जोधपुर इस अनूठे तरीके से निखर रहा सनसिटी का हैरिटेज लुक
जिला प्रशासन ने शहर को अनूठे तरीके से सजाने का तरीका निकाला है। सनसिटी के एयरपोर्ट और स्टेशन को तो लोक रंगों से सांस्कृतिक रूप से सजाया है। इस शहर की लोक संस्कृति और धरोहर को देसी - विदेशी सैलानियों में लोकप्रिय करने और उन्हें लुभाने के लिए शृंगार का एक अनूठा तरीका अपनाया गया है।
एक ओर शहर की नई सड़क बाजार के ठेलों को कलात्मक पर्दों से कवर किया गया है। वहीं कुछ ऑटो को राजस्थानी संस्कृति में रंगा गया है। ये दोनों ही शृंगार लोगों को लुभा रहे हैं और पर्यटकों में भी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। डेकोरेटेड हैरिटेज टूरिज्म का यह एक एेसा तरीका है जो टूरिस्ट्स को बहुत पसंद आ रहा है।
यही कारण है कि वे ये नजारे अपने कैमरे में कैद कर रहे हैं। राजस्थान पत्रिका संवाददाता के बातचीत करने पर पता चला कि जोधपुर के पूर्व जिला कलक्टर डॉ. प्रीतम बी यशवंत की हिदायत पर एेसा किया गया है। ठेलों पर कवर का खर्च व्यापारियांें ने खुद वहन किया तो तीन ऑटो तत्कालीन जिला कलक्टर ने खुद रंगवाए।
1. दरबारी अंदाज में सजी बाल वाहिनी
शहर की नई सड़क पर खड़ी दरबारी अंदाज में रंगी एक बाल वाहिनी सहसा ही लोगों का ध्यान खींचती है। इस पर एक ओर मेहरानगढ़ दुर्ग है तो दूसरी ओर राजस्थानी साफा पहने दाढ़ी वाला पुरुष और राजस्थानी वेशभूषा के साथ शृंगारित महिला बनी हुई है। बाल वाहिनी 8169 के पीरू खान ने बताया कि इसे रंगवाने में तीन दिन लगे और और चार हजार रुपए का खर्च कलक्टर ने ही उठाया।
2. ट्रेडिशनल सिटी टूरिज्म ऑटो
शहर की सड़कों पर दौड़ते इस ऑटो पर 'पधारो म्हारे देसÓ लिखा हुआ है और यह भी राजस्थानी संस्कृति के हैरिटेज लुक में रंगी हुई है। इस ऑटो पर पुरुष व महिला कठपुतली बनी हुई है। आरजे 19 पी 8140 के हाजी मोहम्मद ने बताया कि पूर्व कलक्टर ने अतिक्रमण हटाओ अभियान के समय ये ऑटो हैरिटेज लुक में रंगवाई थीं। अब अच्छी सवारियां आती हैं। पर्यटक इसका फोटो खींच कर खुश होते हैं।
3-4 .कलात्मक पर्दे से ढके ठेले
शहर के नई सड़क बाजार में स्टेट बैंक एटीएम के सामने कलात्मक पर्दे से ढके कुछ ठेले बहुत ही आकर्षक नजर आए। चकला बेलन बर्तन बेच रहे कलात्मक ठेला लगा कर बैठे चंद्रप्रकाश प्रजापत व राजूदेवी ने बताया कि ये ठेले भी व्यापारियों ने पूर्व जिला कलक्टर यशवंत के कहने पर राजस्थानी पर्दे बनवाए थे।
रेडिमेड सूट बेच रहे पवन अजमेरी ने बताया कि हर ठेले वाले ने तीन हजार रुपए खर्च कर ठेले के ऊपर लगाने के लिए राजस्थानी पर्दे बनवाए।
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