शुक्रवार, 22 जून 2018

*आखिर क्या हो रहा है बाड़मेर में।।।क्या ये वही बाड़मेर है?*

*आखिर क्या हो रहा है बाड़मेर में।।।क्या ये वही बाड़मेर है?*




*बाड़मेर भारत पाक सीमा पर  बसा साम्प्रदायिक सद्भाव और अमनप्रिय बाड़मेर जिले में अशांति और आपराधिक प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही।भाई चारा, और मानवता खत्म सी हो गई।।पिछले दो महीनों के घटनाक्रम देखे तो लगता ही नही हम उसी अमनप्रिय बाड़मेर में है।।मानवता को शर्मशार करने वाली घटनाए तेजी से बढ़ रही।।कल और आज की घटनाओं ने तो विचलित कर दिया।।एक सात साल की मासूम के साथ फुशकर्म करने वाले का कलेजा नही कंपा।।उसको कही कानून का ख़ौफ़ तनिक भी नही रहा होगा।।कानून और कानून के रखवालो को कोसने की बजाय अपनी अंतरात्मा में झांको।।एक मासूम पर कैसे किसी की नीयत बुरी हो सकती है।क्या उसको उसमे अपनी बहन बेटी का चेहरा नही दिखा।।ऐसे लोगो से तो घर की बेटियां भी कैसे सुरक्षित रही होगी।।अपराधी की कोई जाति धर्म नही होता।।अगर ऐसा है तो अपराधी के जाति के लोगो को कड़ा निर्णय लेना होगा।।उसके खिलाफ।।ऐसे लोगो को न समाज मे रहने का अधिकार है न जीने का।।कानून और कानून के रखवालो की बात करना  बेमानी होगी।।कानून अपराधियो  और अपराध की प्रवृति को नही  भांप सकते।।अपराध होने के बाद इनका काम शुरू होता हैं। मगर हमने अपनी संस्कृति और परंपराओं का त्याग कर बहुत बड़े अपराध को पनपने की छूट दे दी।।आज हमने अपना भाईचारा ही नही खोया अपणायत भी खो दी।।आज जो अपराध हो रहे उसका कारण भी हम खुद हैं। हमने अपने बच्चों को संस्कार ही नही दिए। पास पड़ौसियों का महत्व ही नही बताया।।हमने अपने बच्चों को समाज की मुख्यधारा से नही जोड़ा।।रिश्तों में दूरियां बढ़ा दी।।जिसके चलते आपराधिक प्रवृतियां बढ़ रही है। कल की घटना ही लो।।एक बेटी का दो किलोमीटर तक कुसंस्कारी मनचले पीछा कर रहे थे ।वो भी ऐसे इलाके से जंहा दिन भर चहल पहल रहती है।।बीच मे पुलिस चौकी भी आती है।।शायद ये इन युवकों को उनके परिवार से मिले कुसंस्कार ही थे।आखिर इतनी भीड़ भाड़ वाले इलाके में ऐसा दुस्साहस करने की हिम्मत कैसे हो जाती है।।मतलब साफ है उन्हें कोई कानून का ख़ौफ़ नही था।उन्हें अपने अभिभावकों की पहुंच का घमंड था।।सबसे बड़ी बात लानत उस व्यक्ति को जिसने इन युवकों को बचाने और समझौता करने के लिए पैरवी की। ऐसे लोग कानून के रखवालो के आसपास मंडराते है। यही घटनाक्रम पैरवी करने वाले कि बहन बेटी के साथ होता तो क्या इसी तरह पैरवी करता।।डूब के मर जाना चाहिए। सारे राह जब आरोपियों को दबोच लिया।।फिर सिफारिस करने की हिम्मत।।राजकीय कार्य मे बाधा का मुकदमा ठोक देते।।यही नही आत्महत्याओं का नया प्रचलन जो सामने आया वो और भी खतरनाक हैं।इन घटनाओं में हमारे सामाजिक ताने बाने को तार तार कर दिया। प्यार मोहब्बत ।।साथ मे आत्महत्या। क्या मायने इसके। ये परवरिस में कमी के नतीजे है।।घर मे बच्चो को संस्कार और अपनापन नही देंगे हालात इससे बदतर होंगे।।क्या परिवार के सदस्यों का कोई दायित्व नही की वो अपने बच्चों की गतिविधियों पे निगरानी रखे।।हम यहां कानून और कानून वालो को भी दो चार बाते सुना सकते थे मगर अपराध कारित करने में उनका क्या दोष। उन्हें कोसने की बजाय हम अपने अंदर झांक कर देखे। हम अपने बच्चों को क्या दे रहे। बच्चे घर मे जो देखते है वो ही सीखते है उसी को अंजाम देते है। आज की घटना ने तो हिला के रख दिया।। क्या बाड़मेर ऐसे ही नए नए अपराधों के साये में रहेगा। कानून और उनके रखवालो का ख़ौफ़ भी जरूरी है।उन्हें भी आत्मचिंतन करना होगा।।बाड़मेर कोई मेट्रो सिटी नही है।।बाहर के लीग भी नही जो अपराध को बढ़ावा दे रहे हो। ये सामाजिक अपराध है जो संस्कारो की कमी के कारण हो रहे।।*

*।।बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक*।।

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