरियाद लेकर उस समय की सत्ता पर काबिज महारावल सैलन सिंह के पास गये। वहां पहुंच कर उन्होंने महारावल के समक्ष रोष प्रकट करते हुए कहा कि महारावल, टीलों गढ़ीसर तालाब का द्वार बनवा रही है और वह पेशे से वेश्या है। आम जनता को उस बदनाम औरत के बनवाये द्वार से गुजर कर ही पानी भरना पड़ेगा, इससे बढ़कर शर्म की बात और क्या होगी? कहा जाता है कि महारावल सैलन सिंह ने प्रजा की बात को गंभीरता से सुनने के बाद अपने मंत्रियों से सलाह-मशविरा कर तुरंत प्रभाव से ‘द्वार’ को गिराने के आदेश जारी कर दिये।
लेकिन उस समय तक ‘मुख्य द्वार’ का निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका था। जैसे ही टीलों को महारावल सैलन सिंह के आदेश की भनक लगी तो उसने भी अपनी सूझबूझ व बड़ी चालाकी से अपने समर्थकों की सहायता से ‘मुख्य द्वार’ के ऊपर भगवान विष्णु का मंदिर हाथों-हाथ बनवा दिया। मंदिर चूंकि हिन्दुओं की भावना व श्रद्धा का प्रतीक साबित हो गया, अत: किसी ने भी मुख्य द्वार को तोडऩे की हिम्मत न जुटायी। अंतत: वेश्या टीलों द्वारा बनाया गया भव्य कलात्मक द्वार बच गया, लेकिन हमेशा-हमेशा के लिए ऐतिहासिक स्वर्ण नगरी जैसलमेर में गढ़ीसर तालाब के मुख्यद्वार के साथ वेश्या ‘टीलों ’ का नाम भी जुड़ गया।
गढ़ीसर तालाब का मुख्य द्वार गढ़ाईदार पीले पत्थरों से निर्मित है लेकिन इसके ऊपर की गई बारीक कारीगरी जहां कला का बेजोड़ नमूना है वहीं कलात्मक अलंकरण व पत्थरों पर की गई खुदाई विशेष रूप से चिताकर्षक है। जैसलमेर आने वाले हज़ारों देशी-विदेशी सैलानी ऐतिहासिक नगरी व रेत के समंदर में पानी से भरी सागर सदृश्य झील को देखकर रोमांचित हो उठते हैं।

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

गांव का नाम झाबरा

मान्यता के अनुसार सन् 1530 में खेड से मल्लिनाथ राठौड़ अपने गुरू झबरजी राजपुरोहित के साथ पोकरण आए। मल्लिनाथ ने अपने गुरू को यह गांव भेंट किया था। जिसके चलते झबरजी के नाम से इस गांव का नाम झाबरा पड़ा। प्राचीन समय में यहां पर पेयजल आपूर्ति करने के लिए झबरजी के कुंए का निर्माण किया गया था जो आज भी गांव में पेयजल व्यवस्था को सुचारू करने में सहयोगी है। गांव में मल्लिनाथ का जाल, ठाकुरजी का मंदिर तथा संतोकपुरी जी की 300 वर्ष पुरानी जीवित समाधी है। 

बम मिलने से सनसनी बारूद के ढेर पर सीमा क्षैत्र


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बम मिलने से सनसनी बारूद के ढेर पर सीमा क्षैत्र
बाडमेर भारत पाकिस्तान सरहद पर बसा बाडमेर जिले का सरहदी थाना क्षैत्र गडरा रोड क्षैत्र बारूद के ढेर पर सांस ले रहा हैंभारत पाकिसतान के बीच इस क्षैत्र में हुऐ युद्धों के औरान बिना फटे सैकडौं जिन्दा बम रेतिलें क्षैत्रों में दबे पडे हैं।प्रति साल एक दर्जन से अधिक बिना ुटे बम विभिन्न क्ष्रैत्रों में निकल रहे हैंये बम वो हैं जो युद्ध के दौरान रेगिस्तानी धोरों में अब जाने से फटे नहीं थे।अब धीरे धीरे जहॉ जॅहा खुदाई होती हैं,वॅहा जिन्दा बम निकल रहे हैं।जिसके कारण इस क्षैत्र के लोग दहात में हैं।मंगलवार रात्री आठ बजे गडरा गांव में एक मकान की नींव खुदाई के औरान बम मिलने से सनसनी फैल गई।बम की सूचना मिलने पर पुलिस एवं सुरक्षा एजेंसिया मोैके पर पहुॅची तथा बम को सुरक्षित रखवाया।तथा सेना के बम निरोधक दस्ते को बम नश्कि्रिय करने के लिया बुलाया गया हैं। मगलवार को रात में बाड़मेर जिले के गडरा गाव में एक सक्स अपने घर की खुदाई करावा रहा था इसी दोहरान करीब तीन फुट पर एक बम मिल गया इस पर घर के मालिक जुझार सिंह ने पुलिस  को सुचना दी जिस पर पुलिस ने  सीमा सुरक्षा बल और आर्मी के साथ मोके पर पहुची और मुआना किया गडरा इलाके के  थानाधिकारी लक्ष्मीनारायण के अनुसार यह बम 30 -४० साल पुराना है और इसका वजन करीब 5 किलो के आसपास है हमने अपने अधिकारियो को सूचित कर हमने बम निरोधक दस्ते को निष्क्रिय करने के लिए बुला लिया है  सीमा सुरक्षा बल और आर्मी के जानकारों के अनुसार यह जिंदा भी हो सकता है लिहाजा हमने अपनी एक टीम मोके पर तेनात कर दी है और लोगो से हमने कहा है कि वह इस जगह से दूर रहेने के लिए कहा गया है
लक्ष्मीनारायणथाना प्रभारी
 , गडरा थाना  बम 30 -४० साल पुराना है और इसका वजन करीब 5 किलो के आसपास है हमने अपने अधिकारियो को सूचित कर हमने बम निरोधक दस्ते को निष्क्रिय करने के लिए बुला लिया है सीमा सुरक्षा बल  और आर्मी के जानकारों के अनुसार यह जिंदा भी हो सकता है लिहाजा हमने अपनी एक टीम मोके पर तेनात कर दी है और लोगो से हमने कहा है कि वह इस जगह से दूर रहेने के लिए कहा गया है )
वोइस ओवर 2 बम निकलने से इलाके के लोगो में दहशत फेल गई है  गडरा निवासी  राजू  सिंह के अनुसारर यह तो गनीमत रही कि यह बम फटा नहीं नहीं तो बहुत बड़ा हादसा हो जाता इस इलाके में 1965  और1971 के भारत -पाक युद्ध के समय यह इलाका सेना के पास था और यह बम भी उसी समय का है ........ राजू  सिंह, निवासी,गडरा गाव(यह तो गनीमत रही कि यह बम फटा नहीं नहीं तो बहुत बड़ा हादसा हो जाता इस इलाके में 1965  और1971 के भारत -पाक युद्ध के समय यह इलाका सेना के पास था और यह बम भी उसी समय का है ........ इन इलाके में पिछले दो तीन सालो में कई बार इस तरह के बम मिल चुके है अब इन इलाके के लोग को डर लग रहा है कि कभी कोई बड़ा हादसा न हो जाए क्योकि दो साल पहले ही इस गाव पास ही बम निकला था और दो बच्चे जख्मी हो गए थे

बड़ाबाग़ जैसलमेर









बड़ाबाग़ जैसलमेर
जैसलमेर राजस्थान का सबसे ख़ूबसूरत शहर है और जैसलमेर पर्यटन का सबसे आकर्षक स्थल माना जाता है।बड़ाबाग़ जैसलमेर से 5 किलोमीटर दूर रामगढ़ रोड पर स्थित है।यह जैसलमेर के महारावलों के शमशानों पर बने कलात्मक छतरी स्मारकों के लिए विख्यात है।जैसलमेर के सांस्कृतिक इतिहास में यहाँ के स्थापत्य कला का अलग ही महत्त्व है। किसी भी स्थान विशेष पर पाए जाने वाले स्थापत्य से वहाँ रहने वालों के चिंतन, विचार, विश्वास एवं बौद्धिक कल्पनाशीलता का आभास होता है। जैसलमेर में स्थापत्य कला का क्रम राज्य की स्थापना के साथ दुर्ग निर्माण से आरंभ हुआ, जो निरंतर चलता रहा। यहाँ के स्थापत्य को राजकीय तथा व्यक्तिगत दोनो का सतत प्रश्रय मिलता रहा। इस क्षेत्र के स्थापत्य की अभिव्यक्ति यहाँ के क़िलों, गढियों, राजभवनों, मंदिरों, हवेलियों, जलाशयों, छतरियों व जन-साधारण के प्रयोग में लाये जाने वाले मकानों आदि से होती है। जैसलमेर नगर में हर 20-30 किलोमीटर के फासले पर छोटे-छोटे दुर्ग दृष्टिगोचर होते हैं, ये दुर्ग विगत 1000 वर्षो के इतिहास के मूक गवाह हैं। दुर्ग निर्माण में सुंदरता के स्थान पर मज़बूती तथा सुरक्षा को ध्यान में रखा जाता था। परंतु यहां के दुर्ग मज़बूती के साथ-साथ सुंदरता को भी ध्यान मं रखकर बनाये गये। दुर्गो में एक ही मुख्य द्वार रखने के परंपरा रही है। दुर्ग मुख्यतः पत्थरों द्वारा निर्मित हैं, परंतु किशनगढ़, शाहगढ़ आदि दुर्ग इसके अपवाद हैं। ये दुर्ग पक्की ईंटों के बने हैं। प्रत्येक दुर्ग में चार या इससे अधिक बुर्ज बनाए जाते थे। ये दुर्ग को मज़बूती, सुंदरता व सामरिक महत्त्व प्रदान करते थे।

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

पाकिस्‍तान में उठी बंटवारे की मांग

 पाकिस्‍तान में उठी बंटवारे की मांग के बीच पाकिस्‍तान में आतंकियों ने एक बस में आग लगा कर 15 लोगों को जिंदा जला दिया है। यह घटना मंगलवार तड़के हुई।

इससे पहले पंजाब प्रांत के मुख्‍यमंत्री शाहबाज शरीफ ने मांग की थी कि सिंध प्रांत का बंटवारा कर कराची को अलग प्रांत बनाया जाए। हालांकि सोमवार को वह अपने बयान से मुकर गए। उनके बयान पर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। सोमवार को पाकिस्‍तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के दफ्तर पर हुए हमले को भी शरीफ के बयान से ही जोड़ कर देखा जा रहा है। मंगलवार की घटना का संबंध भी इसी बात से जोड़ा जा रहा है। हालांकि इस बारे में अभी कोई पुख्‍ता संकेत नहीं हैं। शरीफ ने अपने दफ्तर में मीडिया के सामने सफाई दी कि वह तो बस यह पूछ रहे थे कि क्‍या कराची को अलग प्रांत बनाया जा सकता है, उन्‍होंने ऐसी कोई मांग नहीं की थी या सुझाव नहीं दिया था।

मंगलवार तड़के पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रांत में सिबी के निकट अज्ञात हमलावरों ने सवारियों से भरी बस में आग लगा दी। इस घटना में महिलाओं और बच्चों सहित कम से कम 15 लोगों की जलकर मौत हो गई।

पुलिस ने कहा कि मरने वाले में सात बच्चे शामिल हैं। इसके अलावा, मरने वाले लोगों में से तीन अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय के हैं। इनकी पहचान कपिल, वरशीन और पूजामल के तौर पर की गई है।

स्‍थानीय अखबार ' द डॉन' ने सिबी के पुलिस उपायुक्त नसीर अहमद नासिर के हवाले से कहा कि क्वेटा से करीब 160 किलोमीटर दूर यह हादसा सिबी शहर में उस वक्त हुआ जब एक बस सिंध प्रांत के जाकोबाबाद से क्वेटा की ओर जा रही थी। रास्ते में यह बस सड़क के किनारे एक रेस्तरां के सामने रूकी हुई थी।

प्रत्यक्षदर्शियों के मुतातबिक दो मोटरसाइकिलों पर सवार चार हथियारबंद लोग वहां आए। इनमें से दो व्यक्ति बस में घुस गए और पेट्रोल छिड़क कर उसमें आग लगा दी। पुलिस ने बताया कि कई यात्री भीषण आग के चलते बस से बाहर निकल नहीं पाए।

नसीर ने बताया कि बस का चालक और कंडक्टर मौके से फरार हो गए जिनकी तलाश की जा रही है। इसके अलावा, बस में आग लगाने वाले संदिग्ध अपराधियों की धर-पकड़ के लिए पुलिस तलाशी अभियान चला रही है।