मान्यता के अनुसार सन् 1530 में खेड से मल्लिनाथ राठौड़ अपने गुरू झबरजी राजपुरोहित के साथ पोकरण आए। मल्लिनाथ ने अपने गुरू को यह गांव भेंट किया था। जिसके चलते झबरजी के नाम से इस गांव का नाम झाबरा पड़ा। प्राचीन समय में यहां पर पेयजल आपूर्ति करने के लिए झबरजी के कुंए का निर्माण किया गया था जो आज भी गांव में पेयजल व्यवस्था को सुचारू करने में सहयोगी है। गांव में मल्लिनाथ का जाल, ठाकुरजी का मंदिर तथा संतोकपुरी जी की 300 वर्ष पुरानी जीवित समाधी है।
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