शुक्रवार, 6 मार्च 2020

जैसलमेर मुस्कराने लगे रेगिस्तान में रोहिड़े के फूल

जैसलमेर  मुस्कराने लगे रेगिस्तान में रोहिड़े के फूल


जैसलमेर प्रकृति ने मरुस्थलीय इलाको में एक से बढकर एक वृक्षों को अपनी थाह दी है। इनमें राज्य पेड़ रोहिड़ा भी शुमार है। रोहिड़ा के फूलों की सुन्दरता किसी से छुपी नही है। फूलो ने इन दिनो खुशबू बिखेरनी शुरू कर दी है। एक दिन की जिन्दगी में अजीब अनुभूति का अहसास कराने वाले फूलों की सुगन्ध दिलो मे वर्षों तक महकती रहती है। रोहिड़ा के फूलों की इन दिनो बहार छाई हुई है।राज्य पुष्प के रूप में रोहिड़ा फूल नामांकित हैं  रोहिडा के वृक्ष यद्यपि क्षैत्र मे काफी कम संख्या में है, लेकिन केसरिया रंग के फूलों से लदे वृक्ष देखकर लोग मंत्रमुग्ध हो उठते हैं। जैसलमेर के नहरी इलाको सहित देवीकोट ,फतेहगढ़ और बारमेर जिले के चौहटन धोरीमन्ना में रोहिड़े के पेड़ बड़ी तादाद में हैं ,राणीगांव में तो हजारो बीघा जमीन पर रोहिड़े के हज़ारो पेड़ो पर पुष्प मुस्करा रहे हैं

टेकामेला अन्डयूलेटा के नाम से जाने वाले इस वृक्ष की बढ़ोतरी काफी धीमी गति से होती है। जानकारी के मुताबिक इसकी उम्र लगभग शतायु तक होती है और अमूमन आधी उम्र के बाद इसकी लकड़ी परिपक्व होती है, लेकिन मांग मे बढ़ोतरी होने पर इसे परिपक्व होने से पहले ही काट लिया जाता है। नरम जमीन व रेतीले धोरो पर पैदा होने वाला रोहिडा अंधाधुंध कटाई एवं आवश्यक सरक्षण के अभाव मे विलुप्त होता जा रहा है। सागवान से महज कुछ ही कम कीमत पर बिकने वाली रोहिडा की लकडी नक्काशी के लिए उम्दा किस्म की मानी गई है।

नक्काशीदार फर्नीचर उद्योग को बढ़ावा मिलने के साथ ही रोहिडा की मांग में भी इजाफा होता गया। मुलायम एवं चमकदार लकड़ी से बने उतम फर्नीचर व अन्य सामान आलीशान बंगलो,भवनो व विशिष्ठ लोगो के घरो की शान मे चार चांद लगाते है। कम पानी व कुछ हद तक रेगिस्तानी माहौल में उत्पन्न होने वाले इस वृक्ष की लकड़ी पर बारीक नक्काशी व कारीगरी हर किसी को आकर्षित कर लेती है। फर्नीचर की क्षेत्र मे मांग बढऩे से रोहिडा के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। दिसम्बर व जनवरी मे इस पर बहार छाने लगती है।

फरवरी में बसंत ऋतु के चलते रोहिडा वृक्ष केसरिया आभा के लिए फूलों से आच्छादित हो जाता है तो लगता है मानो धरा श्रृंगारित हो गई हो। मार्च में फलियां बन जाती है। महीने के अंत तक फलियां पक जाती है इसका बीज भी हल्का होता है तथा हवा के जरिए उड़कर दुसरे स्थान पर बिखरता है। बरसात के मौसम मे बीज अंकुरित हो जाते है। रोहिडा वृक्ष एक बार उगने के बाद उपर से काटने के बावजूद अकसर जिंदा रहता है। रोहिडा के पते, फूल व फलियां तक भेड-बकरी व ऊट चाव से खाते है। चरवाहो की नासमझी के चलते बीज से भरी फलियां जानवर उदरस्थ कर लेते है।

इससे इस वृक्ष की पैदावार पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। यद्यपि प्रशासनिक स्तर पर रोहिडा को संरक्षण जरूर प्राप्त है, किन्तु बढती मांग के कारण कारीगर खेत मालिक से मिलकर सौदा तय कर ही लेते है। दूसरे पेडो की अपेक्षा रोहिडा के दाम भी कुछ ज्यादा ही मिलते है, इस वजह से खेत मालिक आसानी से रोहिडा बेच देते है। वृक्ष को काटकर आरा मशीनो तक पहुचाने मे भी कुछ खास समय जाया नही करना पड़ता है। यद्यपि सरकारी रोकथाम के चलते ये लोग रात मे काफी सतर्कता बरतते है। रोहिडा के फूलो का अंदाज ही निराला है। प्रकृति ने इनके फूलो को भी अनुपम सुन्दरता प्रदान की है। लेकिन फूलो मे भी कुछ प्रजातियां एसी है जो सुन्दरता के साथ अपनी खुश्बू भी बिखेरती है।

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