कांस्टेबल ने चालान किया तो युवती बोली, पहला चालान है, रुको सेल्फी ले लूं। फिर फेसबुक पर अपलोड की।
यानी रूल तोड़ने का पश्चाताप नहीं, रोजमर्रा में जो भी घटा, उसका फोटो शेयर करने की चिंता पहले।
पत्नी को बताने के लिए कि वह कहीं और नहीं श्मशान में है, एक व्यक्ति ने वहां सेल्फी खींच पत्नी को भेजी।
यानी जिस जगह खड़े हैं उसकी गरिमा जैसी सामान्य बात नहीं बल्कि स्थान विशेष पर प्रजेंस बताना ज्यादा जरूरी।
पाली रोड ब्रिज पर आईआईटी छात्र नई हाईकोर्ट बिल्डिंग के साथ सेल्फी ले रहे हैं। ऐसी टोली कई बार दिखती है। ऐसा ही नजारा शास्त्री सर्किल पर बीच सड़क पर दिखा।
यानी व्यस्त हाईवे पर वाहनों के खतरों का डर नहीं फोटो लेने का जुनून हावी।
जिंदगी के खुशनुमा पल शेयर करने और सेल्फी विद डॉटर जैसे अच्छे अभियान का जरिया बनने वाला सेल्फी अच्छी बात थी। लेकिन इसका नशा या ऑब्सेशन अजीब दृश्य दिखाने लगा है। हम माता-पिता कम से कम इतना करें कि जिस सेल्फी के कारण हमारे बच्चों की जान पर बन आए या वे किसी अनजानी मुसीबत में फंस जाए, उसे हम जरूर रोकें। इसी तरह श्मशान जैसी जगह पर तो बड़े भी जगह की मर्यादा भूल कर फोटो ले रहे हैं। इसका भी विरोध करें।
खतरनाक पुलिया पर ट्रैफिक पुलिस ने एक युवती को स्कूटी पर बिना हेलमेट देख रोका। चालान बनने के बाद युवती ने मोबाइल से ट्रैफिक पुलिसकर्मी को भी कवर करते हुए व चालान थामे की सेल्फी ली। फेसबुक पर फोटो पोस्ट कर लिखा "पहले सेल्फी फिर चालान।' अगले दिन युवती ने कांस्टेबल प्यारेलाल को देखकर स्कूटी रोकी और हेलमेट दिखाकर कहा कि अब मैं हमेशा हेलमेट लगाऊंगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें