भारतीय समाज में विवाह महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। शादी सिर्फ दो इंसानों के बीच का संबंध नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है। जिस शादी से दो परिवारों की डोर बंधी होती है। शादी के लिए कैसा जीवनसाथी चुना जाए इसके लिए विशेष सावधानी बरतने की अवश्यकता होती है।
बहुत से पुरूष महिलाओं की खूबसूरती के मोहपाश में बंधकर उनसे शादी कर लेते हैं। कुछ समय के उपरांत महिलाओं की खूबसूरती से उनका मोह भंग हो जाता है। सभी खूबसूरत महिलाएं विवाह योग्य नहीं होती। सूरत से अधिक सिरत महत्वपूर्ण होती है।
आचार्य चाणक्य अपनी नीति में बताते हैं की विवाह के लिए कैसी स्त्री का चुनाव करना चाहिए।
चाणक्य कहते हैं -
वरयेत् कुलजां प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम्।
रूपशीलां न नीचस्य विवाह: सदृशे कुले।।
अर्थात- बुद्धिमान और प्रशस्त पुरूष वह है जो ऊंचे कुल, संस्कारी एवं शिष्ट परिवार की कन्या से विवाह करता है। ऐसे परिवार की कन्या देखने में चाहे सुंदर न हो लेकिन अपने सद्गुणों की महक से परिवार की बगीया को महकाती है।
अधिकतर पुरूष महिला के बाहरी अवरण से प्रभावित होकर उन्हें जीवन संगिनी बनाने का निर्णय कर लेते हैं फिर चाहे वह कन्या अधार्मिक और नीच कुल की ही क्यों न हो।
विवाह हमेशा अपने कुल में ही करना चाहिए। अपने से उच्च एवं निम्न कुल की कन्या विवाह उपरांत परिवार में कलह करती हैं। जिससे की परिवार टूट जाता है। उच्च कुल की कन्या को अपने कुल का अभिमान होता है और निम्न कुल की कन्या का स्वभाव व आचरण निम्न ही रहता है।
धार्मिक और आस्तिक विचारों वाली महिला का शिष्ट चाल-ढाल होता है। जो गृहस्थ जीवन को धर्म, अर्थ व काम से सुख-समृद्ध बनाती है।
आचार्य चाणक्य की यह नीति स्त्रियां भी ध्यान रखें, जिन पुरुषों में ऐसे अवगुण हों, उन्हें अपना जीवनसाथी न बनाएं।
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