हमारी धरती की तरह नहीं, खोजी गई दूसरी जमीन
इस पर सवाल उठाने वाले देश के अंतरिक्ष विशेषज्ञों का कहना है कि नासा की खोजी नई धरती हमारी धरती की तरह नहीं घूमती है। यह रिपोर्ट अनुमान के आधार पर बनाई है। इसमें अभी गहराई से अध्ययन नहीं किया है। उससे पहले ही रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी। इसलिए इतना जल्दी यह मानना ठीक नहीं कि वहां पृथ्वी जैसा उच्च स्तरीय मानव जीवन हो सकता है।
जोधपुर आए इसरो के हैदराबाद स्थित रीजनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के मुख्य महाप्रबंधक जे आर शर्मा ने पत्रिका से एक विशेष भेंट में बताया कि नासा के कैपलर स्पेस टेलिस्कॉप की शुरुआती इमेजेज के आधार पर 452 बी ग्रह पर आई रिपोर्ट में पूरा विवरण नहीं बताया है। यह बात नासा की साइट पर भी बताई है। इसमें नासा के छोटे ग्रुप ने कैपलर से मिले डाटा का अध्ययन किया है।
इस पर बड़े ग्रुप का अध्ययन जरूरी है। इसमें वॉटर, एयर और टोपाग्राफी के स्पेशलिस्ट होंगे जो मिल कर कैपलर की इमेजेज का बारीकी से अध्ययन करते हैं। इसके बाद पूरा परिणाम सामने आएगा। चीफ जनरल मैनेजर शर्मा ने कहा कि उन्हें इस तरह के ग्रहों में पानी होने की बात सुनते-सुनते 24 साल हो गए लेकिन आज तक कोई प्रमाण सामने नहीं आया है। पानी वाली इमेज के गहराई से अध्ययन के बाद ही मानव जीवन की संभावना का पता चलेगा।
आज हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं उसके दो मोशन है। पहले मोशन में वो अपने सूरज का 365 दिन में चक्कर लगाती है। जबकि नासा की रिपोर्ट कहती है कि दूसरी नई धरती अपने सूरज का 385 दिन में चक्कर लगाती है। नासा की रिपोर्ट में यह नहीं बताया कि नई धरती दूसरे मोशन में अपनी खुद की धूरी पर घुमती है या नहीं। जिस धरती पर आज मानव जीवन विद्यमान है वो सूरज का चक्कर लगाने के साथ अपनी धुरी पर भी घूमती है। अंतरिक्ष में किसी भी ग्रह की स्थिरता के लिए यह घूर्णन जरूरी है।
- प्रो.ओपीएन कल्ला, निदेशक, इंटरनेशनल सेंटर फॉर रेडियो साइंस, पूर्व उप निदेशक, इसरो
अपनी धुरी पर घूर्णन से बनती हैं ऋतुएं
हम जिस धरती पर रहते हैं वह अपनी धुरी पर 24 घंटे में घूर्णन करती है, उससे रात दिन बनते हैं। सूरज के चारों तरफ 365 दिन में चक्कर लगाने से चार ऋतुएं बनती हैं। मानव जीवन इन्हीं ऋतुओं से प्रभावित होता है।
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