बुधवार, 26 अक्टूबर 2016

5 रानियां और 41 रखैलें, इस राजा ने नौकरानियों के साथ भी बनाए संबंध

5 रानियां और 41 रखैलें, इस राजा ने नौकरानियों के साथ भी बनाए संबंध


जनानी ड्योढ़ी में रानियां, पड़दायतें (रखैलें) और पासवाने-पातरें (नाचने गाने वाली) रहती थी। जनानी ड्योढ़ी जयपुर की स्थापना से चली आ रही थी और प्रत्येक शासक अपने हिसाब से विवाह करते और रानियों को रखते। पड़दायतें रानियों की कैटेगरी में नहीं आती थी, उनका वैदिक ढंग से विवाह भी नहीं होता था, लेकिन कुछ दस्तूर ऐसे निभाए जाते थे जिसमें उन्हें ‘पड़दायत’ का पद मिलता और जनानी ड्योढ़ी में थोड़ा सा सम्मान भी। इन पड़दायतों, पासवानों और पातरों का खर्च खुद महाराज उठाते थे। नौकरानियों को भी महाराज ने दिया ऊंचा दर्जा...
5 रानियां और 41 रखैलें, इस राजा ने नौकरानियों के साथ भी बनाए संबंध
- माधोसिंह ने अपने शासनकाल में जनानी ड्योढ़ी को बड़ा आबाद किया। उनकी पांच रानियों के अलावा 41 पड़दायतें या दूसरे शब्दों में रखैलें थी। इसके अलावा पातरों और बाइयों की भी टोली थी।

- जयपुर में पड़दायतें होती थी तो उदयपुर में सहेलियां रखने की प्रथा महाराणा संग्रामसिंह ने शुरू की और सुन्दर बाग सहेलियों की बाड़ी इन्हीं सहेलियों के नाम से है।

- महाराणा संग्रामसिंह पूरे ऐय्याश थे और कहते हैं कि उस जमाने में उनके यहां विदेशी सहेलियां रह कर गई थी।

- माधोसिंह के शारीरिक बनावट और डील-डौल के कई किस्से प्रचलित हैं। कहते हैं कि अपनी किशोरावस्था में राजतिलक के पूर्व किसी ऐसी दवा का उन्होंने सेवन कर लिया था जिससे उनकी सेक्स की इच्छा बढ़ी ही रहती थी।

- उनके पुंसत्व और रतिप्रियता के कारण ही कहते हैं जनानी ड्योढ़ी की रौनक बढ़ी और कई नौकरानी-बाइयां जो सेवा चाकरी के लिए लगाई गई पड़दायतों का दर्जा पाने में कामयाब हुई।

लड़का होने पर दी जाती थी जागीर

- यहां यह जान लेना जरूरी है कि पड़दायत वह होती थी जो रानियों के बाद की कैटेगरी में आती थी।

- यदि पड़दायतों से कोई लड़का होता तो उसे ‘लालजी’ कहकर बुलाया जाता और पांच हजार कम से कम की जागीर मिलती।

- रानियां जहां अपने पीहर के अनुसार राठौड़जी, सिसोदियाजी, जादौणजी या झालीजी कहलाती वहीं पड़दायतों के साथ ‘रायजी’ लगता।

- पोथी खाने में गोपाल नारायण बहुरा ने ऐसी पड़दायतों की सूची निकाली है जिसमें उनके नाम रूपरायजी, बसन्तीरायजी, तिछमीरायजी, विशाखरायजी, भरतरायजी, हीरारायजी आदि लिखा है जिन्हें बराबर खर्च राज से मिलता था।

- सर गोपीनाथ पुरोहित की डायरियों में इन पड़दायतों की भूमिओं के बारे में विस्तार से उन्होंने लिखा है।

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