जैसलमेर 250 साल पुरानी विश्वविख्यात जहाझनुमा सालिम सिंह हवेली का अस्तित्व खतरे में
ख़ास रिपोर्ट साभार विमल भाटिया
शिल्प सौन्दर्य बारीक नक्काशी व खूबसूरत जालीदार झरोखे वाली 250 साल पुरानी विश्वविख्यात जहाझनुमा सालिम सिंह हवेली का अस्तित्व खतरे में नजर आ रहा हैं जर-जर अवस्था में पहुंचने के बाद अब हवेली हिलने लगी हैं। कभी भी भूकंप या अन्य डिजास्टर आने की दिशा में शहर के मुख्य रास्ते पर स्थित होने के कारण भारी जान-माल के नुकसान होने की संभावना है। यहां देशी विदेशी सैलानियों का तांता भी लगा रहता हैं क्षतिग्रस्त हवेली के किसी भाग के गिरने से सैलानियों की भी जन-हानि हो सकती है।
राज्य सरकार द्वारा इस प्राचीन धरोहर को 40 साल पूर्व संरक्षित स्मारक घोषित करने के बावजूद आज दिन तक किसी भी सरकारी स्तर पर इस हवेली की सुध नहीं ली गई हैं हर तरह से अनदेखी का शिकार इस हवेली का एक हिस्सा 1993 व 2006 मंे भारी वर्षा से ढह गया था जबकि 26 जनवरी 2001 में आये जबरदस्त भूकंप के कारण हवेली का अन्य हिस्सा भी भर-भराकर ढह गया था जिसकी आज दिन तक मरम्मत नहीं हो पाई हैं हालांकि राज्य सरकार ने जुलाई 2007 में 10 लाख रूपए इस हवेली की मरम्मत के लिये स्वीकृत किये थे मगर यहां पर किसी प्रकार का कार्य नहीं करवाये जा सकने के कारण यह राशि भी लेप्स हो गई, इस हवेली के मालिकानों में से एक कमल सिंह मोहता द्वारा राज्य सरकार को हवेली के जीर्ण क्षीर्ण अवस्था में पहुंचने के कारण इसकी मरम्मत के लिये पिछले 20 सालों में अनगिनत पत्र लिखे लेकिन सरकारी स्तर पर इस खूबसूरत हवेली की मरम्मत के लिये कभी किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। करीब एक सप्ताह पूर्व राजस्थान पुरातत्व विभाग के इंजीनीयर की एक टीम ए.ई.एन महेन्द्र गुप्ता के नेतृत्व में यहां आई थी उन्होंने क्षतिग्रस्त हवेली के संबंध में जानकारी एकत्रित की थी।
ए.ई.एन महेन्द्र गुप्ता ने एक बातचीत में बताया कि सालिम सिंह की हवेली की वस्तु स्थिति की जानकारी के लिये वे यहां आये हैं उन्होंने पूरी हवेली में घूमकर इसकी स्थिति का जायजा लिया हैं इसकी रिपोर्ट को वो सरकार को प्रेषित कर रहे हैं अतिशीघ्र ही इसकी मरम्मत के संबंध में कोई कार्यवाही होगी।
कमल सिंह मोहता जो इस हवेली के मालिक में से एक हैं ने बताया कि उन्होंने सरकार को कई पत्र लिखे हैं जिसमें बताया हैं कि वर्तमान में हवेली के कई पत्थर हिल रहे हैं कभी जबरदस्त वर्षा या आंधी आती हैं तो इनके गिरने की पूर्ण संभावना हैं यदि इससे कोई जन हानि होती हैं तो प्रशासन व पुरातत्व विभाग जिम्मेदार होगा।
उन्होंने बताया कि 1993 में इसका एक भाग गिर चुका हैं जिसकी मरम्मत के लिये 10 लाख मंजूर भी हुवे थे, लेकिन आज दिन तक मरम्मत का कोई कार्य शुरू नहीं हो पाया, स्वीकृति रकम कहां गई उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। राज्य सरकार ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित कर बोर्ड लगाने के अलावा कोई कदम नहीं उठाये हैं वे कहते हैं हवेली के कई हिस्सा बंद हैं दीवारों में दरारें आ गई हैं भीतरी भाग के छज्जे टूट गये हैं वर्षा के पानी की निकासी नहीं है। ऐसे में कभी भी कोई बड़ा हादसा घटित हो सकता है। वे कहते हैं कि इस हवेली के चारों ओर 38 बंगलियां थी जिनमें 15 से ज्यादा गिर गई हैं।
विख्यात इतिहासविद् नंदकिशोर शर्मा बताते हैं कि पीर पाषाण शिलाओं से युक्त 180 फीट उंची जहाझनुमा से हवेली के निर्माण की शुरूआत संवत 1819 में दीवान सालिम सिंह के पिता स्वरूप सिंह ने किया था बाद में दो मंजिला बनने के बाद सालिम सिंह ने इस हवेली को सोनार किले की उंचाई तक ले जाने के लिये 9 मंजिला का निर्माण भी करवाया, लेकिन तत्कालीन महारावल उपर की दो मंजिलों को हटवा दिया।
