रविवार, 2 अगस्त 2015

'पत्नी का लेटनाइट पार्टी करना, पति के साथ हिंसा नहीं'



मुंबई।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी के पार्टी करने और देर से घर आने को पति के साथ मानसिक हिंसा मानने से इनकार करते हुए फैमिली कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है। महिला के पति ने दावा किया उसकी पत्नी अक्सर पार्टी में जाया करती थी और उससे बुरी तरह से पेश आती थी। हाईकोर्ट ने कहा कि सोशल कल्चर और ट्रेडिशनल चैंजेंस के कारण इस आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता है।



फैमिली कोर्ट ने साल 2011 में इसे आधार मानते हुए दंपति की तलाक दे दिया था, लेकिन पत्नी ने जब इस फैसले को एपिलेट कोर्ट में चुनौती दी तब फैसला पत्नी के हक में आया। जिसके बाद पति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।





क्या है मामला

नौसेनिक राजेश चावला ने हाईकोर्ट में दावा किया था कि उसकी पत्नी सीमा लेटनाइट पार्टीज में जाती है और कई अवसरों पर उसके साथ हुरा व्यवहार करती है। छोटी-छोटी बातों पर दोनों के बीच विवाद होते हैं। इस दावे वाली अर्जी पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस एमएल तहिलियानी ने कहा, 'परिवेश में कुछ हद तक लोगों से घुलना मिलना जरूरी है, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं मिला जिससे साबित हो सके कि सीमा नशे में धुत होकर देर रात घर लौटती हो।'



पति खुद महिला मित्र के साथ लौटा था घर

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि पेश किए सबूतों के आधार पर कोर्ट ने रिकॉर्ड किया है कि राजेश खुद भी पार्टियों में जाता है और एक अवसर वह अपनी महिला मित्र को भी घर लेकर आया था क्योंकि उसने (महिला मित्र) पार्टी में ज्यादा शराब पी ली थी और वह घर नहीं जा सकती थी। कोर्ट ने कहा कि राजेश और सीमा दोनों ही पार्टीज में जाते हैं। इसलिए ये नहीं माना जा सकता कि पार्टी करके सीमा ने राजेश को किसी तरह से मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना दी हो।





अय्याशी के आरोप

कोर्ट के फैसले पर राजेश ने कोर्ट में कहा कि सीमा उस पर अय्याशी का आरोप लगाकर मानसिक रुप से प्रताड़ित करती है। हाईकोर्ट ने कहा कि दोनों पार्टियों में जाने और मौत मस्ती के आदी है, इस वजह से हो सकता है कि दोनों के बीच किसी बात को लेकर मिसअंडरस्टैंडिंग हो गई हो। लेकिन इस बात के कोई सबूत नहीं मिले है कि राजेश के साथ हिंसा हुई हो। इसलिए इस आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता है।



4 साल पहले कोर्ट ने दिया था तलाक

राजेश चावला ने साल 2008 में तलाक की अर्जी दी थी। अर्जी पर सुनवाई करते हुए फैमिली कोर्ट ने 2011 में दंपति की तलाक दे दिया था, लेकिन पत्नी ने जब इस फैसले को एपिलेट कोर्ट में चुनौती दी तब फैसला पत्नी के हक में आया और कोर्ट ने इनकी तलाक पर रोक लगा दिया। इसके बाद पति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें