बुधवार, 22 जून 2016

दो साल से हमारे राज्य पक्षी गोडावण के संरक्षण का एक्शन प्लान रोककर बैठा केंद्र

दो साल से हमारे राज्य पक्षी गोडावण के संरक्षण का एक्शन प्लान रोककर बैठा केंद्र


— गोडावण को लेकर प्रोजेक्ट—प्रोजेक्ट खेल रहे अफसर
— दो साल से मंजूरी के इंतजार में 59.86 करोड़ का प्रोजेक्ट
— प्रदेश मेंं 100 के आसपास ही बचे हैं गोडावण
— तत्कल गोडावण को बचाने का काम नहीं किया तो लुप्त हो जाएगा राज्य पक्षी
— खुद केंद्र ने एक्शन प्लान मांगा था, इसके बावजूद अब तक नहीं दी मंजूरी
— जून 2012 में केंद्र ने ही मांगा था एक्शन प्लान
— राज्य सरकार ने जून 2014 में ही केंद्र को भेज दिया था राज्य का एक्शन प्लान
— राज्य वन्य जीव बोर्ड ने तत्काल गोडावण संरक्षण पर काम शुरू करने को कहा



जयपुर। हमारे प्रदेश के राज्य पक्षी गोडावण के संरक्षण का काम केंद्र और राज्य सरकार की अफसरशाही के बीच अटककर रह गया है। केंद्र सरकार दो साल से गोडावण संरक्षण के एक्शन प्लान को रोककर बैठा है। साल 2012 में खुद केंद्र ने संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए राज्य से एक्शन प्लान मांगा था, तब राज्य सरकार ने जून 2014 में 59.86 करोड़ का स्टेट एक्शन प्लान बनाकर केंद्र को मंजूरी के लिए भेजा था। राज्य सरकार के कई बार आग्रह के बावजूद केंद्र ने अब तक गोडावण संरक्षण के एक्शन प्लान को मंजूरी नहीं दी है।



प्रदेश का राज्य पक्षी गोडावण भारी संकट में है। पश्चिमी राजस्थान में पााया जाने वाला गोडावण अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। हालात ये है कि गोडावण की संख्या महज 100 के आसपास ही बची है और अफसर प्रोजेक्ट—प्रोजेक्ट ही खेल रहे हैं। राज्य वन्य जीव बोर्ड ने राज्य सरकार के अफसरों से गोडावण संरक्षण पर तत्काल काम शुरू करने को कह चुका है।


गोडावण संरक्षा के लिए राज्य के एक्शन प्लान को ही दो साल से केंद्र ही रोककर बैठा है, तो फिर सरंक्षण कैसे हो। जब राज्य पक्षी गोडावण के मामले में यह हाल है तो बाकी संकटग्रस्त प्रजातियों के सरंक्षण के काम की क्या हालत होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।


इस पूरे मामले मेेंं केंद्र के अफसरों की भूमिका सवालों के घेरे मेेें है। दो साल से एक संकटग्रस्त पक्षी को बचाने के एक्शन प्लान की मंजूरी नहीं मिलना यह दिखाने के लिए काफी है कि केंद्र के मंत्रालयों में बैठे बड़े अफसरों को ग्राउंड रियलिटी से कोई मतलब नहीं है। कायदे से गोडावण को बचाने पर काम बहुत पहले शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन प्रशासनिक ढीलाई के चलते यह पक्षी डोडों की तरह लुप्त होने की कगार पर पहुंच गया है।

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