बाड़मेर। मोक्ष तक ले जाती है भीतर की यात्रां - साध्वी सुरंजना
बाड़मेर। परमात्मा ने हमें दस दृष्टांतों से दुर्लभ ये मनुष्य जन्म दिया है और हम आलस और प्रमाद के खोटे गहने पहनकर परमात्मा के साथ दगा तो नही कर रहे है। यह उद्बोधन गुरूमां साध्वी सुरंजना महाराज ने अध्यात्मिक चातुर्मास 2018 के अन्तर्गत गुरूवार को जैन न्याति नोहरा में उपस्थिति जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा।
साध्वीवर्या ने कहा कि शास्त्रकार भगवंत कल्याणकारी, प्रशस्तकारी, आनन्दकारी, हितकारी, भयहारी अमृतमय देशना आप और हम सबको देने के लिए तत्पर है। हम परमात्मा की वाणी को सुनने के लिए इस समय को पसन्द करते है, जो समय है चातुर्मास का। निश्चित रूप से ये समय बड़ा सकून का समय है। ये समय बड़ा आह्लादकारी समय है। जीवन के ऊपर कितनी भी मुसीबतें, आफत, रोग छाया होगा लेकिन परमात्मा की वाणी सुनने के लिए व्यक्ति का मन तत्पर बन जाता है। और परमात्मा की वाणी सुनने के लिए अपने अगत्य महत्वपूर्ण कार्यों को भी छोड़कर पहुंच जाता है। परमात्मा की वाणी तलाब के समान है है। और तलाब पानी से लबालब भरा पड़ा है, शीतलता की लहरें हम तक पहुंचा रहा है और दृश्य भी इतना सुहावना लग रहा है कही व्यक्ति अपना मटका लेकर आये तो कोई व्यक्ति अपना छोटा सा बेड़िया लेकर आये, कोई व्यक्ति अपनी बाल्टी लेकर आये तो कोई व्यक्ति अपनी बोतल लेकर आया तो कोई व्यक्ति किसी को देखने के लिए किसी के साथ चल पड़ा। सभी व्यक्ति अपनी-अपनी भावना अनुसार अपना-अपना भाजन लेकर पहुंचे। सभी अपनी-अपनी जाति में कोई क्षुद्र है, कोई ब्राह्मण तो कोई वैश्य और क्षत्रिय है। सभी ने एक ही तलाब में से अपना बर्तन भरा, सबने भरने के बाद एक साथ रवाना होते है और विश्राम के लिए बीच में कहीं ये भाजन रखते है और यदि व्यक्ति ब्राह्मण हो ओर उसके भाजन को कोई क्षुद्र भूलवश हाथ लगा दे तो उसकी क्या दशा होगी। ब्राह्मण उस मटके को तोड़ देगा। दोनों ने एक ही तलाब से मटका भरा, एक ही पानी है, एक ही बने हुए मिट्टी के मटके है लेकिन रखने के बाद आंशिक भूल के कारण मटका ही तोड़ दिया जाये। पानी बदल सकते है, पानी को अदला-बदली कर सकते थे लेकिन मटका फोड़ने की बात कहा से आ गई तब व्यक्ति के अंतर्गत भाव कहेगें कि मेरा मटका भ्रष्ट हो गया। एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति धर्म क्रियाओं से जुड़ता है, आराधना में लग जाता है उसके बीच में उसको आंशिक रूप में तनाव या क्रोध या आवेश आ जाए तो क्या व्यक्ति की आराधना भ्रष्ट नही होती। क्यो वो उस आराधना को वापस शुरू से प्रारम्भ करेगा। 48 की सामायिक में 30 मिनट तक समभाव में रहा और 31वें मिनट में वो आवेश में आ गया, आपे से बाहर हो गया, लाल-पीला हो गया तो क्या वो व्यक्ति वापस सामायिक लेगा।
साध्वी श्री ने हमारे विचार परमात्मा की आज्ञा अनुसार है तो हमारा कोई कुुछ नही बिगाड़ सकता है। यह समकित की यात्रा बाहर से भीतर में प्रवेश करने के लिए है और भीतर की यात्रा करते हुए मंजिल तक पहुंचाने की यात्रा है। उन्होनें कहा कि बाहर की यात्रा हमें इधर-उधर भटकाती है, अटकाती है और झगड़ाती है तो भीतर की यात्रा हमें समकित को प्राप्त करते हुए मोक्ष तक ले जाती है। खुद के जीवन को गुलाब और चंदन बनाना है तो अपने भीतर की खामियों को दूर करो और दूसरों की खूबियों को सम्मान करो उसे आत्मसात करो। अपने मन में जमी हर बुराई की जड़ को समाप्त करो और दूसरों की खूबियों को अनुशरण करो। हमें पापों को खोना चाहिए और गुणों को खोजना चाहिए। तभी जीवन में निखार आयेगा।
भावनाधिकार के अन्तर्गत साध्वीश्री ने सागरदास का जीवन चरित्र बताते हुए कहा कि देवमाया से सागरदत के सभी जहाज समुद्र में डूब गये। लेनदार बढ़ने लगे लेकिन उसकी धर्म के प्रति श्रद्धा कम नही हुई। उसने यही सोचा जो होता है अच्छे के लिए होता है। आस दिन तक मेरी कमर में चाबियों का बोझ रहता था उस बोझ से मुझे मुक्ति मिल गई। जीवन में सबकुछ चला जाये लेकिन अपने आत्मविश्वास को मजबूत रखो। साध्वीश्री ने कहा कि जब गरज होती है तो हम गधे को भी बाप बना देते है और गरज खत्म तो बाप को भी गधा बना देते है। स्वार्थ रिश्तों को भावना शून्य बना देता है। हम कुछ पाकर फूल न जाये और कुछ खोकर भूल न जाये। यह भी भूल एक दिन शूल बन जाती है और फूल को धूल बना देती है। धूल बनाने के बाद जीवन कभी फूल नही बन सकता है।
चातुर्मास समिति के मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ व प्रकाशचंद संखेलचा ने बताया कि गुरूवर्याश्री सुरजंनाश्री महाराज से आज प्रवचन के दौरान शहर विधायक मेवाराम जैन आशीर्वाद लेने पधारे और गुरूमैंया के स्वास्थ्य की कुशलक्षेम पूछी। खरतरगच्छ संघ बाड़मेर द्वारा विधायक एवं अहिवारा छतीसगढ़ से पधारे भंवरलाल बडेर अभिनंदन किया गया। संघपूजन का लाभ गिरधारीलाल आदमल संखलेचा़ परिवार ने लिया।
बाड़मेर विधायक जैन ने किए साध्वीजी के दर्शन-वंदन
रिपोर्ट :- चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ / बाड़मेर
बाड़मेर। परमात्मा ने हमें दस दृष्टांतों से दुर्लभ ये मनुष्य जन्म दिया है और हम आलस और प्रमाद के खोटे गहने पहनकर परमात्मा के साथ दगा तो नही कर रहे है। यह उद्बोधन गुरूमां साध्वी सुरंजना महाराज ने अध्यात्मिक चातुर्मास 2018 के अन्तर्गत गुरूवार को जैन न्याति नोहरा में उपस्थिति जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा।
साध्वीवर्या ने कहा कि शास्त्रकार भगवंत कल्याणकारी, प्रशस्तकारी, आनन्दकारी, हितकारी, भयहारी अमृतमय देशना आप और हम सबको देने के लिए तत्पर है। हम परमात्मा की वाणी को सुनने के लिए इस समय को पसन्द करते है, जो समय है चातुर्मास का। निश्चित रूप से ये समय बड़ा सकून का समय है। ये समय बड़ा आह्लादकारी समय है। जीवन के ऊपर कितनी भी मुसीबतें, आफत, रोग छाया होगा लेकिन परमात्मा की वाणी सुनने के लिए व्यक्ति का मन तत्पर बन जाता है। और परमात्मा की वाणी सुनने के लिए अपने अगत्य महत्वपूर्ण कार्यों को भी छोड़कर पहुंच जाता है। परमात्मा की वाणी तलाब के समान है है। और तलाब पानी से लबालब भरा पड़ा है, शीतलता की लहरें हम तक पहुंचा रहा है और दृश्य भी इतना सुहावना लग रहा है कही व्यक्ति अपना मटका लेकर आये तो कोई व्यक्ति अपना छोटा सा बेड़िया लेकर आये, कोई व्यक्ति अपनी बाल्टी लेकर आये तो कोई व्यक्ति अपनी बोतल लेकर आया तो कोई व्यक्ति किसी को देखने के लिए किसी के साथ चल पड़ा। सभी व्यक्ति अपनी-अपनी भावना अनुसार अपना-अपना भाजन लेकर पहुंचे। सभी अपनी-अपनी जाति में कोई क्षुद्र है, कोई ब्राह्मण तो कोई वैश्य और क्षत्रिय है। सभी ने एक ही तलाब में से अपना बर्तन भरा, सबने भरने के बाद एक साथ रवाना होते है और विश्राम के लिए बीच में कहीं ये भाजन रखते है और यदि व्यक्ति ब्राह्मण हो ओर उसके भाजन को कोई क्षुद्र भूलवश हाथ लगा दे तो उसकी क्या दशा होगी। ब्राह्मण उस मटके को तोड़ देगा। दोनों ने एक ही तलाब से मटका भरा, एक ही पानी है, एक ही बने हुए मिट्टी के मटके है लेकिन रखने के बाद आंशिक भूल के कारण मटका ही तोड़ दिया जाये। पानी बदल सकते है, पानी को अदला-बदली कर सकते थे लेकिन मटका फोड़ने की बात कहा से आ गई तब व्यक्ति के अंतर्गत भाव कहेगें कि मेरा मटका भ्रष्ट हो गया। एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति धर्म क्रियाओं से जुड़ता है, आराधना में लग जाता है उसके बीच में उसको आंशिक रूप में तनाव या क्रोध या आवेश आ जाए तो क्या व्यक्ति की आराधना भ्रष्ट नही होती। क्यो वो उस आराधना को वापस शुरू से प्रारम्भ करेगा। 48 की सामायिक में 30 मिनट तक समभाव में रहा और 31वें मिनट में वो आवेश में आ गया, आपे से बाहर हो गया, लाल-पीला हो गया तो क्या वो व्यक्ति वापस सामायिक लेगा।
साध्वी श्री ने हमारे विचार परमात्मा की आज्ञा अनुसार है तो हमारा कोई कुुछ नही बिगाड़ सकता है। यह समकित की यात्रा बाहर से भीतर में प्रवेश करने के लिए है और भीतर की यात्रा करते हुए मंजिल तक पहुंचाने की यात्रा है। उन्होनें कहा कि बाहर की यात्रा हमें इधर-उधर भटकाती है, अटकाती है और झगड़ाती है तो भीतर की यात्रा हमें समकित को प्राप्त करते हुए मोक्ष तक ले जाती है। खुद के जीवन को गुलाब और चंदन बनाना है तो अपने भीतर की खामियों को दूर करो और दूसरों की खूबियों को सम्मान करो उसे आत्मसात करो। अपने मन में जमी हर बुराई की जड़ को समाप्त करो और दूसरों की खूबियों को अनुशरण करो। हमें पापों को खोना चाहिए और गुणों को खोजना चाहिए। तभी जीवन में निखार आयेगा।
भावनाधिकार के अन्तर्गत साध्वीश्री ने सागरदास का जीवन चरित्र बताते हुए कहा कि देवमाया से सागरदत के सभी जहाज समुद्र में डूब गये। लेनदार बढ़ने लगे लेकिन उसकी धर्म के प्रति श्रद्धा कम नही हुई। उसने यही सोचा जो होता है अच्छे के लिए होता है। आस दिन तक मेरी कमर में चाबियों का बोझ रहता था उस बोझ से मुझे मुक्ति मिल गई। जीवन में सबकुछ चला जाये लेकिन अपने आत्मविश्वास को मजबूत रखो। साध्वीश्री ने कहा कि जब गरज होती है तो हम गधे को भी बाप बना देते है और गरज खत्म तो बाप को भी गधा बना देते है। स्वार्थ रिश्तों को भावना शून्य बना देता है। हम कुछ पाकर फूल न जाये और कुछ खोकर भूल न जाये। यह भी भूल एक दिन शूल बन जाती है और फूल को धूल बना देती है। धूल बनाने के बाद जीवन कभी फूल नही बन सकता है।
चातुर्मास समिति के मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ व प्रकाशचंद संखेलचा ने बताया कि गुरूवर्याश्री सुरजंनाश्री महाराज से आज प्रवचन के दौरान शहर विधायक मेवाराम जैन आशीर्वाद लेने पधारे और गुरूमैंया के स्वास्थ्य की कुशलक्षेम पूछी। खरतरगच्छ संघ बाड़मेर द्वारा विधायक एवं अहिवारा छतीसगढ़ से पधारे भंवरलाल बडेर अभिनंदन किया गया। संघपूजन का लाभ गिरधारीलाल आदमल संखलेचा़ परिवार ने लिया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें