शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

तो क्या अब सचिन पायलट की टीम राजस्थान में मुस्तैदी से काम करेगी? अशोक गहलोत मुख्यमंत्री के पद रहते हुए कितना तालमेल बैठा पाएंगे। प्रियंका गांधी की भी भूमिका। पायलट के लिए आसान नहीं होगा समर्थकों को समझाना।


तो क्या अब सचिन पायलट की टीम राजस्थान में मुस्तैदी से काम करेगी? अशोक गहलोत मुख्यमंत्री के पद रहते हुए कितना तालमेल बैठा पाएंगे। प्रियंका गांधी की भी भूमिका। पायलट के लिए आसान नहीं होगा समर्थकों को समझाना।
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अब जब दो दिन की कड़ी मशक्कत के बाद 14 दिसम्बर को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने अशोक गहलोत को राजस्थान का मुख्यमंत्री घोषित कर दिया है, तब यह सवाल उठता है कि क्या अब सचिन पायलट की टीम प्रदेश में मुस्तैदी से कांग्रेस के लिए काम करेगी। सब जानते हैं कि पिछले पांच वर्षों में पायलट की टीम ने राजस्थान में कांग्रेस को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए वर्ष 2013 में कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा और 200 में से मात्र 21 विधायक कांग्रेस के जीत पाए। ऐसी बुरी दशा में पायलट ने प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर संभाली और 2018 में कांग्रेस के सौ उम्मीदवार विधायक बन गए। लेकिन जब मुख्यमंत्री बनने की बात आई तो कांग्रेस हाईकमान ने उन्हीं अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया जिनके कार्यकाल में मात्र 21 सीटें आई थी। यही वजह है कि अब सचिन पायलट की टीम के लोग यह सवाल कर रहे है कि पांच वर्ष तक मेहनत करने का क्या फायदा हुआ? यदि कांग्रेस हाईकमान की नजर में गहलोत ही सब कुछ है तो फिर 2013 में बुरी हार के बाद ही गहलोत को प्रदेश अध्यक्ष बना देना चाहिए था। सब जानते हैं कि उस समय प्रदेशभर में गहलोत का विरोध था, इसलिए उन्हें प्रदेश की र ाजनीति से हटा कर दिल्ली बुला लिया। पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद न केवल उपचुनावों में कांगे्रस को जीत दिलवाई बल्कि पंचायती राज और स्थानीय निकायों के चुनावों में भी मजबूती दिलवाई। 11 माह पहले हुए लोकसभा के दो उपचुनावों में तो कांग्रेस ने सभी 17 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की। इससे कांग्रेस के पक्ष में जो माहौल बना उसका फायदा विधानसभा के चुनाव में हुआ। प्रदेशभर के लोगों को यही उम्मीद थी कि पायलट ही मुख्यमंत्री बनेगे। लेकिन राहुल गांधी ने गहलोत को ही फिर से मुख्यमंत्री बना दिया। ऐसे में सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि यदि गहलोत के कार्यकाल के दौरान 2013 वाले हालात उत्पन्न हुए तो फिर कौन जिम्मेदार होगा? मुख्यमंत्री के पद को लेकर पिछले दो दिन से दिल्ली में जो खींचतान हुई उसमें साफ हो गया कि गहलोत और पायलट अलग-अलग हैं। राजस्थान की राजनीति को समझने वाले जानते है कि पूर्व में जब पायलट केन्द्र में मंत्री थे और गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री थे, तब  दोनों में तालमेल नहीं था। जानकारों की माने तो पायलट जिन अधिकारियों के लिए सिफारिश करते थे, उन पर राजस्थान की सरकार कोई कार्यवाही