मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

पीने के पानी का अधिकार दिया जाए

 कांग्रेस के 83वें महाअधिवेशन में बाड़मेर जैसलमेर के सांसद हरीश चौधरी ने भी संबोधित किया। चौधरी ने अपने संबोधन में युवा विकास, पीने के पानी का अधिकार, सांप्रदायिक सद्भाव पर जोर दिया। सांसद चौधरी ने कहा कि देश के कई बड़े सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आज भी पीने का पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। कई शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल नहीं मिल रहा है। जबकि पीने का पानी हर व्यक्ति की मौलिक आवश्यकता है। आज भारत का स्थान दुनिया में बहुत उच्च है। कई विश्व शक्तियां हमें संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्यता के लिए समर्थन कर रही है। ऐसे में हमें जाति धर्म से उठकर भारत देश के विकास के लिए कार्य करना चाहिए। चौधरी ने कहा कि हमारे देश में जीडीपी रेट बढ़ गई है। प्रधानमंत्री की आर्थिक नीतियों से देश आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहा है। उन्होंने कहा कि बाड़मेर जिले में नरेगा योजना में पचास हजार से अधिक टांके बने हैं, जो लोगों के लिए पेयजल संचय का महत्त्वपूर्ण स्त्रोत है। चौधरी ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रभावी क्रियान्वयन की बात रखी ताकि लोगों को अधिकाधिक फायदा मिल सके।

रविवार, 19 दिसंबर 2010

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

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अज्ञात व्यक्ति की लाश खेत में दबी मिली

बाडमेर सीमावर्ती बाडमेर जिले के सदर थाना क्षैत्र के खेतसिंह की प्याउ गांव की सरहद पर एक खेत में आात व्यक्ति की लाश मिलने से क्षैत्र में सनसनी फैल गइ्र हैं।घटना की जानकारी मिलने पर पुलिस दल सहित पुलिस अधीक्षक मौके पर पहॅच गऐं हैंपुलिस सुत्रों नें बताया कि शनिवार प्रात खेतसिंह की प्याद निवासी भूराराम नें सदर पुलिस को सूचित किया कि दसके क्षेत में एक लाश गडी होने का अन्देशा हैं।खेत के आसपास खून बिखरा पडा हैं।इस सूचना पर पुलिस दल ने मौके पर पहूॅच कर खेत में सें लाया को बाहर निकाला ।लाश एक सिख व्यक्ति की हैं।पुलिस ने ाव बरामद कर जॉच आरम्भ कर दी हैं।सूत्रों ने बताया कि कोई 24 घण्टों पहले ही दक्त व्यक्ति की हत्या कर लाश को जमीन में गाड दिया गया था।पुलिस मामले की जॉच में जुट गइ हेै।बाडमेर जिला मुख्यालय सें राष्ट्रिय राजमार्ग 15 धोरीमन्ना रोड पर 20 किलोमीटर दूर एक खेत में यह घटना हुई।पुलिस को मौके पर कई स्थानों पर खून के निशान मिले हैं।समाचार लिखे जाने तक पुलिस दल मौके पर कार्यवाही में जुटा थ।

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

जब सीमावर्ती लोगों ने पाक के इरादे नाकाम किये









भारत पाक के मध्य तृतीय युद्ध 1971 

जब सीमावर्ती लोगों ने  पाक के इरादे नाकाम किये

चन्दन सिंह भाटी 

भारत पाक के मध्य तृतीय युद्ध 1971 में पाक की भीषण गोलाबारी सही हैं। पाक की गोलाबारी व बमबारी का जिस दृ़ता के साथ बाड़मेर से साहसी नागरिकों ने सामना किया था, वह इतिहास बन चुका हैं। सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों ने युद्ध के दौरान विशेष उत्साह दिखाया, वहीं सेना का मार्गदर्शन कर पाक को शिकस्त देने में मदद की।

आज जब भारत पाक सीमा पर तनाव का माहौल हैं। दोनों की सेनाएं अपने अपने शस्त्र संभाल मोर्चे पर तैनात हैं। आज फिर सीमावर्ती गांवो के जवानों की भुजाएं पाक से दो चार हाथ करने को फडफडा रही हैं। सीमावर्ती गांवो के लोगो ने 1971 के युद्ध में अविस्मरणीय यादें आज भी ताजा हैं। गांवो के बुजुर्गो ने बताया कि पाक ने पहली बार एक साथ 19 बम हवाई जवाज से उतरलाई स्टेशन पर गिराए इन बमों के फटने से कोई हानि नहीं हुई। भारतीय सैनिकों ने इसी दिन 3 दिसम्बर 1971 को एंटी एयर क्राफ्ट गनो से शत्रु को भगा दिया। इसके अलावा एक केबिन, प्याऊ व दुकान नष्ट हो गई। अगले दिन 4 दिसम्बर को सायं सवा 5 बजे गडरारोड़ में एक तामलोरलीलमा के मध्य कई बम गिराए पाक ने। इसी बीच पाक ने हवाई हमले तेज कर दिये। 5 दिसम्बर को उतरलाई स्टेशन तथा गडरारोड़ में एकएक बम गिराया गया जो फटे भी मगर क्षति नहीं हुई। इस क्रम को 6 दिसम्बर को जारी रख पचपदरा मण्डली मार्ग पर स्थित मवडी गांव में एक साथ 43 बम गिराए जिसमें 41 फट ग तथा 2 बम बिना फटे ही रह गए। वहीं इसी दिन महाबार में 13 बम गिराए गए जिनमें पांच बम फटे और आठ बम बिना फटे ही रह गए। इन बमों के फटने से जानमाल की क्षति नहीं हुई क्योंकि लोग पहले से ही सुरक्षित स्थानों पर जा चुके थे।

