शनिवार, 23 जनवरी 2016

चरण पादुका योजना स्कूली विद्यार्थियों के जूतों के लिए बच्चों ने दिए पॉकेट मनी

स्कूली विद्यार्थियों के जूतों के लिए बच्चों ने दिए पॉकेट मनी

 

बच्चों के मन की बात 
सरकारी विद्यालयों के बच्चों को जूते पहनाने के लिए कलेक्टर ने शुरू की थी चरण पादुका योजना 
  जालोर 
सरकारीस्कूल में नंगे पांव आने वाले स्कूली बच्चों को जूते उपलब्ध करवाने को लेकर जालोर कलेक्टर जितेंद्र कुमार साेनी की ओर से की गई अनूठी पहल चरण पादुका योजना को देश विदेश से अच्छा रिस्पांस मिलने लगा हैं। शुक्रवार को शहर की जालोर पब्लिक स्कूल के बच्चों ने अपनी पॉकेट मनी देकर मिसाल पेश की। स्कूल के करीब 750 बच्चों ने अपनी-अपनी पॉकेट मनी प्रिंसीपल को सौंपी। कक्षा 9वीं तथा 11वीं के छात्रों का कहना था कि उनके मित्र भी जूते पहनकर स्कूल आएंगे तो उन्हें बहुत खुशी होगी। इस पर प्रिंसीपल जेएस राठौड़ ने उनकी पीठ थपथपाई। गौरतलब है कि पिछले दिनों कलेक्टर के डूडसी गांव स्थित एक स्कूल के निरीक्षण के दौरान कड़ाके की ठंड में छोटे-छोटे बच्चों को नंगे पाव स्कूल जाते देखा था। उन्हें मालूम चला कि वे गरीब है और जूते नहीं खरीद सकते। इस पर कलेक्टर ने सभी सरकारी स्कूलों के बच्चों को जूते पहनाने के लिए चरण पादुका योजना की शुरुआत की। 

देश-विदेशसे सहयोग: योजनामें पहली शुरुआत खुद कलेक्टर ने दो हजार रुपए का सहयोग करके की। प्रशासनिक अधिकारियों कर्मचारियों के साथ नागरिकों ने भी इसमें सहयोग राशि दी। रिस्पांस को देखते हुए कलेक्टर ने इस नाम से बैंक खाता भी खुलवा दिया। इस खाते में आईजी हेड क्वार्टर प्रशाखा माथुर के साथ देश-विदेश से लोग पैसे जमा करवा रहे है। 

 
26जनवरी तक 25 हजार बच्चों को पहनाएंगे जूते: शिक्षाविभाग के अधिकारियों से सरकारी स्कूलों के उन बच्चों की संख्या पता लगाने को कहा जो बिना जूते पहने स्कूल आते हैं। अधिकारियों ने यह संख्या 25 हजार बताई। कलेक्टर ने 26 जनवरी तक इन सभी बच्चों को जूते पहनाने का संकल्प लिया है। 

^सरकारी स्कूल में नंगे पांव आने वाले बच्चों की बात मुझे मेरे पड़ौस में रहने वाले सुरेश ने बताई थी। बिना जूते पहने स्कूल आने वाले बच्चों की पीड़ा सुन मैं दुखी हुआ। मन में ठाना, सर से कहूंगी कि हमारे सहयोग से सभी बच्चों को जूते दिलावें। -मनीषा राठी, कक्षा 11 
^इतनीतेज सर्दी में हमें जूते मोजे पहनने के बाद भी सर्दी लगती हैं, तो बिना जूते स्कूल आने वाले भैया कैसे सहन करते होंगे। इसलिए मैने अपने भैया को अपनी पॉकेटमनी से जूते दिलवाने के लिए सर को पैसे दिए। -कोमल सोलंकी, कक्षा 11 
^सरअभी तो मेरे पास थोड़े पैसे हैं। मैं भगवान से कहूंगी कि मुझे खूब पैसे दे जिससे मैं अपने उन दोस्तों को जूते दिलवा सकूं। -सुरभि सोलंकी, कक्षा 10 

^इतनीतेज सर्दी में बिना जूते स्कूल आने वाले भैया को जूते दिलवाने के लिए मैने अपने पापा से ज्यादा पैसे मांगे और सर को दिए हैं। -सोनूनिंबावत कक्षा 9 



                                                                                                                                                                                                                                                             

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