बाड़मेर। ना शिक्षक, ना सुविधाएं, कैसे हो पढ़ाई
बाड़मेर। राज्य सरकार की ओर से भले ही शिक्षा को बढ़ावा देने के बड़े बड़े दावे किए जाते हो, लेकिन सरकारी स्कूलों का शैक्षणिक स्तर हकीकत से कोसो दूर है। बाड़मेर जिले के सिणधरी स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक संस्कृत विद्यालय के हालात का जायजा लिया तो सामने आया कि यह विद्यालय सैंकड़ों बच्चों की शिक्षा का एकमात्र विकल्प होने के बावजूद मूलभुत सुविधाओं से महरुम है।
1. एक शिक्षक के भरोसे स्कूल
2. आठवीं तक का यह विद्यालय प्रतिनियुक्ति पर नियुक्त एकमात्र अध्यापक के भरोसे चल रहा है, जिससे विद्यार्थियों की शिक्षा का स्तर दिनोंदिन गिरता जा रहा है। पर्याप्त स्टॉफ के अभाव में विद्यालय का शैक्षणिक स्तर बहुत नीचे चला गया है। सातवीं कक्षा के बच्चों को हिन्दी तक पढऩा नहीं आता है। नतीजतन बहुत से अभिभावक अपने बच्चों को निजी विद्यालय में पढ़ाने को मजबूर हैं। वहीं कई अभिभावक कर्जे लेकर निजी विद्यालय की फीस चुका रहे हैं। स्थानीय लोगों ने सर्वे टीम को बताया कि एक मात्र शिक्षक होने के कारण यह विद्यालय सप्ताह में मात्र एक-दो दिन ही खुलता है।
3. कैसे करें गुहार
4. विद्यालय के मौजूदा हालातों के बारे में कुछ अभिभावकों ने विभागीय अधिकारियों को अवगत करवाया लेकिन स्थिती में कोई सुधार नहीं हुआ। ग्रामीणों ने बताया कि विभागीय कार्यालय जोधपुर होने के कारण बार -बार जाना भी मुश्किल है।
5. उन्होने बताया कि इस विद्यालय को संस्कृत की बजाय राउप्रा विद्यालय का दर्जा दे दिया जावे तो हालाता सुधर सकते हैं। साथ ही नोडल ब्लॉक व जिला स्तरीय अधिकारियों की निगरानी भी रहेगी।
6. सुविधाओं का टोटा- विद्यालय में अनेक सुविधाओं का अभाव है। पेयजल व्यवस्था सूचारु होने से विद्यार्थियों को पीने का पानी भी घर से लाना पड़ता है। विद्यार्थियों के लिए ना खेल मैदान है, ओर ना ही शौचालय। इसके अलावा विद्यालय में गन्दगी का ढ़ेर पड़ा होने के साथ ही आवारा पशुओं का जमावड़ा रहता है, जिससे विद्यार्थियों को परेशानी का सामना करना पड़ पड़ता है।
1. एक शिक्षक के भरोसे स्कूल
2. आठवीं तक का यह विद्यालय प्रतिनियुक्ति पर नियुक्त एकमात्र अध्यापक के भरोसे चल रहा है, जिससे विद्यार्थियों की शिक्षा का स्तर दिनोंदिन गिरता जा रहा है। पर्याप्त स्टॉफ के अभाव में विद्यालय का शैक्षणिक स्तर बहुत नीचे चला गया है। सातवीं कक्षा के बच्चों को हिन्दी तक पढऩा नहीं आता है। नतीजतन बहुत से अभिभावक अपने बच्चों को निजी विद्यालय में पढ़ाने को मजबूर हैं। वहीं कई अभिभावक कर्जे लेकर निजी विद्यालय की फीस चुका रहे हैं। स्थानीय लोगों ने सर्वे टीम को बताया कि एक मात्र शिक्षक होने के कारण यह विद्यालय सप्ताह में मात्र एक-दो दिन ही खुलता है।
3. कैसे करें गुहार
4. विद्यालय के मौजूदा हालातों के बारे में कुछ अभिभावकों ने विभागीय अधिकारियों को अवगत करवाया लेकिन स्थिती में कोई सुधार नहीं हुआ। ग्रामीणों ने बताया कि विभागीय कार्यालय जोधपुर होने के कारण बार -बार जाना भी मुश्किल है।
5. उन्होने बताया कि इस विद्यालय को संस्कृत की बजाय राउप्रा विद्यालय का दर्जा दे दिया जावे तो हालाता सुधर सकते हैं। साथ ही नोडल ब्लॉक व जिला स्तरीय अधिकारियों की निगरानी भी रहेगी।
6. सुविधाओं का टोटा- विद्यालय में अनेक सुविधाओं का अभाव है। पेयजल व्यवस्था सूचारु होने से विद्यार्थियों को पीने का पानी भी घर से लाना पड़ता है। विद्यार्थियों के लिए ना खेल मैदान है, ओर ना ही शौचालय। इसके अलावा विद्यालय में गन्दगी का ढ़ेर पड़ा होने के साथ ही आवारा पशुओं का जमावड़ा रहता है, जिससे विद्यार्थियों को परेशानी का सामना करना पड़ पड़ता है।
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