अपनी विफलता पर घबराए पाक ने 7 दिसम्बर को पुनः रात्रि 11 बजे 5 बम गिराए मगर हानि नहीं हुई। बाड़मेर मुख्यालय को पहली बार 8 दिसम्बर को पाक के अब झेलने का अवसर मिला। पाक रात्रि लगभग 1 बजे मालगोदाम पर बम गिरा। मालगोदाम में रखी सामग्री जल गई। वहीं 5 मालगाडी के डिब्बे जलकर राख हो गये। इसी क्रम में उतरलाई हवाई अड्डे पर 1 बजकर 20 मिनिट पर बम गिराया। तत्पश्चात बाड़मेर रेल्वे स्टेशन पर स्थित सवारी रेलगाडी पर बम गिराया इससे चार यात्री डिब्बे में ही जलकर राख हो गये। इसी स्थान पर रखी पेट्रोल व डीजल की टंकियों को नागरिक सुरक्षा के जवानों ने तुरन्त खाली कर क्षति होने से बचाया। मगर पास रखे कोयलों में आग लग चुकी थी। स्वयं सेवको ने निस्वार्थ भावना से कार्य कर मालगोदाम कार्यालय में रखा फर्नीचर, रेकर्ड व अन्य सामग्री सुरक्षित स्थान पर डाली।

इसी रात्रि को लगभग ़ाई बजे पाक हवाई जहाज ने कोयले की ़ेरी में बम डाला मगर झाति नहीं हुई। तत्पश्चात दो बम मालगोदाम पर और गिराए गए जिसमें एक बम फटा मगर नुकसान नहीं हुआ। इसी तरह अगले दिन 9 दिसम्बर को सायं सा़े पांच बजे कोनरा तथा बच्चू का तला में 17 बम गिराए जिसमें 11 बम फटे, 5 बम फटे बिना ही रह गए तथा संदेहास्पद स्थिति में भी उन बमों के फटने से नुकसान हुआ। लखा की ़ाणी जलकर राख हो गई। वहीं लगभग 65 बकरियां जिन्दा जल गई। इसी रात्रि गौर का तला में चार बम गिराए गए जो बिनो फटे रहे। इसी दिन उतरलाई में एक बम गिराया मगर क्षति नहीं हुई।

अगले दिन 10 दिसम्बर को कुड़ला गांव के दीपसिंह की ़ाणी पर दो बम गिराए। दोनो बम फट जाने से कुछ घरों में नुकसान हुआ। अगले दिन 11 दिसम्बर को लगभग सा़े 8 बजे प्रातः रावतसर, कुडला के पास बम गिरे जिससे क्षति नहीं हुई, उधर नौ बजे प्रातः उतरलाई पर 2 बम गिराए जिके फट जाने से एक जीप जल गई तथा एक हवाई जहाज को क्षति पहुंची। रात सवा नौ बजे परबतसिंह की ़ाणी की कोटडी के पास 2 बम गिरे मगर क्षति नहीं हुई। रात्रि ड़े बजे गुलाबसिंह की ़ाणी के पास एक पेट्रोल की टंकी गिराई जिससे अग लगी मगर मामूली क्षति पहुंची। 12 दिसम्बर को जयसिन्धर स्टेशन पर बमबारी की जिससे कुछ नुकसान हुआ।

प्रातः पौने नौ बजे मीठडा खुर्द में दो बम गिराए मगर क्षति नहीं हुई। इसी दिन रात्रि 12 बजे सीमावर्ती नेवराड गांव में पैराशूट से सिलेंडर उतारा गया जो लगभग 8 कि.ग्रा. था। इस रात्रि को सरली गांव में 10 बम गिराए क्षति नहीं हुई मगर 40 गुणा 15 फीट के गड्े पड गए। इसी दिन गरल गांव के समीप रोशनी वाले सिलेंडर पैराशूट से उतारकर भय का वातावरण पैदा करने का असफल प्रयास किया गया।

इस प्रकार सेडवा में एक, बामरला में दो बम गिराए मगर क्षति नहीं हुई। पाकिस्तान ने बमबारी कर बाड़मेर की जनता में भय का वातावरण बनाने का असफल प्रयास किया। पाक को भारतीय सेना ने मुंह तोड जवाब दिया। पाक द्वारा लगभग 10 दिन लगातार बम बरसाने के बावजूद नागरिक शहर में रह कर पाक हमलों का मुकाबला किया। अंत में पाक को हार का सामना करना पड़ा। लोग आज भी अतीत को यादर कर रोमांचित हो उठते हैं। मगर इस सरहदी क्षेत्र के गांवो में 1971 के युद्ध के दौरान भीषण बमबारी की गई थी जिसमें लगभग 60 फीसदी पाक बम बिना फटे रह गए थे।

