बाड़मेर। सिंधी बोली, मीठी बोली, संस्कारी बोली- संत शांतिलाल
बाड़मेर। शहर के सिंधी धर्मशाला में भारतीय सिंधु सभा के बैनर तले बाल शिक्षा संस्कार शिविर का समापन बुधवार को निरंकारी सत्संग के दौरान हुआ। सत्संग का आयोजन संत निरंकारी सत्संग भवन के संयोजक महात्मा शांतिलाल के सानिध्य में हुआ। सत्संग का शुभारम्भ सिंधी समाज के अध्यक्ष मिरचुमल कृपलानी, सिंधी धर्मशाला अध्यक्ष टिकमदास, सिंधी पंचायत अध्यक्ष प्रताप लालवानी, भारतीय सिंधु सभा के प्रमुख पदाधिकारी भगवान ठारवानी व भगवान आसवानी सहित संस्था के प्रमुख कार्यकर्ताओ ने निरंकारी मिशन का स्वागत व माल्यार्पण कर किया।
मिरचुमल ने संत निरंकारी मिशन एव सिंधी भाषा की भूरी-भूरी प्रशन्सा करते हुए कहा कि, बच्चों में मातृभाषा के प्रति प्यार एव उत्साह की वृद्धि करवाना माँ-बाप की जिम्मेदारी है तभी हमारे बच्चे सुसंस्कारीत जीवन जी पाएंगे। प्रेम, नम्रता, सादगी, मीठी भाषा, सद्व्यवहार बच्चों में आने से उनके आगे जीवन में परिवार व देश का नाम रोशन कर पाते है। शिक्षा के साथ संस्कार होना अतिआवश्यक है। सत्संग में सिंधी समाज के पदाधिकारियों ने व कई भक्तों ने सिंधी भाषा में निरंकारी भजन प्रस्तुत किए। सत्संग के अंतिम दौर में संत शांतिलाल अपने प्रवचनो में कहा कि, निरंकारी मिशन सभी भाषाओं धर्मो का समान रूप से सम्मान करता है। जीवन में अनेक रूप से हमें गुरु मिलते है। शिक्षा गुरु, हुनर गुरु, पारिवारिक गुरु, कलयुग गुरु सभी का जीवन में महत्व है। इसी तरह अध्यात्म हेतु सतगुरु भी अनिवार्य है, जो हमे ईश्वर का ज्ञान करवाता है। इस दौरान भारतीय सिंधु सभा के कार्यकारिणी के पदाधिकारी, निरंकारी सेवादल तथा सैकड़ो निरंकारी सदस्यों ने सत्संग में शिरकत की।
बाड़मेर। शहर के सिंधी धर्मशाला में भारतीय सिंधु सभा के बैनर तले बाल शिक्षा संस्कार शिविर का समापन बुधवार को निरंकारी सत्संग के दौरान हुआ। सत्संग का आयोजन संत निरंकारी सत्संग भवन के संयोजक महात्मा शांतिलाल के सानिध्य में हुआ। सत्संग का शुभारम्भ सिंधी समाज के अध्यक्ष मिरचुमल कृपलानी, सिंधी धर्मशाला अध्यक्ष टिकमदास, सिंधी पंचायत अध्यक्ष प्रताप लालवानी, भारतीय सिंधु सभा के प्रमुख पदाधिकारी भगवान ठारवानी व भगवान आसवानी सहित संस्था के प्रमुख कार्यकर्ताओ ने निरंकारी मिशन का स्वागत व माल्यार्पण कर किया।
मिरचुमल ने संत निरंकारी मिशन एव सिंधी भाषा की भूरी-भूरी प्रशन्सा करते हुए कहा कि, बच्चों में मातृभाषा के प्रति प्यार एव उत्साह की वृद्धि करवाना माँ-बाप की जिम्मेदारी है तभी हमारे बच्चे सुसंस्कारीत जीवन जी पाएंगे। प्रेम, नम्रता, सादगी, मीठी भाषा, सद्व्यवहार बच्चों में आने से उनके आगे जीवन में परिवार व देश का नाम रोशन कर पाते है। शिक्षा के साथ संस्कार होना अतिआवश्यक है। सत्संग में सिंधी समाज के पदाधिकारियों ने व कई भक्तों ने सिंधी भाषा में निरंकारी भजन प्रस्तुत किए। सत्संग के अंतिम दौर में संत शांतिलाल अपने प्रवचनो में कहा कि, निरंकारी मिशन सभी भाषाओं धर्मो का समान रूप से सम्मान करता है। जीवन में अनेक रूप से हमें गुरु मिलते है। शिक्षा गुरु, हुनर गुरु, पारिवारिक गुरु, कलयुग गुरु सभी का जीवन में महत्व है। इसी तरह अध्यात्म हेतु सतगुरु भी अनिवार्य है, जो हमे ईश्वर का ज्ञान करवाता है। इस दौरान भारतीय सिंधु सभा के कार्यकारिणी के पदाधिकारी, निरंकारी सेवादल तथा सैकड़ो निरंकारी सदस्यों ने सत्संग में शिरकत की।
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