वे कहते हैं कि एतिहासिक धरोहर को बचाने के लिये यदि कोई सघन प्रयास नहीं किये गये तो कभी भी कोई बड़ी दुर्घटना घटित हो सकती हैं इसकी बंगलियां, झरोखे, व घुमटियों के कंगूरे, धीरे धीरे जीर्ण क्षीर्ण अवस्था में पहुंचते हुवे गिरने की कगार पर है। जल्दी कोई कड़े कदम नहीं उठाये तो एतिहासिक धरोहर को हम हमेशा के लिये खो देंगे।
राज्य सरकार द्वारा इस प्राचीन धरोहर को 40 साल पूर्व संरक्षित स्मारक घोषित करने के बावजूद आज दिन तक किसी भी सरकारी स्तर पर इस हवेली की सुध नहीं ली गई हैं हर तरह से अनदेखी का शिकार इस हवेली का एक हिस्सा 1993 व 2006 मंे भारी वर्षा से ढह गया था जबकि 26 जनवरी 2001 में आये जबरदस्त भूकंप के कारण हवेली का अन्य हिस्सा भी भर-भराकर ढह गया था जिसकी आज दिन तक मरम्मत नहीं हो पाई हैं हालांकि राज्य सरकार ने जुलाई 2007 में 10 लाख रूपए इस हवेली की मरम्मत के लिये स्वीकृत किये थे मगर यहां पर किसी प्रकार का कार्य नहीं करवाये जा सकने के कारण यह राशि भी लेप्स हो गई, इस हवेली के मालिकानों में से एक कमल सिंह मोहता द्वारा राज्य सरकार को हवेली के जीर्ण क्षीर्ण अवस्था में पहुंचने के कारण इसकी मरम्मत के लिये पिछले 20 सालों में अनगिनत पत्र लिखे लेकिन सरकारी स्तर पर इस खूबसूरत हवेली की मरम्मत के लिये कभी किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। करीब एक सप्ताह पूर्व राजस्थान पुरातत्व विभाग के इंजीनीयर की एक टीम ए.ई.एन महेन्द्र गुप्ता के नेतृत्व में यहां आई थी उन्होंने क्षतिग्रस्त हवेली के संबंध में जानकारी एकत्रित की थी।
ए.ई.एन महेन्द्र गुप्ता ने एक बातचीत में बताया कि सालिम सिंह की हवेली की वस्तु स्थिति की जानकारी के लिये वे यहां आये हैं उन्होंने पूरी हवेली में घूमकर इसकी स्थिति का जायजा लिया हैं इसकी रिपोर्ट को वो सरकार को प्रेषित कर रहे हैं अतिशीघ्र ही इसकी मरम्मत के संबंध में कोई कार्यवाही होगी।
कमल सिंह मोहता जो इस हवेली के मालिक में से एक हैं ने बताया कि उन्होंने सरकार को कई पत्र लिखे हैं जिसमें बताया हैं कि वर्तमान में हवेली के कई पत्थर हिल रहे हैं कभी जबरदस्त वर्षा या आंधी आती हैं तो इनके गिरने की पूर्ण संभावना हैं यदि इससे कोई जन हानि होती हैं तो प्रशासन व पुरातत्व विभाग जिम्मेदार होगा।
उन्होंने बताया कि 1993 में इसका एक भाग गिर चुका हैं जिसकी मरम्मत के लिये 10 लाख मंजूर भी हुवे थे, लेकिन आज दिन तक मरम्मत का कोई कार्य शुरू नहीं हो पाया, स्वीकृति रकम कहां गई उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। राज्य सरकार ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित कर बोर्ड लगाने के अलावा कोई कदम नहीं उठाये हैं वे कहते हैं हवेली के कई हिस्सा बंद हैं दीवारों में दरारें आ गई हैं भीतरी भाग के छज्जे टूट गये हैं वर्षा के पानी की निकासी नहीं है। ऐसे में कभी भी कोई बड़ा हादसा घटित हो सकता है। वे कहते हैं कि इस हवेली के चारों ओर 38 बंगलियां थी जिनमें 15 से ज्यादा गिर गई हैं।
विख्यात इतिहासविद् नंदकिशोर शर्मा बताते हैं कि पीर पाषाण शिलाओं से युक्त 180 फीट उंची जहाझनुमा से हवेली के निर्माण की शुरूआत संवत 1819 में दीवान सालिम सिंह के पिता स्वरूप सिंह ने किया था बाद में दो मंजिला बनने के बाद सालिम सिंह ने इस हवेली को सोनार किले की उंचाई तक ले जाने के लिये 9 मंजिला का निर्माण भी करवाया, लेकिन तत्कालीन महारावल उपर की दो मंजिलों को हटवा दिया।
वे कहते हैं कि एतिहासिक धरोहर को बचाने के लिये यदि कोई सघन प्रयास नहीं किये गये तो कभी भी कोई बड़ी दुर्घटना घटित हो सकती हैं इसकी बंगलियां, झरोखे, व घुमटियों के कंगूरे, धीरे धीरे जीर्ण क्षीर्ण अवस्था में पहुंचते हुवे गिरने की कगार पर है। जल्दी कोई कड़े कदम नहीं उठाये तो एतिहासिक धरोहर को हम हमेशा के लिये खो देंगे।