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

खड़ताल का जादुगर सदीक खान



खड़ताल का जादुगर सदीक खान

बाड़मेर पिश्चमी सीमावर्ती बाड़मेर जिले की लोक गायिकी ने थार की थळी के इस क्षैत्र की ख्याति सात समुन्द्र पार पहुचांई है।थार की थळी के लाल मांगणियार जाति के लोक गायको ने अपनी सुर साधनां के लिए ऐसे पारम्परिक वाद्य यत्रों का प्रयोग किया है जो अनुठेपन के कारण कला साधको को रोमांचित कर देते हैं।लोक गायकी के सरताज सदीक खान ने ऐसे पारम्परिक वाद्य यंत्र खड़ताल का आविश्कार कर अपने फन की विश्व भर में धूम मचा दी थी।खड़ताल का जादू संगीत प्रेमियो के सिर च कर बोला। खड़ताल ने सदीक की ख्याति में चार चॉद लगा दिए ं।खड़ताल ने सदीक को तथा सदीक ने खड़ताल को अमर कर दियां।


बाड़मेर जिले के शिव तहसील के झॉपली में जन्में सदीक ने अपने बचपन में लोक गययिकी में महारत हासिल कर ली थी।उन्होने लोक सगींत को गली कुच्चो से उठाकर सात समुन्द्र पार पंहुचाया ।सदीक का परिवार सदियो से गांव के उच्च घरानो में लोक गीतसंगीत की महफिले सजा कर जीवन निर्वाहन करते। यजमानी के साथसाथ शादी विवाह सगाई एवं अन्य समारोह में लोक गीत संगीत के जरिए दो वक्त की रोटी परिवार को मुहैया कराते थे।मंगत की बैशाखी पर लोक गायकी टिकी थी।

बचपन से ही सदीक अपने पिता के साथ झॉपली एवं शिव के विभिन्न ठिकानो पर गा बजा कर लोक गायिकी तथा वादय में दक्षता हासिल कींउनके पिता की सारंगी,तन्दुरा,कमायचा,और खड़ताल बजाने में ख्याति क्षैत्र में अर्जित की थी।अपने पूर्वजो की इस विरासत को सदीक ने जिस मनोयोग ,साधना,और समर्पित भाव से अंगीकार किया उसके परिणामस्वरुप उनकी खास पहचान बनी।सदीक अनप अवश्य था मगर लोक गीत ,संगीत ओैर वाद्य के ज्ञान का समृद्ध भण्डार था।


ोलकक,सारंगी,तन्दुरा,कमायचा ,रावणहत्था, तथा खड़ताल बजाने के फन में माहिर थे।साथ ही सैकड़ो लोक गीत कंठस्थ थे वहीं सैकड़ो लोक गीतो के रचयिता थे जिसमें उनके द्घारा रचे लोक गीत नीम्बुड़ानिम्बुड़ा ने कई कीर्तिमान स्थापित किए।

सदीक और खड़ताल एक दूसरे के पर्याय थे। खड़ताल बजाने में उनका कोई सानी ना था।खड़ताल बजाने में उनको उच्च कोटि की दक्षता हासिल थी।लोक संगीत की महफिलें सदीक के बिना अधूरी लगती थी।खास अंदाज में खड़ताल बजाने की दक्षता के कारण वे कई अन्तराश्टिृय समारोहो की शान बनकर थार को ख्याति दिलाइ्रं।जल्द सदीक खड़ताल के जादुगर के रुप में चर्चित और ख्यातिनाम हो गए।खड़ताल से इन्हे लोकप्रियता और सम्मान मिला।


छः से आठ ईंच लम्बी और डेदो ईंच चौड़ी साधरण सी दिखने वाली लकड़ी की दो पटियां जब सदीक के हाथो से बजती संगीत प्रेमी झूम उठतेंसदीक जब हाथ के अंुठे के आन्तरिक भाग एवं दूसरी चारों अंगुलियों में हथेली के बीच खड़ताल रखकर अंगुलियों के बल अधखड़ा हो कर झूमता हुआ खड़ताल बजाता तो वह सब कुछ भूल कर उसी में खो जाते थे।सुर और गीतों के स्वर जितने तेजी से साथी गायको के कण्ठ से निकलते उससे कहीं तेज गति से सदीक के हाथो से खड़ताल बजतीं। सुरीले मनमोहक लोक गीतों को जब सदीक की खड़ताल का साथ मिलता संगीत प्रेमी झूम उठतें।


सदीक ने खड़ताल का जादु सात समुन्द्र पार अमेरिका,अजे्रटिना,आस्टेृलिया,जापान, रुस सहित कई देशो में लोक गीत संगीत की स्वर लहरियॉ बिखेर कर परचम लहराया।पिश्चमी राजस्थान के लोक गीत संगीत को नई उॅचाईयां देने वाले सदीक को केन्द्रिय संगीत नाटक अकादमी ने दस हजार रुपये का नकद पुरस्कार देकर उनकी साधना को सम्मान दिया।वहीं मध्यप्रदेश सरकार ने तुलसी सम्मान से 1989 -90 में सम्मानित किया।


प्रदेश स्तर पर कई र्मतबा सम्मानित हुए हैं सदीक खान।मंगत की बैशाखी पर टिकी लोक गायिकी तथा खड़ताल की स्वर लहरियों को विश्व भर में नई पहचान देने वाले सदीक के फ.न को उनके कई शार्गिद इागे बा रहे हैं। केसरिया बालम पधारो म्हारे देस,निम्बुडानिम्बूडा चिड़कली,कुरजां,गोरबधं जेसे सैकड़ों गीत जो सदीक ने गाए आज भी संगीत प्रेमियों के बीच खासे लोक प्रिय हैं सिदिक खान के गाए लोक गीतों की कैसेट सीडीयों की मांग बराबर बनी हुई हैं।


सदीक खान की जयपुर के जवाहर कला केन्द्र में एक कार्यक्रम के दौरान तबीयत बिगड़ने से मार्च 2002 में मौत हो गई थीं।राजस्थानी लोक गीत संगीत को सादिक खान ने ना केवल नई उॅचाईयां प्रदान की बल्कि लोक गायिकी में दक्ष शार्गिद तैयार कर दिए।उनके शार्गिद अनवर खान,फकीरा खान,गाजी खान, साकर खान, परम्परागत लोक गायिकी को अन्तरराश्टिृय स्तर पर नई उॅचाईयां प्रदान कर रहे हैं।


सदीक खान के पुत्र समुन्द्र खान और शाकर खान लोक गायकी के जीते जागते उदाहरण हैं,खड़ताल बजाने में दक्ष समुन्द्र खान और ाकर खान लोक कला के सरक्षण के लिए स्वयं सेवी संस्था के माध्यम से पुरजोर प्रयास कर रहे हैं।समुन्द्र खान स्थानिय लोक कलाकारो के लिये विदेशो में कार्यक्रम तय कर उन्हें अवसर प्रदान कर रहे हैं।सादिक खान का पूरा परिवार लोक कला के संरक्षण में जुटा ह

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

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गांव का झगड़ा कचहरी नहीं पहुंचे 
 
बाड़मेर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि प्रदेश में ग्रामीण न्यायालय खोलने की शुरूआत कर दी गई है। दस दिन पहले चालीस ग्रामीण न्यायालय प्रारंभ किए गए है। कुल डेढ़ सौ ग्राम न्यायालय खोले जाएंगे। गांव का झगड़ा गांव में ही सुलट जाए इसके लिए यह प्रयास है। कचहरी जाने में समय और धन की बर्बादी होती है और गांव में विवाद बढ़ता है। सांजटा गांव में शुक्रवार को प्रशासन गांवों के संग शिविर का आकस्मिक निरीक्षण करने पहुंचे गहलोत ने यहां मौजूद ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा कि 28 दिन में लगे प्रशासन गांवो के संग शिविर में सालों के अटके कार्य हाथों हाथ हुए है। 

शिविर में लोक अदालत में हाथों हाथ फैसले होना बड़ा कार्य है। उन्होंने कहा कि पचास हजार शिक्षकों की भर्ती प्रदेश में की जाएगी। बाड़मेर में शिक्षकों के पद ज्यादा रिक्त है,यहां प्राथमिकता से नियुक्ति होगी। बिजली,पानी, बीपीएल को सहायता, सड़क मरम्मत व निर्माण का कार्य प्राथमिकता से करवाया जाएगा। सामाजिक कल्याण योजनाओं पर एक हजार करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हंै। इससे जरूरतमंद को फायदा मिलेगा।
 

पंचायतें सशक्त
गहलोत ने कहा कि पंचायतों के एक लाख तैंतीस हजार प्रतिनिधियों को सशक्त किया गया है। पंचायतों में सभी रिक्त पद भरे जाएंगे और ये प्रतिनिधि पांच विभागों की मॉनीटरिंग करेंगे ताकि लोगों को बेहतर सुविधा मिले। उन्होंने कहा कि जमाना बदल गया है अब बाड़मेर के लोग अपने आप को बदलें। बच्चों को शिक्षा से जोड़ें और आगे बढ़ाएं। सरकार पूरी मदद कर रही है अब आप लोगों का जागरूक होना जरूरी है।
 

बाड़मेर से विशष लगाव
राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी ने कहा कि प्रशासन गांवों के संग शिविर को लेकर मुख्यमंत्री की कार्य योजना तगड़ी है, इससे शिविर सफल हो रहे हंै। रास्तों का विवाद खत्म करने के लिए कानून बनाकर प्रदेश के लाखों किसानों को लाभ दिया गया है। राजस्व मंत्री ने जिले की समस्याओं के निस्तारण के लिए प्रयास की बात कही। ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज राज्यमंत्री अमीनखां ने कहा कि शिविर गरीब और असहाय लोगों के लिए फायदेमंद साबित हो रहे हैं।

मुख्यमंत्री की आम आदमी को राहत पहुंचाने की सोच की जितनी तारीफ की जाए कम है। विधायक मेवाराम जैन ने कहा कि मुख्यमंत्री का बाड़मेर से विशेष लगाव है। उन्होंने बाड़मेर लिफ्ट कैनाल, बाड़मेर में ओवरब्रिज और अन्य कई कार्य तत्परता से करवाए है। विधायक ने भूमि अवाप्ति की समस्या, लिफ्ट कैनाल के दूसरे चरण का कार्य तत्परता से करवाने की मांग की। इस मौके पर नागौर सांसद ज्योति मिर्घा, विधायक पदमाराम मेघवाल, प्रधान सोहनलाल भांभू, सरपंच बन्नूदेवी, जिला परिषद सदस्य दीपाराम चौधरी सहित कई जनप्रतिनिधि मौजूद थे।
 

