गुरुवार, 26 मई 2016

आबूरोड खुलेआम घूमते ये गुमनाम, नशीब के मारे है या जासूस ?



आबूरोड खुलेआम घूमते ये गुमनाम, नशीब के मारे है या जासूस ?

खुलेआम घूमते ये गुमनाम, नशीब के मारे है या जासूस ?
दिनभर यहां का कचरा वहां डालना। लोगों को देखकर मुस्कुरा देना। नाश्ता करने वालों को बार-बार देखते रहना। ये बोल नहीं सकते और न ही किसी की बात को समझ सकते हैं, लेकिन दिनभर आम लोगों की तरह घूमते रहने वाले ऐसे विमंदित अपने परिजनों व अपने ठिकाने को ढूढंते नजर आते है। शहर में कई स्थानों पर ऐसे विमंदित नजर आते रहते है, जिनका न तो कोई सहारा होता है और न ही कोई ठिकाना। दिनभर सड़कों पर यहां से वहां घूमते नजर आते है।शहर का कोई भी व्यक्ति इन्हें पहचानता भी नहीं है। ये कहां से आए हैं और कौन है?

इनकी यह हालात किस कारण बनी। इनको यहां कौन छोड़ गया। इसका किसी को कोई पता नहीं है। किसी का ध्यान भी इनकी तरफ नहीं जाता। कई स्थानों पर तो लोग इनको छेड़ते नजर आते हैं। ऐसे में कई बार ये या तो गुस्से हो जाते है या फिर मानसिक असंतुलन के कारण छेडऩे वाले को नुकसान भी पहुंचा देते हैं। इतना कुछ होने के बावजूद प्रशासन इनके प्रति पूरी तरह से बेरुख है। प्रशासन की ओर से शहर में कई स्थानों पर डेरा डाले इन विमंदितों की न तो घर के बारे में जानकारी जुटाई जाती है और न ही इनके पुनर्वास के कोई प्रयास किए जाते हैं। इन विमंदितों में पुरुष तथा महिलाएं शामिल हैं। कई जने तो चलते-चलते खुद से ही बातें करते नजर आते है तो कई जोर-जोर से हंसते ही रहते है। हो सकता है कि किसी बड़ी खुशी में ये अपना आपा खो बैठे हो। इन विमंदितों को इस कदर इस शहर का रूख क्यों करना पड़ा, यह भी एक यक्ष प्रश्न है। इनकी बेबसी के सामने ऐसा लगता है जैसे इन्हें किसी अपने की तलाश है या फिर अपनों से ही कोई नुकसान झेलने के बाद यहां आए हों। मनुष्य जीवन में ऐसी दुर्दशा पर एक सवाल उठता है कि इन विमंदितों की चिंता कौन करें। इनको जरूरत है तो प्रशासन या शहर की समाज सेवा से जुड़ी संस्थाओं की ओर से मदद की।

जहां चाहा वहां डाल देते है डेरा

विमंदितों के लिए कोई स्थाई जगह तो नहीं है, पर अक्सर सड़कों के पास या बड़े पेड़ों के पास ही रहते है। रात को किसी सुनसान जगह पर सो जाते हैं। ऐसे में रात को दुर्घटना का अंदेशा भी बना रहता है। जहां रहते है वहां के लोग कभी-कभार खाना भी दे देते है, लेकिन कभी नहीं मिलने पर भूखे ही सो जाते हैं। कई तो बस स्टैण्ड तथा रेलवे स्टेशन पर तो खाद्य-पदार्थों का अपशिष्ट भी खाने से परहेज नहीं करते।

किसी को नुकसान नहीं

शहर में विमंदितों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इनको कौन छोड़कर जाता है, कहां से आते है, कहां रहते है। इस पर पुलिस का भी ध्यान नहीं जाता। शहर में विभिन्न स्थानों से विमंदित आते रहते है, पर पुलिस निगरानी नहीं रख पाती है। हालांकि इन विमंदितों ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है, पर इनकी रक्षा करने वाले जिम्मेदार भी मौन ही रहते है।

कई जगहों पर लगा रहता है डेरा

शहर में विमंदितों को कईजगहों पर देखा जा सकता है। चेक पोस्ट, बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन के बाहर, लुनियापुरा पुल व साईंबाबा मंदिर के आस-पास तथा आमथला-तलहटी मार्ग पर भी विमंदितों को विचरण करते देखा जा सकता है। प्रशासन या समाज सेवी संस्थाओं की ओर से इनके खाने-पीने की व्यवस्था हो जाए तो इनका भटकना बंद हो सकता है।

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