नहीं करती थी। आखिर के दिनों में तो पायलट ने अपने लोगों से यह कहना शुरू कर दिया कि राज्य सरकार को पत्र लिखने से कोई फायदा नहीं हैं। अब जब सचिन पायलट और उनकी टीम की मेहनत का फायदा गहलोत ने उठा लिया है तो यह सवाल भी अपने आप में महत्वपूर्ण है कि सचिन पायलट की गहलोत की सरकार में कितनी चलेगी? सचिन पायलट के समर्थक विधायक भी मंत्री बनना चाहेंगे। आने वाले दिनों में पता चलेगा कि मंत्री मंडल में पायलट के कितने विधायक शामिल होते हैं। यदि दोनों नेताओं में तालमेल नहीं रहा तो मई में होने वाले लोकसभा के चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ेगा। यह तीसरा अवसर होगा, जब अशोक गहलोत राजस्थान के सीएम बनने जा रहे हैं। इसे अशोक गहलोत का जादू ही कहा जाएगा कि वे सीएम पद की शपथ ले रहे हैं।
प्रियंका का दखल:
गहलोत को मुख्यमंत्री बनवाने में कांग्रेस की शीर्ष नेता सोनिया गांधी के साथ साथ राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी की भी सक्रिय भूमिका रही हैं। सूत्रों की माने तो राहुल गांधी सचिन पायलट को सीएम बनाना चाहते थे, लेकिन सोनिया और प्रियंका की दखल के बाद राहुल को अपना निर्णय बदलना पड़ा, लेकिन जब पायलट ने नाराजगी व्यक्त की तो राहुल गांधी को पायलट के दोस्त भंवर जीतेन्द्र सिंह को बुलाना पड़ा। 14 दिसम्बर की सुबह राहुल के आवास पर भंवर जीतेन्द्र और प्रियंका गांधी के बीच मुलाकात हुई इस मुलाकात में ही पायलट को समझाने की कोशिश की। सूत्रों की माने तो पायलट सशर्त राजी हुए है। यानि गहलोत मंत्री मंडल में पायलट के समर्थकों की संख्या ज्यादा रहेगी। मंत्री मंडल के सदस्यों के नाम पर ही राहुल गांधी के सामने सहमति बनी है।
विधायक दल की बैठक में होगा चयन:
जयपुर के प्रदेश कार्यालय में कांग्रेस विधायकों की बैठक होगी और इसी में अब गहलोत को विधायक दल का नेता चुना जाएगा। गहलोत और पायलट में कोई विवाद नजर न आए इसके लिए पायलट द्वारा गहलोत का नाम प्रस्तावित किया जाएगा। 14 दिसम्बर की रात तक गहलोत को नेता चुने जाने की जानकारी राज्यपाल कल्याण सिंह को दे दी जाएगी। माना जा रहा है कि गहलोत मुख्यमंत्री पद की शपथ जल्द लेंगे।
पायलट के लिए आसान नहीं होगा:
भले ही पायलट ने दिल्ली में राहुल गांधी के सामने गहलोत को सीएम बनाने पर सहमति दे दी हो लेकिन राजस्थान में अपने समर्थकों खास कर अपनी गुर्जर जाति के लोगों को समझाना पायलट के लिए आसान नहीं होगा। प्रदेश भर के गुर्जर समुदाय ने इस बार कांग्रेस के पक्ष में एकतरफ मतदान किया, इसकी वजह यही थी कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। पायलट ने टोंक विधानसभा क्षेत्र ेस चुनाव भी इसलिए लड़ा कि वहां मुस्लिम मतद ाताओं के साथ साथ गुर्जर मतदाताओं की संख्या भी ज्यादा है। 54 हजार मतों की जीत बताती है कि पायलट के पक्ष में किस तरह मतदान हुआ। हालांकि पायलट बार बार छत्तीस कौमों के समर्थ का दावा करते हैं। पायलट ने कांग्रेस को बहुमत मिलने पर सर्व समाज का आभार भी जताया है। पायलट के सीएम बनने बनने से उनके समर्थकों में निराशा है। ऐसे में देखना होगा कि पायलट अपने समर्थकों में किस प्रकार से जोश भरते है।
एस.पी.मित्तल) (14-12-18)
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