मुख्यमंत्री ने पूछा "गोत कौन लगाता है?"
बाड़मेर. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शिविर के आकस्मिक निरीक्षण के दौरान तसल्ली से सारी प्रगति को टटोला।
 
मुख्यमंत्री ने शिविर में पहुंचते ही पहले सभी काउंटर पर पहुंचकर प्रगति की जानकारी ली। उन्होंने पेंशन के लिए पीपीओ दूसरे दिन जारी होने की बात सामने आने पर जिला कलक्टर गौरव गोयल से तत्काल सवाल किया किया कि ऎसा क्यों हो रहा है? जिला कलक्टर ने बिजली व इंटरनेट की समस्या बताई,इस पर मुख्यमंत्री ने उसी दिन पीपीओ जारी करने की बात कही। राजीव गांधी विद्युतिकरण योजना में केवल पांच हजार कनेक्शन होने पर गहलोत ने कहा कि यह प्रगति कमजोर है। मार्च तक काम नहीं हो पाएगा। इसमें गति की जरूरत है,इसके लिए व्यक्तिश: मॉनीटरिंग की जाए।
 

उन्होंने किसी बीपीएल से रूपए लेने वाले को दण्डित करने के निर्देश दिए। शिक्षा अधिकारियों से कहा कि यहां विद्यालय छोड़ने वाले बच्चे ज्यादा है,ऎसा क्यों है? बच्चे विद्यालय नहीं छोड़े यह सुनिश्चित किया जाए। साथ ही विद्यालयों में शिक्षकों के रिक्त पदों की जानकारी मांगी। वन विभाग के उपवन संरक्षक से सवाल किया कि जिले में पॉलीथिन की रोकथाम हो रही है या नहीं? इस पर डीएफओ से स्पष्ट जवाब देते नहीं बना।
 

जिला कलक्टर गौरव गोयल व उपखण्ड अधिकारी गुड़ामालानी सी एल देवासी ने तत्काल बात को संभाल लिया। पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने प्रगति की जानकारी पूछने से पहले ही सवाल किया कि एडवांस टीम आती है या फिर आज ही आए हों। शिविर में एडवांस टीम भेजने के निर्देश दिए। डिस्कॉम के अधीक्षण अभियंता ने बताया कि 16 कृषि कनेक्शन बकाया है तो गहलोत ने कहा कि ये बकाया नहीं रहने चाहिए। गहलोत ने राजस्व से संबंधित अधिकारियों से भी सवाल कर प्रगति की जानकारी ली।
 

