11 वर्ष बाद घूसखोर श्रम निरीक्षक को 2 वर्ष की कैद
उदयपुर. लाइसेंस बनाने की एवज में 5 हजार रुपए रिश्वत लेते धरे गए श्रम निरीक्षक को न्यायालय ने 2 वर्ष के कठोर कारावास व 15 हजार हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। संयुक्त श्रम आयुक्त (संभागीय) श्रम विभाग के निरीक्षक जोधपुर के बिलाड़ा स्थित नवासी गांव के भंवरलाल पुत्र चौथराम पटेल को ब्यूरो ने 20 अगस्त 2004 को विनोद पामेचा से 5 हजार रुपए रिश्वत लेते पकड़ा था। अभियोजन पक्ष की ओर से लोक अभियोजक ओमप्रकाश मेहता ने 24 गवाह व 51 दस्तावेज पेश किए। आरोपित के अधिवक्ता ने मामला अल्प राशि का होने से नरमी की मांग की। न्यायालय ने लिखा कि आमजन भ्रष्टाचार से गंभीर रूप से त्रस्त है। अभियुक्त के एेसे आचरण से परिवादी को जायज काम में भी परेशानी हुई। सुनवाई के बाद विशेष न्यायाधीश, सेशन न्यायालय (भ्रष्टाचार निवारण मामलात) के पीठासीन अधिकारी अजित कुमार हिंगर ने धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत एक वर्ष के कारावास व पांच हजार रुपए जुर्माने, धारा 13 (1) (डी) सपठित धरा 13 (2) के तहत दो वर्ष के सश्रम कारावास व 10 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई।
पहले मना किया, बाद में टूट गया : परिवादी विनोद पामेचा ने 19 अगस्त 2004 को एसीबी एएसपी को रिपोर्ट दी कि पिता शांतिलाल पामेचा की पतहपुरा बेदला मार्ग पर जनता उपभोक्ता भंडार के नाम से दुकान है। श्रम विभाग का लाइसेंस खोने पर डुप्लीकेट के लिए निरीक्षक भंवरलाल पटेल से सम्पर्क किया। उसने 40 हजार रुपए पैनल्टी बताई। परिवादी ने इतनी राशि देने से मना किया तो निरीक्षक ने 10 हजार रुपए रिश्वत मांगी। परिवादी का कहना है कि इस कार्य के एक हजार रुपए से ज्यादा शुल्क नहीं बनता। निरीक्षक को इस बारे में बताया तो वह 6 हजार रुपए रिश्वत पर रजामंद हो गया। उसने कहा कि पैसा देने पर लाइसेंस तो मिल जाएगा लेकिन राशि की रसीद नहीं मिलेगी। ब्यूरो ने पकड़ा तो आरोपित ने यह राशि रिश्वत की होने से मना कर दिया। ब्यूरो टीम आरोपित को सीधे श्रम आयुक्त कार्यालय ले गई, जहां आयुक्त राजेश मुणोत से पूछताछ की गई। मुणोत ने बताया कि लाइसेंस की पैनल्टी 750 रुपए बनती है। ब्यूरो ने कार्यालय में ही बरामद राशि के बारे में पूछा तो निरीक्षक ने गलती स्वीकार कर ली।
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