मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

पूरी जिंदगी भीख मांग कर गुजारा किया है, और जो बचा उसे कबूतरों के चबूतरे के लिए दान दे दिया

पूरी जिंदगी भीख मांग कर गुजारा किया है, और जो बचा उसे कबूतरों के चबूतरे के लिए दान दे दियाभिखारी बना दानी! जिंदगीभर भीख मांगी, जमा पूंजी को लगाया कबूतरों के चबूतरे में
पूरी जिंदगी भीख मांग कर गुजारा किया है, और जो बचा उसे कबूतरों के चबूतरे के लिए दान दे दिया है। ये कहानी गुजरात के कच्छ के पोपट की। पोपट ने जिंदगी के 40 साल तक कच्छ में शूरवीर राजपूत राजाओं को समर्पित छतरियों के नीचे भीख मांगते हुए वक्त गुजारा।

उसका मानसिक संतुलन भी सही नहीं है। लेकिन भुज में पोपट का नाम अमर हो जाएगा, क्योंकि उसने जो दान दिया है, उससे कबूतरों के लिए टावर बनाया जा रहा है। कंक्रीट के बनने वाले इस टावर में पोपट का नाम दानकर्ता के तौर पर लिखा होगा। भुज के प्रसिद्ध शिव मंदिर के पुजारी खुद इस 'चबूतरों' के निर्माण की निगरानी करेंगे।1.15 लाख रुपए की लागत से बन रहे इस टावर को बनाने के लिए पोपट पिछले 40 वर्ष से भीख मांगकर जमा की गई राशि रोजाना मंदिर को देते आ रहे थे। मानसिक संतुलन सही नहीं होने के कारण पोपट खुद सिक्कों और नोटों की पहचान नहीं कर पाते।

वे बिहारीलाल महादेव मंदिर के पुजारी मौनी बाबा को हर रोज नियम से पैसे देते थे। उन्होंने पोपट के नाम का अलग खाता बना दिया था। अब इस खाते में जमा राशि 1.15 लाख रुपए हो गई है। वे कहते हैं कि हमने पोपट का नाम अमर करने का फैसला किया।

इसके लिए चबूतरे के दानकर्ता के तौर पर पोपट का नाम उसमें लिखवा होगा। हाल ही में कुछ लोगों ने मदद के तौर पर पोपट की आंख का ऑपरेशन करा दिया। वे अपना अधिकतर वक्त शाही छतरी के पास धोबी तालान में बिताते हैं।गुजरात के ग्रामीण इलाकों में चबूतरों की भरमार है, क्योंकि यहां सामाजिक व धार्मिक तौर पर इसका बहुत महत्व है। ये चबूतरे कंक्रीट के बने टावर होते हैं, इनमें खोह बनी होती हैं, जहां चिडिय़ा अपना घोंसला बना सकती है। इनमें चिडिय़ा के लिए दाना रखने की भी अलग जगह बनी होती है।

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