सोमवार, 6 दिसंबर 2010

yad karo kurbani...indo-pak war 1971









जब सीमावर्ती लोगों ने
पाक के इरादे नाकाम किये

भारत पाक के मध्य तृतीय युद्ध 1971 में पाक की भीषण गोलाबारी सही हैं। पाक की गोलाबारी व बमबारी का जिस दृ़ता के साथ बाड़मेर से साहसी नागरिकों ने सामना किया था, वह इतिहास बन चुका हैं। सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों ने युद्ध के दौरान विशेष उत्साह दिखाया, वहीं सेना का मार्गदर्शन कर पाक को शिकस्त देने में मदद की।
आज जब भारत पाक सीमा पर तनाव का माहौल हैं। दोनों की सेनाएं अपने अपने शस्त्र संभाल मोर्चे पर तैनात हैं। आज फिर सीमावर्ती गांवो के जवानों की भुजाएं पाक से दो चार हाथ करने को फडफडा रही हैं। सीमावर्ती गांवो के लोगो ने 1971 के युद्ध में अविस्मरणीय यादें आज भी ताजा हैं। गांवो के बुजुर्गो ने बताया कि पाक ने पहली बार एक साथ 19 बम हवाई जवाज से उतरलाई स्टेशन पर गिराए इन बमों के फटने से कोई हानि नहीं हुई। भारतीय सैनिकों ने इसी दिन 3 दिसम्बर 1971 को एंटी एयर क्राफ्ट गनो से शत्रु को भगा दिया। इसके अलावा एक केबिन, प्याऊ व दुकान नष्ट हो गई। अगले दिन 4 दिसम्बर को सायं सवा 5 बजे गडरारोड़ में एक तामलोरलीलमा के मध्य कई बम गिराए पाक ने। इसी बीच पाक ने हवाई हमले तेज कर दिये। 5 दिसम्बर को उतरलाई स्टेशन तथा गडरारोड़ में एकएक बम गिराया गया जो फटे भी मगर क्षति नहीं हुई। इस क्रम को 6 दिसम्बर को जारी रख पचपदरा मण्डली मार्ग पर स्थित मवडी गांव में एक साथ 43 बम गिराए जिसमें 41 फट ग तथा 2 बम बिना फटे ही रह गए। वहीं इसी दिन महाबार में 13 बम गिराए गए जिनमें पांच बम फटे और आठ बम बिना फटे ही रह गए। इन बमों के फटने से जानमाल की क्षति नहीं हुई क्योंकि लोग पहले से ही सुरक्षित स्थानों पर जा चुके थे।
अपनी विफलता पर घबराए पाक ने 7 दिसम्बर को पुनः रात्रि 11 बजे 5 बम गिराए मगर हानि नहीं हुई। बाड़मेर मुख्यालय को पहली बार 8 दिसम्बर को पाक के अब झेलने का अवसर मिला। पाक रात्रि लगभग 1 बजे मालगोदाम पर बम गिरा। मालगोदाम में रखी सामग्री जल गई। वहीं 5 मालगाडी के डिब्बे जलकर राख हो गये। इसी क्रम में उतरलाई हवाई अड्डे पर 1 बजकर 20 मिनिट पर बम गिराया। तत्पश्चात बाड़मेर रेल्वे स्टेशन पर स्थित सवारी रेलगाडी पर बम गिराया इससे चार यात्री डिब्बे में ही जलकर राख हो गये। इसी स्थान पर रखी पेट्रोल व डीजल की टंकियों को नागरिक सुरक्षा के जवानों ने तुरन्त खाली कर क्षति होने से बचाया। मगर पास रखे कोयलों में आग लग चुकी थी। स्वयं सेवको ने निस्वार्थ भावना से कार्य कर मालगोदाम कार्यालय में रखा फर्नीचर, रेकर्ड व अन्य सामग्री सुरक्षित स्थान पर डाली।
इसी रात्रि को लगभग ़ाई बजे पाक हवाई जहाज ने कोयले की ़ेरी में बम डाला मगर झाति नहीं हुई। तत्पश्चात दो बम मालगोदाम पर और गिराए गए जिसमें एक बम फटा मगर नुकसान नहीं हुआ। इसी तरह अगले दिन 9 दिसम्बर को सायं सा़े पांच बजे कोनरा तथा बच्चू का तला में 17 बम गिराए जिसमें 11 बम फटे, 5 बम फटे बिना ही रह गए तथा संदेहास्पद स्थिति में भी उन बमों के फटने से नुकसान हुआ। लखा की ़ाणी जलकर राख हो गई। वहीं लगभग 65 बकरियां जिन्दा जल गई। इसी रात्रि गौर का तला में चार बम गिराए गए जो बिनो फटे रहे। इसी दिन उतरलाई में एक बम गिराया मगर क्षति नहीं हुई।
अगले दिन 10 दिसम्बर को कुड़ला गांव के दीपसिंह की ़ाणी पर दो बम गिराए। दोनो बम फट जाने से कुछ घरों में नुकसान हुआ। अगले दिन 11 दिसम्बर को लगभग सा़े 8 बजे प्रातः रावतसर, कुडला के पास बम गिरे जिससे क्षति नहीं हुई, उधर नौ बजे प्रातः उतरलाई पर 2 बम गिराए जिके फट जाने से एक जीप जल गई तथा एक हवाई जहाज को क्षति पहुंची। रात सवा नौ बजे परबतसिंह की ़ाणी की कोटडी के पास 2 बम गिरे मगर क्षति नहीं हुई। रात्रि ड़े बजे गुलाबसिंह की ़ाणी के पास एक पेट्रोल की टंकी गिराई जिससे अग लगी मगर मामूली क्षति पहुंची। 12 दिसम्बर को जयसिन्धर स्टेशन पर बमबारी की जिससे कुछ नुकसान हुआ।
प्रातः पौने नौ बजे मीठडा खुर्द में दो बम गिराए मगर क्षति नहीं हुई। इसी दिन रात्रि 12 बजे सीमावर्ती नेवराड गांव में पैराशूट से सिलेंडर उतारा गया जो लगभग 8 कि.ग्रा. था। इस रात्रि को सरली गांव में 10 बम गिराए क्षति नहीं हुई मगर 40 गुणा 15 फीट के गड्े पड गए। इसी दिन गरल गांव के समीप रोशनी वाले सिलेंडर पैराशूट से उतारकर भय का वातावरण पैदा करने का असफल प्रयास किया गया।
इस प्रकार सेडवा में एक, बामरला में दो बम गिराए मगर क्षति नहीं हुई। पाकिस्तान ने बमबारी कर बाड़मेर की जनता में भय का वातावरण बनाने का असफल प्रयास किया। पाक को भारतीय सेना ने मुंह तोड जवाब दिया। पाक द्वारा लगभग 10 दिन लगातार बम बरसाने के बावजूद नागरिक शहर में रह कर पाक हमलों का मुकाबला किया। अंत में पाक को हार का सामना करना पड़ा। लोग आज भी अतीत को यादर कर रोमांचित हो उठते हैं। मगर इस सरहदी क्षेत्र के गांवो में 1971 के युद्ध के दौरान भीषण बमबारी की गई थी जिसमें लगभग 60 फीसदी पाक बम बिना फटे रह गए थे। 

रविवार, 5 दिसंबर 2010

पटवारी की गलती ने उसे पाकिस्तानी बना उाला 35 सालों से खुद को भारतीय साबित करने में जुटा हैं मेगा






पटवारी की गलती ने उसे पाकिस्तानी बना डाला 

35 सालों से खुद को भारतीय साबित करने में जुटा हैं मेगा


बाडमेर सीमावर्ती बाडमेर जिले के सरहदी गांव बाण्डासर निवासी मेगे खान पिछले 35 सालों से खुइ को भारतीयसाबित करने में जुटा हैंएपटवारी की एक गलती नें उसे पाकिस्तानी बना उाला।सरकार नें पटवारी की रिपोर्ट के आधार पर उसकी सेकडों बीघा भूमी खालसा घोषित कर दिया।मेगा पिछले 35 सालों से अपनी खुद की जमीन वापिस पानें के लिऐं संधर्ष कर रहा हैं।इस संधर्ष के कारण मेगा ने निकाह तक नहीं किया।


यह कहानी हैं बाडमेर जिले के सरहदी गांव बाण्डासर के मेगा खान पुत्र मिसरा खान की।पाक सीमा से सटे इस गांव के मेगा खान की कृषि जमीन थी।इस जमीन पर खेती बाडी कर गुजारा करना था।1975 में तत्कालीन पटवारी गडरा रोड नें एक गलत रिपोर्ट जिला प्रशासन को पेश कर लिखा कि मेगा खान पुत्र मिसरा निवासी बाण्डासर पाकिस्तसन चला गया।पटवारी की रिपोर्ठ के आधार पर राज्य सरकार नें मेगा की जमीन यह कह कर खालसा कर दी कि मेगा हमेशा के लिऐं पाकिस्तान चला गया जबकि मेगा कभी पाक नही गया॥मेगा को जब यह पता चला कि उसकी जमीन खालसा हो गई,उसने सरकार के इस फैसले के खिलाफ न्यायालय में अपील की।35 साल से मेगा अपने आप को भारतीय साबित करने में जुटा रहा एंमेगा का राशन कार्ड,वोटर कार्ड बाण्इासर का बना हैं,राज्य सरकार से उसे विकलांग पेंशन मिल रही हैं।इसके बावजूइ मेगा को खुद को साबित करने में 35 साल लग गयें।जमीन वापसी की इस जंग में मेगा कानूनी दांव पेंच के आगे आर्थिक रूप से बुरी तरह प्रभावित हुआ।जिसके कारण दसकों कंवारा रहना पडा।मेगा को 35 साल बाद उपखण्ड मजिस्ट्रेट शिव नें उसकी जमीन को लौटाने के आदेश दिऐंतथा तहसीलदार शिव को आदेश दिया कि मेगा की जमीन लौटा कर ,जमीन उसके नाम की जाकर अमल दरामद की जाऐं। मजिस्ट्रेट के आदेश के 6 माह बाद भी तहसीलदार नें मेगा को उसकी जमीन नही लौटाईएना ही कोई कार्यवाही कींमेगा नें बुधवार को जिला कलेक्टर के आगे कई बार दरख्वास्त लगाई।जिला कलेक्टर नें उसे न्याय की आशा बंधाई थी ।मगर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई 

सोमवार, 22 नवंबर 2010

रेगिस्तान के द्रोणाचार्य ने रचा इतिहास


रेगिस्तान के द्रोणाचार्य ने रचा इतिहास
बाड़मेर। बाड़मेर जिले की सीमा पर स्थित जैसलमेर के छोटे-से गांव सिहड़ार के रहने वाले भारतीय सेना के सुबेदार मेजर रिड़मलसिंह भाटी ने देश को एक साथ दो-दो पी टी उषा देकर इतिहास रच दिया है। भारत की राष्ट्रीय एथलीट टीम में लम्बी दौड़ स्पर्द्धा के कोच भाटी की शिष्य प्रीजा श्रीधरन व कविता राउत ने दस हजार मीटर दौड़ में रविवार को ग्वांगझू एशियाड में क्रमश: स्वर्ण व रजत मेडल जीतकर देश का गौरव बढ़ाया।
रेगिस्तान के द्रोणाचार्य रिड़मलसिंह भाटी की सफलता की यात्रा उपलब्घियों भरी है, जो ग्वांगझू एशियाड तक पहुंचते-पहुंचते स्वर्णिम व ऎतिहासिक हो गई है। भाटी के शिष्यों ने पिछले चार वर्ष मे एशिया स्तर पर 87 मेडल एवं हाल ही में दिल्ली में सम्पन्न हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में एक मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। एक खिलाड़ी के रूप में ट्रेक को अलविदा कहने के बाद 2006 में वे राष्ट्रीय एथलेटिक्स टीम के कोच बने और प्रतिभाओं को निखारने में जुट गए। प्रीजा ने रविवार को ग्वांगझू में गोल्ड मेडल जीतकर भाटी को स्वर्णिम गुरूदक्षिणा दी।
अगला लक्ष्य ओलम्पिक मेडल
पूरे देश के लिए गौरव की बात है कि प्रीजा व कविता ने एशियाड में मेडल जीते हैं। इन तीनों का कोच होने के नाते मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है, लेकिन हमारा लक्ष्य ओलम्पिक में देश के लिए मेडल जीतना है। -सुबेदार मेजर रिड़मलसिंह भाटी

