शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

जोधपुर जीते जी मायड़ भासा की अलख, मरणोपरांत देहदान



जोधपुर जीते जी मायड़ भासा की अलख, मरणोपरांत देहदान


इन्होंने जीते जी राजस्थानी मायड़ भाषा साहित्य की अलख जगाई तो मरणोपरांत भी अपनी देह समाज के लिए दे गए। यह थे, सरस्वती नगर ए 360 निवासी राजस्थानी साहित्यकार व कवि 78 वर्षीय पारस अरोड़ा। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में बतौर लिपिक पद पर से सेवानिवृत्त पारस का निधन शनिवार अलसुबह 4 बजे हो गया। उनके मरणोपरांत उनका देह डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज में दान किया गया।

पुत्र गौतम अरोड़ा ने बताया कि उनकी शुरू से इच्छा थी कि मरणोपरांत उनका देह समाज के लिए काम आए। दिवगंत अरोड़ा का मानना था कि आत्मा अजर अमर है। इन्होंने झल, जुड़ाव व कालजे सूं कालजे म्है कलम लागी आग री यह तीनों काव्य संग्रह भी लिखे थे।

साथ ही आपने ही खुलती गाथा नाम का उपन्यास लिखा था। जानी-मानी पत्रिका अपरंच के संपादक व माणक के उप संपादक भी रहे। उनके घर में पत्नी, एक पुत्र और दो पुत्रियां हैं। अरोड़ा ने मशहूर शाइर निदा फाजली के काव्य की कुछ रचनाओं का भी राजस्थानी भाषा में अनुवाद किया था। इसके अलावा उन्होंने और भी कई किताबों का राजस्थानी में अनुवाद किया था।

इस वर्ष हुए 14 देहदान

वहीं लोगों में देहदान को लेकर जागृति आई है। एनाटॉमी विभाग के डॉ. अनूपसिंह गुर्जर ने बताया कि डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज में इस साल अब तक 14 देहदान हो चुके हंै। कुल 56 देह दान के लिए यहां पहुंची हैं।

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