*थार की चुनावी रणभूमि 2018*
*सरहद का एक गांव जंहा पानी बिजली तो नही धर्म की राजनीति जरूर पहुंची,मूलभूत सुविधाओं के प्रति नही पर मतदान के प्रति जागरूक*
*बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक की खास रिपोर्ट*
बाडमेर पाकिस्तान की सीमा से पांच किलोमीटर पहले राजस्थान के बाड़मेर के कैरकोरी गांव में रहनेवाले शरीफ़ को जितनी प्यास लगती है, वो उससे आधा पानी ही पीते हैं.
शरीफ़ कहते हैं कि पानी बचाना ज़रूरी है क्योंकि यहां पानी की कोई व्यवस्था नहीं है, यहां कपड़े भी 20 दिन बाद धोए जाते हैं.
बारिश होती है तो गांव के कुंए में पानी भर जाता है बाकी समय घर की महिलाएं पांच किलोमीटर दूर पैदल चलकर जाती हैं और मटका भरकर पानी लाती हैं.
पानी ला दो...
हाथ जोड़कर मुझे कहते हैं, "कुछ भी करके पानी ला दो. हमें बस पानी चाहिए. इस बालू के बीच हमारा गला हमेशा सूखा रहता है और हमारे पशु मर जाते हैं."
उनके हाथ नीचे कर मैं कहता हूं कि मैं सरकार नहीं पत्रकार हूं. इस पर वो कहते हैं, "सरकार तो पांच साल में एक बार ही हमारे पास आती है और उसे चुनने का हक जताने के लिए भी हमें ही पांच किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है."
'सड़क नहीं'
बाड़मेर शहर से क़रीब 120 किलोमीटर दूर बसे कैरकोरी गांव में 30 से अधिक परिवार रहते हैं और 90 पंजीकृत वोटर हैं.
गांव के आसपास सात किलोमीटर तक कोई सड़क नहीं, सिर्फ बालू है. हमने ये रास्ता एक बड़ी गाड़ी में तय किया था. गांववाले रोज़ पैदल ही करते हैं.
गांव में बिजली के तार आए हैं लेकिन बिजली नहीं है. ठीक वैसे ही जैसे पानी की पाइप लाइन और टंकी तो है पर सालों से टूटी हुई है.
चुनावी मौसम
एक बुज़ुर्ग महिला मुझे पास बुलाकर कान में कहती हैं, "बेटा उम्र बीत गई पानी का घड़ा ढोते-ढोते लेकिन पानी यहां नहीं आया."
जो यहां आई और रह गई, वो है उम्मीद. चुनाव से और चुनावी मौसम में एक बार दर्शन देने वाले नेताओं से.
हैरानी हुई ये जानकर कि मतदान के बारे में सबका मत एक है कि वोट तो ज़रूर डालना है. ये हक वो हताशा के आगे नहीं छोड़ना चाहते.
ये अलग बात है कि एक झोंपड़ी में दो अध्यापकों के साथ दो महीने पहले शुरू हुए इस स्कूल को कैरकोरी का रास्ता तय करने में आज़ादी के बाद भी छह दशक से ज़्यादा लग गए.
'धर्म की राजनीति'
जाते-जाते एक महिला से मैं पूछ बैठी कि कौन सी पार्टी पसंद है? वो बोलीं, "कांग्रेस, उसी को वोट दूंगी. हमारे नेता कांग्रेस से हैं और मुसलमान हैं. हम भी मुसलमान हैं. बस इसलिए."
मेरा मुंह खुला का खुला रह गया. सोचने लगा कि जिस गांव में ना पानी पहुंचा, ना बिजली, ना सड़क का रास्ता, ना शिक्षा की बयार, वहां के लोगों को धर्म की राजनीति का पाठ किसने पढ़ा दिया?
*सरहद का एक गांव जंहा पानी बिजली तो नही धर्म की राजनीति जरूर पहुंची,मूलभूत सुविधाओं के प्रति नही पर मतदान के प्रति जागरूक*
*बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक की खास रिपोर्ट*
बाडमेर पाकिस्तान की सीमा से पांच किलोमीटर पहले राजस्थान के बाड़मेर के कैरकोरी गांव में रहनेवाले शरीफ़ को जितनी प्यास लगती है, वो उससे आधा पानी ही पीते हैं.
शरीफ़ कहते हैं कि पानी बचाना ज़रूरी है क्योंकि यहां पानी की कोई व्यवस्था नहीं है, यहां कपड़े भी 20 दिन बाद धोए जाते हैं.
बारिश होती है तो गांव के कुंए में पानी भर जाता है बाकी समय घर की महिलाएं पांच किलोमीटर दूर पैदल चलकर जाती हैं और मटका भरकर पानी लाती हैं.
पानी ला दो...
हाथ जोड़कर मुझे कहते हैं, "कुछ भी करके पानी ला दो. हमें बस पानी चाहिए. इस बालू के बीच हमारा गला हमेशा सूखा रहता है और हमारे पशु मर जाते हैं."
उनके हाथ नीचे कर मैं कहता हूं कि मैं सरकार नहीं पत्रकार हूं. इस पर वो कहते हैं, "सरकार तो पांच साल में एक बार ही हमारे पास आती है और उसे चुनने का हक जताने के लिए भी हमें ही पांच किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है."
'सड़क नहीं'
बाड़मेर शहर से क़रीब 120 किलोमीटर दूर बसे कैरकोरी गांव में 30 से अधिक परिवार रहते हैं और 90 पंजीकृत वोटर हैं.
गांव के आसपास सात किलोमीटर तक कोई सड़क नहीं, सिर्फ बालू है. हमने ये रास्ता एक बड़ी गाड़ी में तय किया था. गांववाले रोज़ पैदल ही करते हैं.
गांव में बिजली के तार आए हैं लेकिन बिजली नहीं है. ठीक वैसे ही जैसे पानी की पाइप लाइन और टंकी तो है पर सालों से टूटी हुई है.
चुनावी मौसम
एक बुज़ुर्ग महिला मुझे पास बुलाकर कान में कहती हैं, "बेटा उम्र बीत गई पानी का घड़ा ढोते-ढोते लेकिन पानी यहां नहीं आया."
जो यहां आई और रह गई, वो है उम्मीद. चुनाव से और चुनावी मौसम में एक बार दर्शन देने वाले नेताओं से.
हैरानी हुई ये जानकर कि मतदान के बारे में सबका मत एक है कि वोट तो ज़रूर डालना है. ये हक वो हताशा के आगे नहीं छोड़ना चाहते.
ये अलग बात है कि एक झोंपड़ी में दो अध्यापकों के साथ दो महीने पहले शुरू हुए इस स्कूल को कैरकोरी का रास्ता तय करने में आज़ादी के बाद भी छह दशक से ज़्यादा लग गए.
'धर्म की राजनीति'
जाते-जाते एक महिला से मैं पूछ बैठी कि कौन सी पार्टी पसंद है? वो बोलीं, "कांग्रेस, उसी को वोट दूंगी. हमारे नेता कांग्रेस से हैं और मुसलमान हैं. हम भी मुसलमान हैं. बस इसलिए."
मेरा मुंह खुला का खुला रह गया. सोचने लगा कि जिस गांव में ना पानी पहुंचा, ना बिजली, ना सड़क का रास्ता, ना शिक्षा की बयार, वहां के लोगों को धर्म की राजनीति का पाठ किसने पढ़ा दिया?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें