मंगलवार, 13 नवंबर 2018

बाड़मेर। ज्ञान सर्वत्र, सर्वदा और सभी के द्वारा पूजनीय है:- प.पू. मनितप्रभसागर

बाड़मेर। ज्ञान सर्वत्र, सर्वदा और सभी के द्वारा पूजनीय है:- प.पू. मनितप्रभसागर


बाड़मेर। परम पूज्य मोकलसर नंदन मुनि श्री मनितप्रभसागरजी म.सा. ने कोटड़िया - नाहटा ग्राउण्ड में विराजमान विशाल जनसमुह को संबोधित करते हुए ज्ञान की महिमा का वयाख्यान करते हुए कहा -ज्ञान ऐसा दीप है जो जीवन पथ को आलोकित व प्रकाशित करता है।सम्यक ज्ञान आत्मा का कल्याण करता है।मिथ्यात्व ज्ञान भोग-विलाश व संसार की वृदि करता है,सम्यक ज्ञान आत्मा की वह शक्ति है जो आचार-विचार और व्यवहार को अनुशासित करती हुई जीवन को सम्यक रूप प्रदान करती है।वस्तु के स्वभाव को जानना, पद्धार्थों का बोध ज्ञान कहलाता है। शास्त्रों में 5 प्रकार के ज्ञान के भेद कहे है- मतिज्ञान, श्रतुज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान। जिनमें प्रांरभ के दो इन्द्रिय प्रत्यक्ष है और बाद के तीन ज्ञान इन्द्रिय परोक्ष है अर्थात् जिस ज्ञान में इन्द्रियों की आवश्यकता न पडे़। ज्ञान के लिए कहा गया है कि - विधा विहीनः पशुभिः समाना विधा के व्यक्ति पशु के समान है।वर्तमान में हम ज्ञान को नहीं अपितु धन को महत्व देते हैं परन्तु याद रखना - जिस धन का आप उपार्जन कर रहे हो, उस धन को कमाना भी ज्ञान के द्वारा ही संभव हैं। जीवन में धन नहीं है तो जीवन चल सकता है परन्तु जिसके पास ज्ञान धन नहीं है उसका जीवन मुरझाये फूल की भाँति है।सेठ की पूजा धर तक होती है, राजा की पूजा देश तक होती है परन्तु ज्ञानी की पूजा सर्वत्र होती है।पूज्य मुनि भगवंत ने धन और ज्ञान में अन्तर बताते हुए कहा - धन वह जिसे कमाने में मेहनत लगती है और जो टिकाऊ नहीं रहता और ज्ञान वह जिसे कमाने, उपार्जन करने से वह बढ़ता रहता है। धन की हम सुरक्षा करते है और ज्ञान हमारी सुरक्षा करता है। ज्ञान तो ऐसा धन है जो बाँटने से बढ़ता है । अतः ज्ञान बाँटने में कभी कंजूसी मत करना और ज्ञान लेने में कभी आलस मत करना।पदार्थ समय के साथ हमेशा पुराने होते जाते है, वर्ण, मंध, रस और स्पर्श पल प्रतिपल बदलता रहता है परन्तु ज्ञान वह है जो चाहे कितना भी पुराना लिखित वर्णित हो उसके बाद भी सदा उसे पढ़ने में ताजगी, नवीनता का अनुभव होता है।ज्ञान सर्वत्र, सर्वदा और सभी के द्वारा पूजनीय है। ज्ञान के साथ - साथ ज्ञान दाता और ज्ञान के उपकरण भी पूजनीय, वंदनीय है क्योंकि कारण के बिना कभी कार्य की निष्पति नहीं होती है। ज्ञान उपार्जन कराने वाले भगवान, गुरू भगवंत और जिन पुस्तकों के द्वारा हम ज्ञान उपार्जन करते है वे हमारे सबसे बड़े उपकारी है। दशवैकालिक सुत्र के चैथे अध्ययन मंे कहा गया है कि - ‘‘ पढ़म नाणं तओ दया‘‘ अर्थात् पहले ज्ञान और फिर दया धर्म है। क्योंकि ज्ञान के द्वारा ही तो सम्यक् रूप से हम धर्म को जान सकते है, बोध पा सकते है। सम्यक्ज्ञान ही वो आलंवन है जो हमें सद्बुद्धि दे सकता है।





ज्ञान की पुस्तके हमें ज्ञान का प्रकाश देती है , स्वाध्याय की सुबास देगी और आत्मा का निवास देगी । इस दुनिया मे ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें ही इन्सान की सबसे अच्छे मित्र होती है जो इस दुनिया में ज्ञानवर्द्धक पुस्तके ही इन्सान की सबसे अच्छे मित्र होती है जो हर सुख-दुःख में   व्यक्ति को सही राह दिखलाती है कि सुख में इतराओं मत और दुख में धबराओं मत, बस हमेशा आगे बढ़ते चलो, रूको मत। यकना मृत्यु है और चलना जीवन। ज्ञान और स्वाध्याय तो वह संजीवनी है जो मरते हुए जीव को समभाव का, धर्म ध्यान का संबल देती है।

ज्ञान पंचमी पर हुए कई आयोजन-खरतरगच्छ चातुर्मास समिति के महामंत्री केवलचन्द छाजेड ने बताया कि ज्ञान पंचमी के उपलक्ष में कुशल कान्ति मणि प्रवचन वाटिका में ज्ञान की पुस्तको की विशेष सजावट की गई।ज्ञान के समक्ष सैकडो श्रावक-श्राविकाओं द्वारा पांच ज्ञानो के चैत्यवन्दन व एकावन खमासणे देकर तपस्वियो द्वारा देववन्दन क्रिया सम्पन की गई।ज्ञान पंचमी के दिन हजारो श्रावक-श्राविकाओं ने ज्ञान दायिनी मां सरस्वती के तस्वीर के समक्ष पुस्तक व कलम अर्पण की। प.पू. मनितप्रभ सागर जी म.सा. द्वारा ज्ञान पंचमी को जूना किराडू मार्ग पर ज्ञान वाटिका का शुभारम्भ किया गया। जिसमें छोटे बच्चो को आध्यात्मिक व धार्मिक शिक्षा जैन समाज की बहनो द्वारा दी जायेगी।

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