खाद्य पदार्थों में घातक रसायनों की जांच की सरकारी लैब में सुविधा ही नहीं
जयपुर। देश भर के भीतर मैगी में घातक रसायनों की मिलावट का मामला सामने आने के बाद राजस्थान में खाद्य पदार्थों की जांच सुविधाओं की पोल खुल गई है। हालत यह है कि राजस्थान में खाद्य पदार्थो। में घातक रसायनों की मिलावट की जांच के लिए सरकारी लैब तक नहीं है। जयपुर में जो सरकारी लैब है उसमें घातक रसायनों की मिलावट की जांच सुविधा ही नहीं है।
मैगी में मिलावट तो एक कंपनी का मामला है, राजस्थान में फास्ट फूड, पैकेज्ड फूड सहित खान पान की सामग्री में घातक रसायनों की मिलावट के मामले सामने आते रहते हैं। फूड इंस्पेक्टर सैंपल लेते हैं लेकिन यहां की सरकारी लैब में जांच की सुविधा नहीं होने से सैंपल गाजियाबाद लैब् में भेजने होते हैं, इस प्रक्रिया में जांच रिपोर्ट आने में लंबा वक्त लगता है, तब तक बहुत नुकसान हो चुका होता है। सरकारी लैब होने के बावजूद उसमें उपकरणों और एक्सपर्ट के अभाव में जांच नहीं हो पाती। मैगी का मामला आया तो स्वस्थ्य विभाग ने आनन फानन में कार्रवाई की लेकिन सैंपल जांच की रिपोर्ट में देरी की आशंका के चलते निजी लैब को अधिकृत करना पड़ा।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बजट में भेले ही लैब के अपग्रेडेशन की घोषणा कर दी हो लेकिन सरकारी व्यवस्थाएं इतनी सुस्त है। कि अभी तक काम आगे नहीं बढा है। यह मामला इसलिए भ्ज्ञी ज्यादा गंभीर है कि खाद्य पदार्थों में घातक रसायनों की मिलावट के मामले लगातार बढते जा रहे हैं, इसकी जांच की सुविधा नहीं होने का मतलब है करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़। लेकिन यह विडंबना ही है कि हमारी प्रशासनिक व्यवस्था तब तक सक्रिय नहीं होती जब तक कोई बडा हादसा नहीं हो जाता।
निदेशक जन स्वास्थ्य बीआर मीणा से जब लैब में जांच सुविधा नहीं होने पर पूछा गया तो मीणा ने कहा कि सीएम ने बजट घोषणा में 7 करोड़ का प्रावधान किया है, जल्द ही लैब में जरूरी उपकरण और सुविधाएं उपलब्ध करवाकर अपग्रेडेशन का काम शुरू कर दिया जाएगा।
जयपुर। देश भर के भीतर मैगी में घातक रसायनों की मिलावट का मामला सामने आने के बाद राजस्थान में खाद्य पदार्थों की जांच सुविधाओं की पोल खुल गई है। हालत यह है कि राजस्थान में खाद्य पदार्थो। में घातक रसायनों की मिलावट की जांच के लिए सरकारी लैब तक नहीं है। जयपुर में जो सरकारी लैब है उसमें घातक रसायनों की मिलावट की जांच सुविधा ही नहीं है।
मैगी में मिलावट तो एक कंपनी का मामला है, राजस्थान में फास्ट फूड, पैकेज्ड फूड सहित खान पान की सामग्री में घातक रसायनों की मिलावट के मामले सामने आते रहते हैं। फूड इंस्पेक्टर सैंपल लेते हैं लेकिन यहां की सरकारी लैब में जांच की सुविधा नहीं होने से सैंपल गाजियाबाद लैब् में भेजने होते हैं, इस प्रक्रिया में जांच रिपोर्ट आने में लंबा वक्त लगता है, तब तक बहुत नुकसान हो चुका होता है। सरकारी लैब होने के बावजूद उसमें उपकरणों और एक्सपर्ट के अभाव में जांच नहीं हो पाती। मैगी का मामला आया तो स्वस्थ्य विभाग ने आनन फानन में कार्रवाई की लेकिन सैंपल जांच की रिपोर्ट में देरी की आशंका के चलते निजी लैब को अधिकृत करना पड़ा।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बजट में भेले ही लैब के अपग्रेडेशन की घोषणा कर दी हो लेकिन सरकारी व्यवस्थाएं इतनी सुस्त है। कि अभी तक काम आगे नहीं बढा है। यह मामला इसलिए भ्ज्ञी ज्यादा गंभीर है कि खाद्य पदार्थों में घातक रसायनों की मिलावट के मामले लगातार बढते जा रहे हैं, इसकी जांच की सुविधा नहीं होने का मतलब है करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़। लेकिन यह विडंबना ही है कि हमारी प्रशासनिक व्यवस्था तब तक सक्रिय नहीं होती जब तक कोई बडा हादसा नहीं हो जाता।
निदेशक जन स्वास्थ्य बीआर मीणा से जब लैब में जांच सुविधा नहीं होने पर पूछा गया तो मीणा ने कहा कि सीएम ने बजट घोषणा में 7 करोड़ का प्रावधान किया है, जल्द ही लैब में जरूरी उपकरण और सुविधाएं उपलब्ध करवाकर अपग्रेडेशन का काम शुरू कर दिया जाएगा।
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