भारत-पाक सरहद पर वीरातरा स्थित वीरातरा माता का मंदिर


भारत-पाक सरहद पर वीरातरा स्थित वीरातरा माता का मंदिर सैकड़ों वषोंर से आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यहां प्रति वर्ष चैत्र,भादवा एवं माघ माह की शुक्ल पक्ष की तेरस एवं चौदस को मेला लगता है। अखंड दीपक की रोशनी,नगाड़ों की आवाज के बीच जब जनमानस नारियल जोत पर रखते है तो एक नई रोशनी रेगिस्तान के वीरान इलो में चमक उठती है।
वीरातरा माता की प्रतिमा प्रकट होने के पीछे कई दंतकथाएं प्रचलित है। एक दंतकथा के मुताबिक प्रतिमा को पहाड़ी स्थित मंदिर से लाकर स्थापित किया गया। अधिकांश जनमानस एवं प्राचीन इतिहास से संबंध रखने वाले लोगों का कहना है कि यह प्रतिमा एक भीषण पाषाण टूटने से प्रकट हुई थी। यह पाषाण आज भी मूल मंदिर के बाहर दो टूकड़ों में विद्यमान है। वीरातरा माता की प्रकट प्रतिमा से एक कहानी यह भी जुड़ी हुई है कि पहाड़ी स्थित वीरातरा माताजी के प्रति लोगों की अपार श्रद्घा थी। कठिन पहाड़ी चढ़ाई, दुर्गम मार्ग एवं जंगली जानवरों के भय के बावजूद श्रद्घालु दर्शन करने मंदिर जरूर जाते थे। इसी आस्था की वजह से एक 80 वर्षीय वृद्घा माताजी के दर्शन करने को पहाड़ी के ऊपर चढ़ने के लिए आई। लेकिन वृद्घावस्था के कारण ऊपर चढ़ने में असमर्थ रही। वह लाचार होकर पहाड़ी की पगडंडी पर बैठ गई। वहां उसने माताजी का स्मरण करते हुए कहा कि वह दर्शनार्थ आई थी। मगर शरीर से लाचार होने की वजह से दर्शन नहीं कर पा रही है। उसे जैसे कई अन्य भक्त भी दर्शनों को लालायित होने के बाद दर्शन नहीं कर पाते। अगर माताजी का ख्याल रखती है तो नीचे तलहटी पर आकर छोटे बच्चों एवं वृद्घों को दर्शन दें। उस वृद्घा की इच्छा के आगे माताजी पहाड़ी से नीचे आकर बस गई। वीरातरा माताजी जब पहाड़ी से नीचे की तरफ आई तो जोर का भूंप आया। साथ ही एक बड़ा पाषाण पहाड़ी से लुढ़कता हुआ मैदान में आ गिरा। पाषाण दो हिस्सों में टूटने से जगदम्बे माता की प्रतिमा प्रकट हुई। इसे बाद चबूतरा बनाकर उस पर प्रतिमा स्थापित की गई। सर्वप्रथम उस वृद्ध महिला ने माताजी को नारियल चढ़ाकर मनोकामना मांगी।
प्रतिमा स्थापना के बाद इस धार्मिक स्थान की देखभाल भीयड़ नामक भोपा करने लगा। भीयड़ अधिकांश समय भ्रमण कर माताजी के चमत्कारों की चर्चा करता। माताजी ने भीयड़ पर आए संकटों को कई बार टाला। एक रावल भाटियों ने इस इलो में घुसकर पशुओं को चुराने एवं वृक्षों को नष्ट करने का प्रयत्न किया। भाटियों की इस तरह की हरकतों को देखकर भोपों ने निवेदन किया कि आप लोग रक्षक है। ऐसा कार्य न करें, मगर भाटियों ने इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। उल्टे भोपों को परेशान करना प्रारंभ कर दिया। लाचार एवं दुखी भोपे भीयड़ के पास आए। भीयड़ ने भी भाटियों से प्रार्थना की। इसे बदले तिरस्कार मिला। अपनी मर्यादा और इलाके के नुकसान को देखकर वह बेहद दुःखी हुआ। उसने वीरातरा माता से प्रार्थना की। माता ने अपने भक्त की प्रार्थना तत्काल सुनते हुए भाटियों को सेंत दिया कि वे ऐसा नहीं करें। मगर जिद्द में आए भाटी मानने को तैयार नहीं हुए। इस पर उनकी आंखों से ज्योति जाने लगी। शरीर में नाना प्रकार की पीड़ा होने लगी। लाचार भाटियों ने क्षमास्वरूप माताजी का स्मरण किया और अपनी करतूतों की माफी मांगी। अपने पाप का प्रायश्चित करने पर वीरातरा माताजी ने इन्हें माफ किया। भाटियों ने छह मील की सीमा में बारह स्थानों का निर्माण करवाया। आज भी रोईडे का थान,तलेटी का थान, बेर का थान, तोरणिये का थान, मठी का थान,ढ़ोक का थान, धोरी मठ वीरातरा, खिमल डेरो का थान, भीयड़ भोपे का थान, नव तोरणिये का थान एवं बांकल का थान के नाम से प्रसिद्ध है। वीरातरा माताजी की यात्रा तभी सफल मानी जाती है जब इन सभी थानों की यात्रा कर दर्शन किए जाते है।
चमत्कारों की वजह से कुल देवी मानने वाली महिलाएं न तो गूगरों वाले गहने पहनती है और न ही चुड़ला। जबकि इन इलो में आमतौर पर अन्य जाति की महिलाएं इन दोनों वस्तुओं का अनिवार्य रूप से उपयोग करती है। वीरातरा माता के दर्शनार्थ बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात समेत कई प्रांतों के श्रद्घालु यहां आते हैं।

"Om Jai Shiv Omkara" - Lord Shiva Aarti