जब बजरंगबली ने पाकिस्तान में बचाई हिंदुओं की जान
हनुमानजी अजर और अमर हैं। उनके मंदिर भारत सहित दुनिया के अनेक देषों में स्थित हैं। पवनपुत्र हनुमान का ऐसा ही एक प्राचीन तथा चमत्कारी मंदिर पाकिस्तान में स्थित है।
1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद हिंदुओं के कई पवित्र तीर्थ पाकिस्तान में ही रह गए लेकिन भक्तों के मन में आज भी उनके प्रति अटूट श्रद्धा है।हनुमानजी के इस मंदिर में दर्षन के लिए पाकिस्तान के अलावा भारत से भी श्रद्धालु आते हैं। यह पवित्र स्थल पंचमुखी हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है।
दो देषों के बंटवारे के कारण इसका असर मंदिर पर भी हुआ है। जहां पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं की संख्या बहुत कम है, वहीं भारत से यहां जाने के लिए हिंदुओं को पाकिस्तान की सरकार से अनुमति लेनी होती है, जिसमें बहुत वक्त लगता है।विभाजन की त्रासदी भी हनुमानजी के प्रति श्रद्धा को कम नहीं कर सकी और आज भी यहां अनेक श्रद्धालु बाबा के दरबार में षीष झुकाते हैं।
मंदिर के इतिहास और श्रद्धालुओं की मान्यता के अनुसार, यह स्थान करीब 17 लाख साल पुराना है। यहां लाखों वर्षों से बजरंगबली भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं।
जिन हिंदुओं ने 1947 में विभाजन के समय अपना घर नहीं छोड़ा, उनके लिए ये मंदिर आस्था का अमिट चिह्न है। उस समय यही उनका प्राण रक्षक बना था। यहां कई हिंदू परिवारों ने षरण ली थी। आज भी यहां मंगलवार और शनिवार को काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।पंचमुखी हनुमान मंदिर कालचक्र के विभिन्न दौर से गुजरकर आज भी शान से खड़ा है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1882 में इसका पुनर्निमाण हुआ था।
श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान श्रीराम भी आए थे। यहां बालाजी की प्रतिमा जमीन से प्रकट हुई थी। जहां ये मंदिर है वहां से 11 मुट्ठी भरकर मिट्टी हटाई गई, तब प्रतिमा प्रकट हुई। 11 अंक का इस मंदिर में विशेष महत्व है।यहां की प्रबल मान्यता के अनुसार जो श्रद्धालु बालाजी की 11 परिक्रमाएं पूर्ण करता है, वे उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं। 21 परिक्रमा करने वाले को हनुमानजी पुनः दर्शन का अवसर देते हैं।
मंदिर का इतिहास जितना पुराना है उतनी ही पुरानी है यहां के चमत्कारों की गाथा। पंचमुखी हनुमानजी के दर्शन से असंख्य श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण हुई है।