शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

सम्मान को तरस रहा भारत-पाक युद्ध का वीर

सम्मान को तरस रहा भारत-पाक युद्ध का वीर




बीकानेर 1965 के भारत-पाक युद्ध में विजयी पताका फहराने की खुशी में भारतीय सेना देश भर में स्वर्ण जयंती समारोह के रूप में जश्न मना रही है।

जबकि इसी युद्ध में पश्चिमी सीमा पर अपनी वीरता का अदम्य साहस दिखाते हुए दुश्मन के छक्के छुड़ाने वाला शहीद मेजर पूरणसिंह पांच दशक बाद भी सम्मान के लिए तरस रहा है।
शहर के बीचो-बीच स्थित शहीद का स्मारक जिला प्रशासन की अनदेखी का शिकार है। स्मारक की रोशनी और फव्वारे अरसे से बंद पड़े हैं।
अनसुनी कर दी पूर्व सैनिकों की पुकार
हैरत की बात यह है कि पूर्व सैनिकों ने शहीद स्मारक के रखरखाव के लिए पिछले महीने ही जिला प्रशासन को अवगत कराया था।
पूर्व सैनिकों ने जिला प्रशासन को लापरवाही के लिए आइना भी दिखाया और स्मारक पर दीप जलाए। इसके बावजूद जिला प्रशासन और नगर सुधार न्यास ने सुध नहीं ली।
स्मारक के रखरखाव का जिम्मा नगर सुधार न्यास का है। न्यास ने इसे एक बैंक को सौंप दिया। बैंक ने भी शहीद को सम्मान देना उचित नहीं समझा।
जैसलमेर सेक्टर पर संभाला था मोर्चा
13 ग्रेनेडियर्स गंगा रसाला सी स्क्वाड्रन के कमांडर मेजर पूरनसिंह को जैसलमेर सेक्टर पर तैनात किया गया। 4 अक्टूबर 1965 से पहले पाक घुसपेठियों ने कुछ पोस्टों पर कब्जा कर लिया।
इन्हें दुश्मनों से मुक्त कराने का जिम्मा मेजर सिंह को दिया गया। मेजर सिंह ने अपने साथियों के साथ 4 अक्टूबर से 30 नवम्बर 1965 तक जैसलमेर क्षेत्र की बुइली, सुलताना, आसु का तारा, शाहगढ़ और सादेवाला समेत कई चौकियों को पुन: अपने कब्जे में ले लिया और पाकिस्तानी रेंजर्स और घुसपेठियों को लौटने पर मजबूर कर दिया।
30 नवम्बर 1965 को लोंग रेंज बॉर्डर पेट्रोलिंग के दौरान पाक चौकी पर कब्जा जमाते वक्त दुश्मन ने न केवल उनके कुछ जवानों को घेर लिया, बल्कि फायरिंग भी शुरू कर दी।
मेजर सिंह ने अपने सैन्यबल और जवानों के जोश के साथ दुश्मन सैनिकों पर धावा बोल दिया।
भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस के आगे दुश्मन को चौकी छोडऩे पर मजबूर होना पड़ा। इसी चौकी पर काबिज रहते हुए दुश्मन के लगातार तीन आक्रमण विफल करते हुए मेजर शहीद हो गए।
उनकी बहादुरी, कुशल नेतृत्व और साहब के लिए उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया।
इन्होंने कहा...
अदम्य साहस दिखाया था मेजर ने 13 ग्रेनेडियर्स के मेजर पूरणसिंह ने युद्ध में अदम्य साहस दिखाया। उनकी वीरता की बदौलत भारतीय सैनिक कई चौकियों पर कब्जा जमाने में सफल रहे। हमें उनकी बहादुरी पर गर्व है, लेकिन जिला प्रशासन को उनकी शहादत का सम्मान तो करना चाहिए। स्मारक की अनदेखी शहीद का अपमान है।
कर्नल हेमसिंह शेखावत, सेवानिवृत्त सेना अधिकारी एवं गौरव सेनानी एसोसिएशन संयोजक

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें